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आदित्य चोपड़ा: किसी भी देश के विकास को निर्बाध बनाये रखने में सेना या राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि ये उसकी राष्ट्रीय सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए देश के भीतर की सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों की निरन्तरता का मार्ग प्रशस्त करती हैं परन्तु इसके लिए बदलते समयानुसार इन सुरक्षा बलों के नवीनीकरण की भी आवश्यकता होती है परन्तु यह कार्य सबसे मुश्किल होता है क्योंकि केवल भविष्यदृष्टा नेतृत्व ही ऐसा जोखिम ले सकता है मार्ग से जिसमें सेनाओं की आधारभूत ढांचागत संरचना व्यवस्था में संशोधनों के साथ लड़ाकू ऊर्जा की निरन्तरता को बनाए रखा जा सके। यह निरन्तरता बनाये रखने के लिए आवश्यक संशोधनों की खोज केवल दूरदर्शी नेतृत्व के बस की बात ही होती है। सेना में भर्ती की जो नई प्रणाली 'अग्निपथ' मार्ग से 'अग्निवीरों' को तैयार करेगी वह भारत के तीनों सुरक्षा बलों वायु सेना, जल सेना व थल सेना के भीतर लगातार नवाचार के साथ यौवन ऊर्जा को संग्रहित रखते हुए युद्ध कौशल के जज्बे को युवा पीढ़ी का गहना बनाने में समर्थ रहेगी। यह दृष्टि प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की ही हो सकती है कि उन्होंने सेना में भर्ती के लिए ऐसे नये नियम बनाने की कल्पना को साकार किया जिससे युवा वर्ग युद्ध कला में पारंगत होने के साथ ही राष्ट्रीय आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। थल सैनिक, वायुसैनिक व नौसैनिक बनना प्रायः ग्रामीण पृष्ठभूमि के सामान्य पढे–लिखे युवक का सपना भी होता है। साधारण आर्थिक पृष्ठभूमि के इन नवयुवकों के लिए सैनिक बनना गौरव का विषय भी होता है। उनके लिए यह आजीविका का एेसा साधन होता है जिसके साथ राष्ट्रसेवा का भाव भी जुड़ा रहता है। समाज में भी सैनिक को बहुत ऊंचे दर्जे पर रख कर देखा जाता है। अतः प्रत्येक हुनरमन्द युवा को अगर उसकी प्रतिभा के बूते पर सेना में भर्ती होने का अवसर मिलता है तो पूरे समाज में उसके परिवार का सम्मान भी बढ़ता है। मगर सेना में भर्ती के लिए अंग्रेजों ने जो पद्धति विकसित की थी वह भारत के जाति मूलक समाज का लड़ाकू व गैर लड़ाकू जातियों का वर्गीकरण करके की थी। पिछली शताब्दियों में लड़ाइयों चरित्र पारंपरिक आयुध सामग्री व सैन्यबल संख्या पर ज्यादा निर्भर करता था परन्तु वर्तमान सदी में युद्धाें का चरित्र भी अधिकाधिक टैक्नोलोजी मूलक होता जा रहा है जिसमें साइबर व इंटरनेट टैक्नोलोजी भी महती भूमिका निभा रही है। आज का युवा इन दोनों ही टैक्नोलोजियों से प्रारम्भिक तौर पर विद्यार्थी जीवन में ही परिचित हो जाता है। अतः सुरक्षा बलों में ऐसे युवकों की जरूरत पहले से ही महसूस की जा रही थी जो वर्तमान समय की इस चुनौती का मुकाबला करने में जल्दी दक्ष बनाये जा सकें। अतः रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह इस दिशा में बहुत पहले से काम कर रहे थे क्योंकि रक्षामन्त्री होने के नाते राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करना उनका ही प्रमुख दायित्व है। अतः अग्निपथ नीति के अनुरूप जो भर्ती प्रणाली विकसित की गई है उसमें देशभर में फैली आईटीआई संस्थाओं की प्रमुख भूमिका रहेगी। दसवीं कक्षा पास अन्य छात्रों के साथ आईटीआई पास विद्यार्थियों को भर्ती का पात्र माना जायेगा। साढे़ 17 वर्ष से 21 वर्ष तक की आयु वर्ग के युवा यदि सुरक्षा बलों द्वारा नियत पात्रता पर खरे उतरते हैं तो उनकी भर्ती सेना में की जायेगी और उनका सेवाकाल चार वर्ष का होगा। भर्ती होने पर उन्हें छह महीने का फौज का सख्त प्रशिक्षण दिया जायेगा और उसके बाद सैनिक बना दिया जायेगा तथा न्यूनतम 30 हजार मासिक शुरू के दो वर्षों में व 40 हजार मासिक बाद के दो वर्षों में दिया जायेगा। इसके अलावा अन्य सैनिक भत्ते नियमानुसार होंगे। संपादकीय :एक नया क्वाड!अश्विनी जी की याद में एक गौरवशाली शाममोदी का मास्टर स्ट्रोकयू.पी.: कानून से ऊपर कोई नहींबंगलादेश ने दिखाया मुस्लिम देशों काे आईनाचुनाव आयोग की गुहारप्रत्येक वर्ष 46 हजार भर्तियां होंगी जिनमें से 25 प्रतिशत योग्य सैनिकों को सेना की नियमित सेवा में रखा जायेगा। इस प्रकार प्रति वर्ष तीनों सेनाओं को साढे़ 12 हजार सैनिक स्थायी तौर पर मिलते रहेंगे। चार वर्ष बाद जो साढे़ 35 हजार सैनिक नागरिक जीवन में आयेंगे उनकी आयु अधिकतम 25 वर्ष होगी और वे आजीविका के नये साधन पाने के लिए स्वतन्त्र होंगे परन्तु चार वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद इन्हें 12 लाख रुपए के लगभग एकमुश्त सेवा निधि दी जायेगी। चार वर्ष के सेवाकाल के दौरान इनका अधिकतम जोखिम बीमा 48 लाख रुपए का रहेगा। इस प्रकार प्रतिवर्ष जो साढे़ 35 हजार युवक सेना से बाहर आयेंगे वे अपने-अपने क्षेत्र में कौशल युक्त होंगे और राज्य पुलिस से लेकर अर्ध सैनिक बलों के लिए अपेक्षाकृत अधिक योग्य होंगे। एक मायने में देखा जाये तो रोजगार की यह ऐसी अनूठी योजना होगी जिसका लाभ पूरे राष्ट्र को बहुत किफायती तौर पर मिलेगा। इससे युवा पीढ़ी के जोश, जज्बे व जुनून को समायोजित करने में भी मदद मिलेगी। मगर कुछ लोग इस व्यवस्था में कमियां निकालने की कोशिशें भी कर रहे हैं और इसकी आलोचना कर रहे हैं। मगर एेसे लोग प्रायः वे ही हैं जो लकीर के फकीर बने रहना चाहते हैं। उनका यह भी कहना है कि इस नीति से समाज में सैनिक मानसिकता को बढ़ावा मिलेगा परन्तु वे भूल जाते हैं कि इससे समाज में अनुशासन की भावना भी बढे़गी क्योंकि फौज से निकला प्रत्येक सैनिक सामाजिक जीवन में अपनी विशिष्टता के साथ जीना चाहता है। समाज के सामान्य लोगों के बीच उसकी छवि श्रेष्ठ होती है। अतः इस दूरदर्शितापूर्ण नीति के लिए जहां प्रधानमन्त्री ने दूरदर्शिता दिखाई है वहीं रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह ने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए हर चुनौती का मुकाबला बदलते समय के अनुरूप करने के लिए दृढ़ निश्चय का प्रदर्शन किया है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारी फौज के लिए ये पंक्तियां हर समय में सार्थक रही हैं,''इज्जत वतन की हमसे है, ताकत वतन की हमसे हैइन्सान के हम रखवाले।