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सोर्स - Jagran
भारत में आत्मघाती हमले की तैयारी कर रहे इस्लामिक स्टेट के एक आतंकी का रूस में पकड़ा जाना खतरे की एक नई घंटी है। यह शायद पहली बार है, जब कोई आतंकी रूस के रास्ते भारत आकर आतंकवादी हमले को अंजाम देने की फिराक में था। रूस से प्राप्त जानकारी के अनुसार पकड़ा गया आतंकी मध्य एशिया का है और उसने तुर्किये में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इसका मतलब है कि तुर्किये आतंकियों के प्रशिक्षण का अड्डा बना हुआ है। ध्यान रहे कि राष्ट्रपति एर्दोगन के सत्ता में आने के बाद से तुर्किये में चरमपंथ बढ़ा है।
एक समय था, जब दुनिया भर से मुस्लिम युवा इस्लामिक स्टेट के आतंक में हाथ बंटाने के लिए तुर्किये के रास्ते ही सीरिया और फिर वहां से इराक पहुंचते थे। तुर्किये की इस्लामिक स्टेट के प्रति नरमी किसी से छिपी नहीं। एक तथ्य यह भी है कि राष्ट्रपति एर्दोगन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से किस तरह पाकिस्तान के भारत विरोधी एजेंडे में उसका साथ देने में लगे हुए हैं। वह सऊदी अरब के वर्चस्व को चुनौती देकर इस्लामी जगत का अगुआ बनने के लिए भी बेचैन हैं।
भारत को रूस से और अधिक जानकारी हासिल करने के साथ इसकी भी पड़ताल करनी होगी कि कहीं तुर्किये भारत विरोधी तत्वों का नया अड्डा तो नहीं बन रहा है और इसमें पाकिस्तान की भूमिका तो नहीं? भारतीय खुफिया एजेंसियों को इसकी भी तह तक जाना होगा कि रूस में पकड़े गए आतंकी का भारत में संपर्क सूत्र कौन था और वह किसकी मदद से सत्ताधारी दल के किसी बड़े नेता को निशाना बनाने की तैयारी कर रहा था?
यह संभव नहीं कि मध्य एशिया का कोई आतंकी स्थानीय तत्व की सहायता के बगैर भारत में आत्मघाती हमले की साजिश रच रहा हो। रूस में पकड़े गए आतंकी के भारत स्थित मददगारों के सक्रिय होने की आशंका इसलिए भी है, क्योंकि केरल, कर्नाटक और देश के दूसरे हिस्सों से इस्लामिक स्टेट के कई आतंकी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं, जो अफगानिस्तान जाने की ताक में थे। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट की सक्रियता तेजी से बढ़ रही है और फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि तालिबान इस आतंकी समूह पर लगाम लगाने में सक्षम है।
भारतीय खुफिया एजेंसियों को देश के भीतर सक्रिय उन तत्वों पर भी नजर रखनी होगी, जिन्होंने नुपुर शर्मा प्रकरण को लेकर मुस्लिम देशों में भारत के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया। यह चिंता की बात है कि इंटरनेट मीडिया न केवल दुष्प्रचार में सहायक बन रहा है, बल्कि कट्टरता को बढ़ावा देने के साथ आतंकियों की भर्ती में भी।

Rani Sahu
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