- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- New National Education...
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 उपरोक्त सभी शिक्षण सोपानों को समुचित महत्व देते हुए उनमें व्यापक बदलावों की प्रस्तावना करती है। मसलन, स्टार्स (स्ट्रेंथनिंग टीचिंग-लìनग एंड रिजल्ट्स फॉर स्टेट्स) एक ऐसा ही प्रोजेक्ट है। इसके लागू होने के बाद तोतारटंत संस्कृति समाप्त होगी और प्रारंभिक शिक्षा का सशक्तीकरण होगा। राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र के रूप में परख (परफॉरमेंस असेसमेंट, रीव्यू एंड एनालिसिस ऑफ नॉलेज फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट) की स्थापना द्वारा सभी राज्यों के अधिगम परिणामों का मानकीकरण किया जाएगा। स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
यह शिक्षा नीति छात्रों को शिक्षा व्यवस्था का सर्वप्रमुख हितधारक मानती है। उच्चतम गुणवत्तायुक्त शिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं के लिए जीवंत, गतिशील और सर्व सुविधायुक्त परिसर की अनिवार्यता को रेखांकित करती है। समाज के वंचित तबकों और आíथक रूप से असमर्थ समुदायों तक गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की पहुंच और उसकी वहनीयता (एफोर्डेबिलिटी) इसकी केंद्रीय चिंता है। यह शिक्षा नीति पूर्व-विद्यालय से पीएचडी तक के शिक्षार्थी के लिए क्रमबद्ध ढंग से सीखने के लिए संस्कारों, जीवन-मूल्यों और रोजगारपरक व जीवनोपयोगी कौशलों का निर्धारण करती है। युवा पीढ़ी द्वारा अर्जति ये मूल्य और कौशल भारत को सच्चे अर्थो में एक लोकतांत्रिक, न्यायपूर्ण, समतामूलक और जनकल्याणकारी राष्ट्र के रूप में विकसित होने में सहायता करेंगे। ये गुण भारतीय अर्थव्यवस्था को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित होने में भी सहायक होंगे। शिक्षार्थी आजीविका के प्रति आश्वस्त होकर देश की आíथक-सांस्कृतिक प्रगति में अधिकतम योगदान दे सकेंगे।
उच्च शिक्षा की वर्तमान पारिस्थितिकी में सुविधासंपन्न वर्गो का वर्चस्व है। वर्तमान उच्च शिक्षा की पहुंच समाज के अत्यंत सीमित हिस्से तक ही है। उच्च शिक्षा क्षेत्र में इन तबकों को आकर्षति करने और उन्हें अपनी पढ़ाई/ कार्यक्रम निíवघ्न पूरा करने के लिए उचित प्रोत्साहन और सहयोग देने का कोई संवेदनशील और विश्वसनीय तंत्र अभी तक विकसित नहीं हो सका है। लगभग सभी सार्वजनिक वित्त पोषित महाविद्यालयों और अधिकांश विश्वविद्यालयों में साधनों, संसाधनों और शोध-ढांचे व निधियों का जबरदस्त अभाव है। अनेक (सैकड़ों) महाविद्यालयों की एक ही विश्वविद्यालय से संबद्धता के कारण उन महाविद्यालयों में स्नातकस्तरीय शिक्षा का स्तर खराब है और उनकी भूमिका डिग्री बांटने तक सीमित है। वंचित वर्ग प्राय: इन्हीं गुणवत्ताहीन स्थानीय संस्थानों में पढ़ने को अभिशप्त हैं, क्योंकि उनके पास साधनों व जागरूकता का अभाव है। अच्छे संस्थानों में प्रवेश के लिए भारी प्रतिस्पर्धा है, जिसमें इन साधन सुविधाहीन अभागों का टिक पाना मुश्किल होता है। नतीजन ये वर्ग क्रमश: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दायरे से बाहर होते जा रहे हैं।
सभी छात्रों की पढ़ाई पूरी करने का लक्ष्य : यह नीति लैंगिक संतुलन और संवेदनशीलता के प्रति विशेष रूप से सजग है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का प्रभाव इस समतामूलक और समावेशी शिक्षा नीति पर साफ परिलक्षित होता है। इन वंचित वर्गो को अकादमिक सहयोग और आवश्यक परामर्श देने के लिए सहायता केंद्र खोलने का भी प्रावधान किया गया है। ये सहायता केंद्र इन वंचित वर्गो की न केवल गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षण संस्थानों में पहुंच सुनिश्चित करेंगे, बल्कि उनका सफल और सुखद रिटेंशन यानी छात्रों द्वारा पढ़ाई जारी रखना और कार्यक्रम पूरा करना भी उन्हीं का दायित्व होगा। संस्थानों द्वारा वंचित वर्गो के छात्रों के लिए ब्रिज कोर्स भी संचालित किए जाएंगे, ताकि उनके और सुविधासंपन्न छात्र-छात्रओं के बीच की खाई को पाटा जा सके।
सार्वजनिक शिक्षा में पर्याप्त निवेश : राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम छह प्रतिशत शिक्षा पर व्यय करने का संकल्प व्यक्त करती है। हालांकि वर्ष 1968 की शिक्षा नीति और वर्ष 1986 व 1992 की शिक्षा नीति में भी इस बात की अनुशंसा की गई थी। अभी शिक्षा पर कुल व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 4.43 प्रतिशत के आसपास है। अमेरिका, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, जर्मनी जैसे देशों में शिक्षा पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत तक है। सार्वजनिक शिक्षा में पर्याप्त निवेश करके ही भारत को एक अंतरराष्ट्रीय ज्ञान-केंद्र बनाया जा सकता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सार्वजनिक शिक्षा में पर्याप्त निवेश करके उसे सर्व समावेशी और गुणवत्तापूर्ण बनाना होगा। इस नीति में शिक्षा के ढांचे में जिन आमूलचूल बदलावों और नवाचारों की परिकल्पना की गई है, उनके लिए पर्याप्त आíथक संसाधनों की आवश्यकता होगी।
अभी देश की लगभग तीन-चौथाई युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा के दायरे से बाहर है। इसमें सबसे बड़ी संख्या दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, ग्रामीणों, भारतीय भाषाभाषियों की है। इन सबको उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित करना और उत्प्रेरित समुदायों के लिए गुणवत्तापूर्ण और वहनीय सार्वजनिक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना इस शिक्षा नीति की बड़ी चुनौती होगी। यदि यह शिक्षा नीति यथा-प्रस्तावित धरातल पर लागू हो पाती है और स्व-घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होती है, तो 21वीं सदी भारत और भारतवासियों की सदी होगी।
यह शिक्षा नीति प्रत्येक जिले में कम से कम एक सार्वजनिक वित्त पोषित नए बहु-विषयक महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय की स्थापना या वर्तमान संस्थान के उन्नयन की प्रस्तावना करती है। ये नवनिíमत उच्च शिक्षा संस्थान वर्ष 2040 तक लक्षित नामांकन संख्या तक पहुंचेंगे। वर्ष 2018 में सकल नामांकन अनुपात 26.3 प्रतिशत है। इसे 2035 तक 50 प्रतिशत करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। इसके लिए वंचित क्षेत्रों और तबकों तक उच्च शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करनी होगी और इन क्षेत्रों में सार्वजनिक वित्त पोषण वाले उच्च स्तरीय उच्च शिक्षा संस्थान पर्याप्त संख्या में खोलने होंगे। वंचित वर्गो के लिए निजी और सार्वजनिक, दोनों ही प्रकार के संस्थानों में भारी संख्या में छात्रवृत्तियां और निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है, ताकि कोई भी शिक्षार्थी संसाधनों के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित न रह जाए।
सरकार की ओर से आइआइटी और आइआइएम जैसे उच्च स्तरीय, गुणवत्तापूर्ण और बहु-विषयक शिक्षा और शोध विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएंगे। सभी बहु-विषयक उच्च शिक्षण संस्थानों में स्टार्ट अप, इन्क्यूबेशन सेंटर, प्रौद्योगिकी विकास केंद्र आदि की स्थापना की जाएगी। ये संस्थान नवाचार में प्रवृत्त होंगे। इससे गुणवत्तापूर्ण और वहनीय शिक्षा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो सकेगी। उच्च स्तरीय बहु-विषयक शिक्षा की स्थानीय उपलब्धता के प्राथमिक लाभार्थी वंचित वर्गो के शिक्षार्थी होंगे।
स्थानीय/ भारतीय भाषाओं को माध्यम के रूप में चुनते हुए बहु-विषयक स्नातक शिक्षा की ओर बढ़ने का संकल्प इस नीति में अभिव्यक्त होता है। उच्च शिक्षा को अंग्रेजी और औपनिवेशिकता की जकड़न से बाहर निकालकर यह नीति हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को ज्ञान-सृजन और अनुसंधान की माध्यम भाषा के रूप में प्रतिष्ठापित करने की प्रस्तावना करती है। भारत में उच्च शिक्षा क्षेत्र में शिक्षा-माध्यम के रूप में भारतीय भाषाओं की घोर उपेक्षा होती रही है। इसने न सिर्फ अधिगम परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, बल्कि वंचित वर्गो को उच्च शिक्षा से विरत भी किया है। अनेक सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई है कि उच्च शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएं न होने से वंचित वर्गो के अधिसंख्य शिक्षार्थी या तो उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश ही नहीं ले पाते या फिर बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। यह शिक्षा नीति माध्यम के रूप में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को अपनाने पर बल देकर इन वर्गो को बड़ी राहत और अवसर देती है।
इस शिक्षा नीति में पाठ्यक्रमों/ संस्थानों में प्रवेश और निकास के कई विकल्प होंगे। यह आजीवन सीखने की संभावनाओं को प्रोत्साहित करने वाली पहल है। भारत में स्कूली शिक्षा हो या उच्च शिक्षा, संसाधनों के अभाव में शिक्षाíथयों का ड्रॉपआउट रेट बहुत ज्यादा है। इसमें वंचित वर्गो की संख्या सर्वाधिक है।
स्नातक उपाधि तीन या चार वर्ष की होगी। एक साल पूरा करने पर सर्टििफकेट, दो साल करने पर डिप्लोमा, तीन साल के बाद स्नातक की डिग्री देने का प्रस्ताव है। चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम करने पर मेजर और माइनर विषयों के चयन की सुविधा होगी तथा रिसर्च प्रोजेक्ट करने का भी अवसर होगा और शोध सहित स्नातक डिग्री प्राप्त करने का विकल्प होगा। तीन वर्षीय स्नातक करने वालों के लिए स्नातकोत्तर दो साल का और चार वर्षीय स्नातक करने वालों के लिए स्नातकोत्तर एक साल का होगा।
वस्तुत: चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम करने की वजह ड्रॉपआउट होने वाले छात्र-छात्रओं को उनकी अध्ययन अवधि के अनुसार सर्टििफकेट/ डिप्लोमा/ डिग्री प्रदान करके उनकी अध्ययन अवधि को बर्बाद होने से बचाया जा सकेगा। ये प्रमाण-पत्र और इस अवधि में अर्जति कौशल उन्हें रोजगार-प्राप्ति में भी सहायता करेंगे। इसके अलावा अपने स्नातक कार्यक्रम को बीच में छोड़ने वाले शिक्षार्थी परिस्थितियां अनुकूल होने पर पुन: प्रवेश लेकर आगे की पढ़ाई पूरी करते हुए अपना कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न कर सकेंगे। इस प्रावधान से वंचित वर्गो के शिक्षार्थियों को सर्वाधिक लाभ होगा।