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By: divyahimachal
पहली बार हिमाचल के मंदिर धार्मिक पर्यटन की आहट में अपनी आर्थिक क्षमता का अवलोकन कर रहे हैं और अगर इस दिशा में तमाम संभावनाओं का दोहन किया जाए, तो प्रदेश में आर्थिकी का यह मॉडल परवान चढ़ेगा। प्रदेश सरकार मंदिर दर्शन की अहमियत में वीआईपी शुल्क के जरिए एक नई परिपाटी चिंतपूर्णी से शुरू कर रही है। आइंदा वीआईपी पास के लिए ग्यारह सौ का भुगतान करके एक साथ पांच श्रद्धालु मंदिर के प्राथमिक दर्शन करने के पात्र हो जाएंगे। मंदिर दिन में अभी सिर्फ पांच सौ वीआईपी पास ही जारी करेगा, यानी ढाई हजार लोग इस तरह शुल्क अदा करके महीने में 165 लाख और साल में करीब बीस करोड़ अतिरिक्त आय पैदा कर सकते हैं। यह व्यवस्था अगर इसी तरह कम से कम आधा दर्जन प्रमुख मंदिरों पर भी वीआईपी दर्शन हो जाएं, तो धार्मिक पर्यटन के इस स्वरूप में सवा सौ करोड़ रुपए अर्जित हो जाएंगे। यह तो एक मात्र प्रयास है जो अब तक की धार्मिक शृंखलाओं में नई आर्थिकी का विकास कर रहा है। धार्मिक पर्यटन को अगर नवाचार, निवेश, आस्था, मनोरंजन, शहरी व आवासीय विकास के साथ-साथ हाई एंड टूरिस्ट की जरूरतों के साथ जोडक़र देखें, तो कई अन्य विकल्प भी जुड़ जाएंगे। मसलन मंदिरों की आय के निवेश से धार्मिक नगरियों व वहां पर्यटन अधोसंरचना का विकास दक्षिण भारतीय मंदिरों की तर्ज पर किया जाए, तो प्रमुख धार्मिक स्थलों की वार्षिक आय कम से कम पांच हजार करोड़ तक पहुंचाई जा सकती है। ये मंदिर धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ सांस्कृतिक पर्यटन के भी प्रमुख केंद्र हो सकते हैं, जबकि कुछ खास उत्पादों जैसे रोट, धूप, अगरबत्ती, प्रकाशन व गिफ्ट उत्पादन के केंद्र के रूप में संरक्षक की भूमिका अदा कर सकते हैं। मंदिरों की आय जोडक़र मंदिर रेल परियोजना के तहत कोंकण रेल की तरह चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, कांगड़ा, चामुंडा, बैजनाथ, दियोटसिद्ध, नयनादेवी से मंडी तक की धार्मिक आर्थिकी का विकास नहीं, बल्कि प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता भी प्रशस्त कर सकते हैं।
इतना ही नहीं, हिमाचल में धार्मिक की दो अन्य धाराओं पर भी सरकार का दखल चाहता है यानी सिख व बौद्ध पर्यटन के जरिए भी प्रदेश की आर्थिक छवि बदली जा सकती है। सिख पर्यटन ऊना के रास्ते धरोहर गुरुद्वारा स्थलों को जोडक़र तथा इसी तरह बौद्ध एवं तिब्बती पर्यटन को भी अलग से सर्किट विकसित किया जा सकता है। ऐसे पर्यटन के साथ समागमों, समारोहों व रिवायतों की एक स्थायी तहजीब से आर्थिक क्षमता व वित्तीय संपन्नता में इजाफा होगा। यह दीगर है कि प्रदेश को धार्मिक पर्यटन विकास की नियमावली सुदृढ़ करते हुए प्रबंधन की परिपाटी भी बदलनी होगी। तमाम राष्ट्रीयकृत मंदिरों के प्रबंधन के लिए एक केंद्रीय ट्रस्ट या मंदिर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करके एक स्थायी कॉडर की भी रूपरेखा बना लेनी चाहिए। बहरहाल वीआईपी दर्शन की पहली खेप के रूप में चिंतपूर्णी के मॉडल को अन्य प्रमुख मंदिरों में भी त्वरित से अमल में लाना होगा। इसके साथ मंदिरों के वित्तीय प्रबंधन को महज आय-व्यय या राजनीतिक सत्ता के इस्तेमाल के बजाय स्वतंत्र रूप से हिमाचल की आर्थिकी से जोडक़र देखना होगा, ताकि धार्मिक पर्यटन की क्षमता को बढ़ाते हुए आमदनी से आर्थिकी तक प्रदेश कम से कम पांच हजार करोड़ के लक्ष्य तक पहुंच सके।
Rani Sahu
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