सम्पादकीय

कर्नाटक में नया तिरंगा विवाद

Subhi
19 Feb 2022 3:07 AM GMT
कर्नाटक में नया तिरंगा विवाद
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कर्नाटक विधान परिषद में राज्य के पंचायत राज्यमन्त्री श्री के.एस. ईश्वरप्पा के बयान को लेकर जो हंगामा मचा हुआ है उसके पीछे स्वतन्त्र भारत की राजनीतिक सोच का संकुचित वर्गीकरण है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: कर्नाटक विधान परिषद में राज्य के पंचायत राज्यमन्त्री श्री के.एस. ईश्वरप्पा के बयान को लेकर जो हंगामा मचा हुआ है उसके पीछे स्वतन्त्र भारत की राजनीतिक सोच का संकुचित वर्गीकरण है। श्री ईश्वरप्पा ने किसी कालेज के समारोह में कह दिया कि एक दिन भारत का राष्ट्रीय ध्वज भगवा बनेगा जिसे लेकर विधान परिषद में विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सदस्य धरना दे रहे हैं और मन्त्री के बयान को भारत विरोधी बताते हुए उनके विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग कर रहे हैं और मुख्यमन्त्री से उन्हें मन्त्रिमंडल से हटाने की मांग कर रहे हैं। दरअसल श्री ईश्वरप्पा जिस पार्टी भाजपा से सम्बन्ध रखते हैं उसका फलसफा प्रखर राष्ट्रवाद का है जिसे ध्यान में रखते हुए ही उन्हें राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कोई बयान देना चाहिए था। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा न तो किसी खास पार्टी का है और न किसी राजनीतिक विचारधारा के तहत भारत की स्वतन्त्रता के बाद स्वीकार किया गया। यह पूरे राष्ट्र का ध्वज है जिस पर हर भारतीय अपना ईमान लाता है। मगर दूसरी तरफ भाजपा के विधायक मांग कर रहे हैं कि सदन के भीतर कांग्रेस के विधायकों ने श्री ईश्वरप्पा के इस्तीफे की मांग करते हुए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जिससे उनके खिलाफ भी मुकदमें दर्ज किये जाने चाहिए। गौर से देखा जाये तो दोनों ही सत्ताधारी व विपक्षी पार्टी इस मामले को अपने-अपने हिसाब से पेश करने की कोशिश कर रही हैं। मुद्दा यह है कि श्री ईश्वरप्पा को भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते हुए किसी भी विवादास्पद बयान से बचना चाहिए था और इस सन्दर्भ में अपनी ही पार्टी के इस सिद्धांत कि 'राष्ट्र सर्वोपरि' को सबसे ऊपर रखना चाहिए था और भावनाओं के आवेश में अपने व्यक्तिगत या निजी विचारों को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने में दस बार सोचना चाहिए था क्योंकि वह भारत के संविधान की कसम उठा कर ही कर्नाटक राज्य के मन्त्री बने हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि जब कोई भारत का नागरिक वन्देमातरम् कहने से गुरेज करता है तो वह सीधे राष्ट्र का अपमान ही करता है। इसी प्रकार भारत माता की जय कहने से भी कुछ लोग अपने धर्म का हवाला देकर इसे बोलने से गुरेज करते हैं। यदि श्री ईश्वरप्पा मन्त्री पद पर रहते हुए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के विकल्प के रूप में कोई दूसरा ध्वज सुझाते हैं तो वह भी वन्दे मातरम् न बोलने जैसी ही गलती करते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेसी विधायक विधानसभा के भीतर राष्ट्रीय ध्वज का जिस तरह प्रयोग करते हैं वह भी उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि जिस राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की वह बात कर रहे हैं खुद उसी को समुचित सम्मान नहीं दे रहे हैं। सबसे ऊपर सवाल राष्ट्रीय मानसिकता का है। जब हम राष्ट्रीय चिन्हों और प्रतीकों को सर्वोपरि मानते हैं तो उनका पूरा सम्मान करना भी हमारा फर्ज होता है और उन्हें उसी रूप में स्थायी भाव से देखना हमारा फर्ज होता है। क्या किसी अन्य लोकतान्त्रिक देश में हमने ऐसे विवादों को सुना है जहां राष्ट्रीय ध्वज को लेकर ही राजनीति होती हो। कुछ विषय ऐसे होते हैं जो राजनीति से परे और ऊपर होते हैं। इन पर राजनीति करना राष्ट्र का ही अपमान होता है क्योंकि राष्ट्र की परिकल्पना से बना उसका भौतिक स्वरूप राजनीति के दायरे से बाहर होता है। मगर अक्सर हम ऐसे विषयोंं पर भी उलझते रहते हैं। संपादकीय :बच्चों की सुरक्षा के लिए नए नियमपंजाब पंजाबियत और चुनावअर्श से फर्श तक लालूअश्विनी कुमार का इस्तीफाबहुत मुश्किल में निर्णायकगणहिजाब और हिन्दोस्तानभारत कोई वैचारिक राष्ट्र नहीं बल्कि भौगोलिक सीमाओं वाला देश है जिसका मतलब होता है कि इसकी धरती पर जो भी लोग रहते हैं वे सभी भारतीय हैं। वे हिन्दू, मुसलमान या सिख व ईसाई हो सकते हैं मगर सबसे पहले भारतीय हैं और भारत से ही उनकी पहचान होती है। यह पहचान देश के राष्ट्रीय ध्वज से होती है और राष्ट्रगान या राष्ट्र गीत अथवा राष्ट्रीय अवधारणाओं में बन्धे नारों से होती है। वन्देमातरम या भारत माता की जय ऐसे ही नारे हैं । इसी वजह से इन्हें बोलने में परेशानी महसूस करने वाले लोगों को हम राष्ट्रीयता के सर्वमान्य दायरों में लाना चाहते हैं जिससे भारत की एकता पर किसी धर्म या सम्प्रदाय का चश्मा न लगाया जा सके। यदि हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को ही सम्मान नहीं दे पाते हैं और उसका विकल्प लाने की बात करते हैं तो फिर किस तरह भारत की एकता को मजबूत कर सकते हैं और संघ के सिद्धान्त 'राष्ट्र सर्वोपरि' के पैरोकार हो सकते हैं । भारत में जितने भी विधायक या सांसद हैं, चाहे वे किसी भी दल के हों, सबसे पहले राष्ट्रीय ध्वज के प्रति ही नतमस्तक होते हैं। अतः इसके सम्मान व मर्यादा को हर कीमत पर कायम रखने के हर राजनीतिक दल को पूरे प्रयास करने चाहिए। कर्नाटक में पहले से ही हिजाब का विवाद गरमाया हुआ है और अब यह तिरंगा विवाद शुरू हो गया है। इसे समाप्त किया जाना चाहिए।

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