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- निकृष्ट राजनीति का नया...
एक समय था जब हिंदी फिल्मों के नायक मजदूर, कारखाना कामगार, कुली आदि के रूप में भी होते थे और खलनायक कोई दुष्ट उद्योगपति होता था। उसे निर्दयी और मजदूरों का शोषण करने वाला दिखाया जाता था। तब ''मजदूर का पसीना सूखने के पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए जनाब'' टाइप के डायलॉग दर्शकों की तालियां पाते थे। ऐसी फिल्मों के अंत में शोषक उद्योगपति या तो सुधर जाता था या जेल जाता था या फिर उसकी फैक्ट्री में ताला लग जाता था, लेकिन आम तौर पर उसकी बेटी नायक संग ही ब्याह रचाती थी। अब वैसी फिल्में नहीं बनतीं, लेकिन इन दिनों राजनीति के पर्दे पर यह कमी राहुल गांधी पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं। वह उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। वैसे तो अंबानी-अदाणी खास तौर पर उनके निशाने पर हैं, लेकिन वह अक्सर यह भी कहते हैं कि मोदी सरकार केवल 5-10 उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है।