सम्पादकीय

विजन की नई परख

Rani Sahu
31 July 2023 6:58 PM GMT
विजन की नई परख
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By: divyahimachal
विजन की मुनादी नहीं होती और न ही इसके लिए साजो-सामान की जरूरत है। हिमाचल में राजनीतिक जागरूकता व सामाजिक सुरक्षा के तमाम पहाड़े पढऩे के बाद अब फिर से ‘विजन’ की परख में नेताओं की क्षमता का अंदाजा जनता लगाने लगी है। हिमाचल के राजनीतिक इतिहास में यूं तो मुख्यमंत्रियों के विजन को अलग-अलग कारणों से अंगीकार किया गया, लेकिन इससे इतर भी कुछ नेता, कुछ मंत्री और कभी कभार कुछ अधिकारी भी याद किए गए। दुर्भाग्यवश ऐसे शिक्षाविद, स्कूल शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष या विश्वविद्यालयों के कुलपति सामने नहीं आ रहे, जिनके कारण युवा पीढ़ी में विजन की तासीर विकसित हो सके। विडंबना यह भी है कि हिमाचल ने जिस विकास के मॉडल को अपनाया है, वह हिमाचल के मानव संसाधन को रोजगार से जोड़ ही नहीं रहा। दरअसल प्रदेश से आर्थिक संभावनाओं या एक तरह आर्थिकी का ही निर्यात हो रहा है। बीबीएन में लगभग पांच लाख वर्क फोर्स है, लेकिन इसमें से बमुश्किल दस प्रतिशत ही हिमाचल से संबंध रखती है। इसी तरह प्रदेश में बढ़ते शहरी रोजगार में हिमाचली युवा की रुचि ही नहीं है, नतीजतन पर्यटन की आर्थिकी का एक बड़ा हिस्सा व संभावना बाहर जा रही है। ग्रामीण, कृषि या बागबानी से जुड़ी आर्थिकी में श्रम का महत्त्व अब निर्यात हो गया। हमारे सेब, चाय के बागान और सब्जी उत्पादन तक पैदा हो रही मजदूरी से अन्य राज्यों की बेरोजगारी मिट रही है। भवन निर्माण की हर ईंट पर रोजगार की मुहर बाहर बिक रही है।
हैरानी यह है कि मनाली, शिमला, मकलोडगंज, धर्मशाला व अन्य पर्यटक शहरों में रेहडिय़ों पर सिड्डू, मोमो, बर्गर या अन्य पकवान बाहर से आए लोग बेच कर कमाई कर रहे हैं। ऐसे में हिमाचल में युवाओं को प्रेरित कौन कर रहा है। अगर बैजनाथ के कालेज को सिर्फ संदेश देना है कि वहां स्नातकोत्तर पढ़ाई शुरू करके कोई तक्षशिला बन जाएगी, तो यह मुगालता है। हमारे स्कूल-कालेज और विश्वविद्यालय उन्हीं पाठशालाओं से सुशोभित हैं, जिन्हें पढक़र सरकारी नौकरी की खुशफहमी और बेरोजगारी पल्लिवत होती है। कृषि एवं बागबानी विश्वविद्यालयों से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि खेत और बागीचे में स्वरोजगार उगे। शिमला, मंडी, हमीरपुर और धर्मशाला के विश्वविद्यालयों से यह क्यों न पूछा जाए कि प्रदेश में नवाचार और उद्यमशीलता पारंगत कैसे होगी। कभी पंडित सुखराम ने मंडी में इंदिरा मार्केट बना कर शहर को व्यावसायिक अवतार दे दिया था। कमोबेश पर्यटन की दृष्टि से मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू भी कई विराम तोड़ रहे हैं, लेकिन इसके लिए ढांचागत परिवर्तन, प्रशासनिक सुधार व प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। प्रदेश के प्रगतिशील बागबानों, किसानों, उद्योगपतियों, होटल मालिकों, टैक्सी व बस आपरेटरों, निजी अस्पताल के स्वामियों तथा व्यापारियों से सरकार का सार्थक संवाद अगर रोजगार का आह्वान करे, तो आर्थिक करवटें बदल सकती हैं।
विजन के नजदीक सियासत पहुंच जाए, तो राज्य का नेतृत्व सुदृढ़ होगा। यहां पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा भले ही वर्तमान सरकार में बैक बेंचर हों, लेकिन विजन का उनका क्लासरूम सक्रिय है। बड़े फैसलों से दूर उनका एक छोटा सा दखल भविष्य को खूबसूरती से लिखने के प्रयास में है। सुधीर शर्मा ने अपने विधानसभा के गांवों में एक साथ बारह मैदानों का विकास करने की ठानी है। वह न स्कूल और न ही नए कालेज मांग रहे हैं, बल्कि बारह बड़े मैदान विकसित कर रहे हैं ताकि बच्चों और युवाओं के जिंदगी के मजमून खेलों से शुरू हों। इनमें सबसे छोटा मैदान पच्चीस कनाल, जबकि सबसे बड़ा 120 कनाल में नरवाणा (धर्मशाला) में विकसित होगा। विजन की इस परिपाटी में अगर हिमाचल के सारे विधायक जुट जाएं, तो राज्य में न केवल खेलों का उत्तम वातावरण विकसित होगा, बल्कि खुले स्थानों का संरक्षण भी होगा। प्रदेश के हर गांव में कम से कम एक मैदान और हर शहर में कम से कम चार नए मैदान विकसित किए जाएं, तो युवाओं को खेल, बुजुर्गों, महिलाओं व बच्चों को सैर-सपाटा तथा प्रशासन को सांस्कृतिक, खेल, व्यावसायिक व पार्किंग गतिविधियां चलाने में मदद मिलेगी।
Rani Sahu

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