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आजकल सच अन्धों का हाथी हो गया है साहिब। अन्धों ने हाथी के जिस हिस्से को हाथ लगा लिए, वही वह असली हाथी बता जनसाधारण को आश्वस्त कर रहे हैं। किसी के लिए हाथी मात्र एक सूंड है, किसी के लिए भारी भरकम पुष्ट भाग और कोई उसकी टांग छू मात्र उसे पुष्ट स्तम्भ बता रहा है। जनाब, यही हाल देश के प्रजातंत्र का हो गया है। उसके अलम्बरदार अपने-अपने हिस्से का खण्डित सत्य उछालते हुए एक-दूसरे पर हावी होने की चेष्टा करते रहे हैं और दूसरे को प्रजातंत्र में प्राप्त अधिकारों के हनन का अपराधी बताते हैं। चुनावों में बाकायदा लोकमत जानने के बाद चुनी हुई सरकार को भी अपनी पूरी अवधि जीने का हक नहीं मिलता। अगर वह अपने सत्ता लोभी स्वनाम-धन्य नेताओं को कुर्सी लोभ से परे नहीं रख पाती। दिन-रात होता है तमाशा मिरे आगे के अन्दाज़ में जनप्रतिनिधि बिकते हैं, पांसा बदल जाते हैं, अच्छा खासा बहुमत अल्पमत में बदल जाता है। यहां हांका और नीलामी सरेआम होती है लेकिन जननायक इसे परिवर्तन, बदलाव और क्रांति का नाम देते हैं। अब तो जनता के हितों की सुरक्षा के चलन्त सूत्र वाक्यों का इस्तेमाल भी नहीं होता बल्कि यही कहा जाता है कि उनके पक्ष की उपेक्षा हो रही थी। इसलिए सत्ता की बाजी पलट दी। यहां क्रांतिवीर के तगमें आसानी से बंट जाते हैं। सत्तारूढ़ नेता ने कुर्सी बचा ली तो वह जनता के हितों का रक्षक सही नेता है। अगर न बचा सका और कुर्सी पर कब्जा बागियों का हो गया तो अब बागी ही परिवर्तन के ध्वजवाहक और जनता के हित रक्षक हैं। आम आदमी तो यह भी नहीं कह सकता कि सत्ता का खेल देखते हुए उसे पौन सदी हो गई। कैसे कह दें कि यह जो पब्लिक है वह सब जानती है।
सोर्स - divyahimachal
