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हिमाचल में उच्च शिक्षा की नई मंजिल के रूप में मंडी विश्वविद्यालय का उदय अपने साथ सत्ता का प्रभाव, सरकार का स्वभाव और शैक्षणिक विस्तार लिख रहा है
दिव्यहिमाचल। हिमाचल में उच्च शिक्षा की नई मंजिल के रूप में मंडी विश्वविद्यालय का उदय अपने साथ सत्ता का प्रभाव, सरकार का स्वभाव और शैक्षणिक विस्तार लिख रहा है। रूसा के कलस्टर से निकलकर स्वतंत्र विश्वविद्यालय अपने आप में शिक्षा की नई रेस है, जो इससे पहले स्कूलों व कालेजों के नाम पर हुई। विधानसभा की बहस में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री व विधायक राकेश सिंघा की आपत्तियों के बावजूद शिक्षा के नए सफर की निशानियां खारिज नहीं होंगी और हो सकता है आने वाले समय में राज्य की मेहरबानी से कुछ और विश्वविद्यालय पैदा हो जाएं। वैसे संस्कृत विश्वविद्यालय, आयुर्वेद विश्वविद्यालय व खेल विश्वविद्यालय बनाने का औचित्य राजनीति बना सकती है। यह दीगर है कि धूमल सरकार के दौरान निजी विश्वविद्यालयों व इंजीनियरिंग कालेजों की जो भारी खेप उतरी थी, वह आज अप्रासंगिक हो गई है। जिस शिद्दत से तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, उसी तेजी से हिमाचल में इंजीनियरिंग व एमबीए की उपाधियों का अवमूल्यन भी हो गया। कभी शिमला विश्वविद्यालय के तहत एमबीए व कुछ अन्य विषयों में अध्ययन के मानदंड इस काबिल थे कि छात्र समुदाय रोजगार की संभावना में पुरस्कृत होते थे। बेशक शिमला विश्वविद्यालय अपनी हरकतों के कारण शैक्षणिक स्तर से फिसल गया और अब इस हकीकत में एक नया अफसाना बनकर मंडी विश्वविद्यालय का श्रीगणेश हो रहा है, लेकिन सवाल यहां पहुंच कर भी खत्म नहीं होंगे।
तीन दशक से धर्मशाला में चल रहे विश्वविद्यालय अध्ययन केंद्र को क्या शिमला से ही जोड़ा जाएगा या अपने स्तर से कहीं नीचे जन्म ले रही यूनिवर्सिटी से जोड़ा जाएगा। क्या तीन दशक से उच्च शिक्षा का दायित्व संभाले धर्मशाला अध्ययन केंद्र को स्वायत्त संस्था या विश्वविद्यालय का दर्जा देना सही नहीं होगा। दरअसल शिमला विश्वविद्यालय के तहत धर्मशाला के अलावा मंडी व ऊना में भी अध्ययन केंद्र की प्रस्तावना हुई थी, लेकिन अब राजनीतिक चीरफाड़ ने जिस बच्चे को जन्म दिया है, उसका इंतजार करना होगा। हिमाचल में शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक सक्रियता हमेशा बुलंद रही है और इसके सार्थक परिणाम भी आए, लेकिन अब राज्य का ऐसा बंटवारा हो रहा है जिससे मूल भावना, औचित्य व लक्ष्य पूरे नहीं हो रहे। हमें मेडिकल यूनिवर्सिटी भी चाहिए, तो आगे चलकर आयुर्वेद विश्वविद्यालय भी पांव जमाएगा। एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर जो सियासत हुई, उससे अधिक दुर्दशा उच्च शिक्षा की नहीं हो सकती, फिर भी हमें ऐसे मजाक में भी मजा आता है। दूसरी ओर स्कूल शिक्षा बोर्ड की आमदनी में निजी स्कूलों का योगदान बढ़ रहा है। एक समय था जब हमीरपुर के एक निजी संस्थान 'हिम अकादमी' ने हिमाचली बच्चों को व्यावसायिक कालेजों के प्रवेश तक पहुंचाया। आज कालेजों-स्कूलों से कहीं अधिक बच्चे निजी अकादमियों के जरिए अपनी मंजिल बना रहे हैं। हमीरपुर, धर्मशाला, सोलन, शिमला के अलावा अन्य अनेक शहरों में अकादमियों के कारण शिक्षा के हब दिखाई देते हैं। ऐसे में निजी निवेश का हुंकारा भरते हुए भी क्या प्रदेश सरकार ने यह प्रयास किया कि शिक्षा की जरूरतों में क्या नया किया जाए। आज भी स्तरीय स्कूल ढूंढते हुए अभिभावक हिमाचल के निजी स्कूलों या प्रदेश के बाहर निकलकर समाधान पाते हैं। पिछले कुछ सालों से प्रदेश की बच्चियों के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने की प्रतिस्पर्धा पैदा हुई है, तो यह उस पाठ्यक्रम की जीत है। अब बच्चे इंजीनियर या डाक्टर नहीं बनना चाहते, लिहाजा चंडीगढ़, दिल्ली या दक्षिण व पश्चिम भारत के प्रतिष्ठित कालेजों व विश्वविद्यालयों से ऐसे विषय चुन रहे हैं, जिनका संबंध विज्ञान से नहीं है।
आश्चर्य यह कि प्रदेश में भले ही शिक्षा की होड़ विश्वविद्यालयों तक पहुंच गई, लेकिन हिमाचल में डिफेंस स्टडीज, फिशरीज, खेल, आर्ट या ट्राइबल स्टडीज पर केंद्रित एक भी कालेज स्थापित नहीं हुआ। अगर प्रयास किए होते तो प्रदेश के कम से कम दस-बारह प्रमुख महाविद्यालय किसी न किसी विषय के राज्य स्तरीय अध्ययन केंद्र बन सकते थे। बहरहाल मंडी व शिमला विश्वविद्यालय के बंटवारे के बीच कितने विषय, कितनी राजनीति या कितना रोजगार बंटता है, यह देखना होगा। बेहतर होगा शिमला व मंडी परिसर की दीवारें आपस में न उलझें, बल्कि एक को यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड कामर्स बना देना चाहिए, जबकि दूसरी को ह्यूमैनिटी तथा हिमाचल स्टडीज का स्वरूप देना चाहिए। इसी तरह केंद्रीय विश्वविद्यालय की बंदरबांट रोकने के लिए देहरा परिसर को राष्ट्रीय खेल प्रतिष्ठान, जबकि धर्मशाला में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित करना चाहिए। ऐसे में जबकि अब हिमाचल लैंड ऑफ यूनिवर्सिटीज बनने जा रहा है, शिक्षा के आका हमीरपुर के एनआईटी व मंडी के आईआईटी से यह ज्ञान धारण करें कि इन संस्थानों की कशिश में पैदा हो रहा रोजगार किस तरह एक से पांच करोड़ के पैकेज लिख रहा है। बेहतर होगा हिमाचल अपने शिक्षा व चिकित्सा संस्थानों के नक्शे बनाने के बजाय, लक्ष्यों की प्रासंगिकता पैदा करे।
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