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आदित्य चोपड़ा: स्वस्थ लोकतंत्र में हर किसी को आजादी होती है लेकिन नियमों और कानूनों का पालन नहीं किया जाए तो अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती है। सभ्य, सभ्रांत नागरिकों का यह दायित्व भी है कि स्वयं का और दूसरों का जीवन सुरक्षित और सहज बनाने के लिए नियमों और कायदे कानूनों का पालन करें और भावी पीढ़ी को इनका पालन करने की सीख दें। आमतौर पर हम सब ट्रैफिक नियमों को नजरंदाज करते हैं। सड़कों पर सब एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में दिखाई देते हैं। किशोर स्कूटर या स्कूटी लेकर हुड़दंग मचाते देखे जाते हैं। स्कूटी सवार किशोरियां भी किसी से कम नहीं हैं। अभिभावक भी अपने किशोर बच्चों के हाथों में कारों का स्टेयरिंग पकड़वा देते हैं, जबकि उनके पास वाहन चलाने का लाइसेंस भी नहीं होता। इससे 'हिट एंड रन' के कई केस हो चुके हैं। कई बड़े घरानों के किशार सड़कों पर सो रहे लोगों को कुचल कर आगे बढ़ जाते हैं। परेशानी झेलते हैं अभिभावक। कई अभिभावक छोटी उम्र में बच्चों को स्कूटी चलाते देख बड़े खुश होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं। बच्चों की जान चली जाती है या फिर वे गम्भीर रूप से घायल हो जाते हैं। ऐसा करके हम अपने बच्चों में ट्रैफिक सैंस पैदा नहीं कर रहे बल्कि उनकी जान जोखिम में ही डाल रहे हैं। जब नया सड़क कानून था तो लोगों ने हाहाकार मचा दिया था। अनेक राज्यों में नए सड़क कानून को लागू करने से मना कर दिया था या आगे टाल दिया था अथवा उसके कठोर स्वरूप को कम कर दिया था। स्कूटर, स्कूटी और बाइकें उसी प्रकार सामान्य सवारी हो गई हैं जिस प्रकार कभी साइकिलें हुआ करती थीं। एक समय था जब साइकिलों पर भी पथकर लगता था। अब वह दौर खत्म हो चुका है। सड़कों पर वाहन चलाने वालों के लिए नियम तो होने ही चाहिए। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने दोपहिया चालकों के लिए नए ट्रैफिक नियम जारी किए हैं। नए नियमों के मुताबिक अब चार साल से कम उम्र के बच्चों को टू-व्हीलर पर ले जाने के लिए सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना होगा। चालकों को बच्चों के लिए हैलमेट और हार्नेस बैल्ट का इस्तेमाल करना अनिवार्य होगा। साथ ही टू-व्हीलर की स्पीड 40 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। हार्नेस सेफ्टी बैल्ट को बच्चे स्कूल बैग की तरह पहन सकते हैं। राइडर से बैल्ट बंधा रहता है जिससे बच्चा सेफ होता है। नए ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर एक हजार का जुर्माना और तीन महीने तक ड्राइविंग लाइसेंस निलम्बित किया जा सकता है। यद्यपि ये नियम अगले वर्ष 15 फरवरी से लागू हो जाएंगे। नए नियम टू-व्हीलर पर पीछे बैठने वाले बच्चों के लिए अधिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही बनाए गए हैं। बच्चों की सुरक्षा को लेकर नए नियमों पर अभिभावकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। अभिभावक विचारों के चलते बंटे हुए दिखाई देते हैं। संपादकीय :पंजाब पंजाबियत और चुनावअर्श से फर्श तक लालूअश्विनी कुमार का इस्तीफाबहुत मुश्किल में निर्णायकगणहिजाब और हिन्दोस्तानयुद्ध से बाज आएं महाशक्तियांएक वर्ग इसे अपने ऊपर नई बंदिश मान रहा है तो दूसरा वर्ग इसे सही ठहरा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट के मुताबिक चार वर्ष से ज्यादा उम्र का बच्चा तीसरी सवारी के तौर पर गिना जाता है। ऐसे में अगर आपने दोपहिया वाहन पर बच्चों को बैठा लिया तो आपका चालान कट सकता है। मगर इस नियम को कोई मानने को तैयार नहीं। अब तो एक टू-व्हीलर पर तीन-चार सवारियां आम देखी जा सकती हैं। सड़कों पर भीड़ के बीच बेखौफ होकर फर्राटा भरते किशोर देखे जा सकते हैं। स्कूलों में छुट्टी होने पर ऐसे दृश्य आम हैं। वे न केवल अपनी जान जोखिम में डालते हैं, बल्कि दूसरों का जीवन भी खतरे में डालते हैं। वे असमय मौतों का शिकार हो रहे हैं। अभिभावकों को यह बात समझनी होगी कि भारत में हर रोज काफी लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओ में होती है। विश्व बैंक की रिपोर्ट ने जो आंकड़े जारी किए हैं जो हम सभी को सड़क नियमों का कड़ाई से पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली कुल मौतों की दस फीसदी मौतें केवल भारत में ही होती हैं।केन्द्र सरकार लोगों को जागरूक करने के लिए यातायात के नियमों का खूब प्रचार करती है लेकिन ओवर स्पीड, शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण कई लोगों की मौत हो जाती है। इन मौतों में सबसे अधिक संख्या युवाओं की है। सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बुरा प्रभाव गरीब परिवार पर पड़ता है। यदि किसी गरीब परिवार का कोई भी सदस्य सड़क दुर्घटना में जान गंवा देता है तो उसका परिवार दशकों पीछे चला जाता है। 2020 में दुर्घटनाओं में मौत के कुल 3,74,397 मामले सामने आए थे। इनमें से करीब 35 फीसदी सड़क हादसों में मारे गए थे। यह संख्या 2019 की तुलना में कम थी। सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों में से 43.6 फीसदी टू-व्हीलर वाहन पर सवार थे। कोई भी देश इतनी मौतों का क्रन्दन नहीं सुन सकता। बेहतर यही होगा कि लोग अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए नियमों का पालन करें। ऐेसे करने से बच्चों को ट्रैफिक नियमों का पालन करने की आदत पड़ेगी और वे सड़क पर सभ्रांत नागरिक की तरह व्यवहार करेंगे।