सम्पादकीय

चांद तक पहुंचने की नई होड़, इस दशक इंसानी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बनेगा चंद्रमा !

Gulabi
26 Oct 2020 12:34 PM GMT
चांद तक पहुंचने की नई होड़, इस दशक इंसानी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बनेगा चंद्रमा !
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लगभग 51 वर्ष पहले 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने जब चंद्रमा पर कदम रखा था,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लगभग 51 वर्ष पहले 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने जब चंद्रमा पर कदम रखा था, तब उन्होंने कहा था कि एक आदमी का यह छोटा सा कदम मानवता के लिए एक विराट छलांग है। अपोलो मिशन के तहत अमेरिका ने वर्ष 1969 से 1972 के बीच चांद की ओर कुल नौ अंतरिक्ष यान भेजे और छह बार इंसान को चांद पर उतारा। अपोलो मिशन खत्म होने के तीन दशकों के बाद तक चंद्र अभियानों के प्रति एक बेरुखी सी दिखाई दी थी। मगर चांद की चाहत दोबारा बढ़ रही है।

हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने आर्टेमिस मून मिशन की रूपरेखा प्रकाशित की है, जिसके अंतर्गत साल 2024 तक इंसान (एक स्त्री और एक पुरुष) को चंद्रमा पर भेजने की योजना है। बीते 14 अक्टूबर को आठ देशों ने आर्टेमिस मिशन को लेकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौता किया है। इस समझौते के मुताबिक सभी आठ देश मिलकर जिम्मेदारी के साथ चंद्रमा के अन्वेषण में सहयोग करेंगे। इस मिशन पर काम कई दशकों पहले स्पेस लॉन्च सिस्टम और ओरियन कैप्सूल के निर्माण के साथ शुरू हुआ था और अभी यह अपने अंतिम दौर में है।आर्टेमिस मिशन के जरिये नासा इंसानों को करीब 51 वर्षो बाद फिर एक बार चांद पर उतारने की योजना बना रहा है। यह मिशन इस दशक का सबसे खास और महत्वपूर्ण मिशन होने जा रहा है जो कि अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगा। भले ही यह मिशन चांद से शुरू होगा, पर यह भविष्य में प्रस्तावित मंगल अभियान और दूसरे अन्य अंतरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

पहली बार 1959 में रूसी (तत्कालीन सोवियत) अंतरिक्ष यान लूना-1 चंद्रमा के करीब पहुंचने में कामयाब रहा। सोवियत संघ ने 1959 से लेकर 1966 तक एक के बाद एक कई मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की धरती पर उतारे। उसके बाद अमेरिका ने अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए अकूत आर्थिक और वैज्ञानिक संसाधन झोंक दिए। आखिरकार नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा की सतह पर कदम रखने वाले पहले इंसान के रूप में इतिहास में दर्ज हुए।

अपोलो मिशन के जरिये 12 इंसानों ने चंद्रमा पर चलने का गौरव प्राप्त किया, जबकि 10 को उसकी कक्षा में चक्कर लगाने का मौका मिला। शीतयुद्ध की राजनयिक, सैन्य विवशताओं और मिशन के बेहद खर्चीला होने के कारण अपोलो-17 के बाद इसे समाप्त कर दिया गया। तब से लेकर आधी सदी तक अंतरिक्ष कार्यक्रमों को मंजूरी देने वाले नियंताओं की आंख से मानो चांद ओझल ही रहा। मगर आज चांद पर पहुंचने के लिए जिस तरह से विभिन्न देशों में होड़ लगती हुई दिखाई दे रही है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि चांद फिर से निकल रहा है।

इसरो को चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक विफलता ने इसके उन्नत संस्करण चंद्रयान-3 के लिए नए जोश के साथ प्रेरित किया है। चीन 2024 तक चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्री उतारने की तैयारी कर रहा है। रूस 2030 तक चांद पर अपने लोगों को उतारने की तैयारी में है। कई निजी कंपनियां चांद पर उपकरण पहुंचाने और प्रयोगों को गति देने के उद्देश्य से नासा का ठेका हासिल करने की कतार में खड़ी हैं। इसका मुख्य कारण है चांद का धरती के नजदीक होना।

वहां तक पहुंचने के लिए 3.84 लाख किमी की दूरी सिर्फ तीन दिन में पूरी की जा सकती है। चांद से धरती पर रेडियो कम्यूनिकेशन स्थापित करने में महज एक से दो सेकेंड का समय लगता है। सवाल यह है कि बीते पांच दशकों में किसी देश ने चांद पर पहुंचने के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं किया, तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्हें वहां जाने की दोबारा जरूरत महसूस होने लगी है?

इसके लिए अलग-अलग देशों के पास अपनी-अपनी वजहें हैं। मसलन भारत के लिए चंद्र अभियान खुद को तकनीकी तौर पर उकृष्ट दिखाने का सुनहरा मौका होगा। चीन तकनीक के स्तर पर खुद को ताकतवर दिखाकर महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है। अमेरिका के लिए चांद पर जाना मंगल पर पहुंचने से पहले का एक पड़ाव भर है। लेकिन चंद्रमा की नई होड़ के पीछे सबसे बड़ा कारण वहां पानी मिलने की संभावना है। हालिया अध्ययनों में चांद के ध्रुवीय गड्ढों में बर्फ होने की उम्मीद जताई गई है।यह वहां जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पेयजल का दुर्लभ स्नोत तो होगा ही, सोलर ऊर्जा के जरिये पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विखंडित भी किया जा सकता है। ऑक्सीजन सांस लेने के लिए हवा मुहैया करा सकती है, जबकि हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जा सकता है। चांद पर भविष्य में एक रिफ्यूलिंग स्टेशन बनाया जा सकता है, जहां अपने टैंक भरकर हमारे अंतरिक्ष यान सौरमंडल के लंबे अभियान पर आगे निकल सकते हैं।

विभिन्न देशों की सरकारों की नजर चंद्रमा के कई दुर्लभ खनिजों जैसे सोने, चांदी, टाइटेनियम के अलावा उससे टकराने वाले क्षुद्र ग्रहों के मलबों की ओर भी है, मगर वैज्ञानिकों की विशेष रुचि चंद्रमा के हीलियम-3 के भंडार पर है। हीलियम-3 धरती की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ इसके कारोबार में लगे लोगों को खरबों डॉलर भी दिला सकता है।

भविष्य के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टरों में इस्तेमाल के लिहाज से यह सबसे बेहतरीन और साफ-सुथरा ईंधन है। जाहिर है, इस दशक में चांद इंसानी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बनेगा, क्योंकि वहां खनन से लेकर होटल बनाने और मानव बस्तियां बसाने तक की योजनाओं पर काम चल रहा है। देखते हैं, चंद्रमा की यह नई दौड़ क्या नतीजे लाती है।

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