सम्पादकीय

नया नाम, पुराने सवाल

Gulabi Jagat
29 Jun 2022 4:39 AM GMT
नया नाम, पुराने सवाल
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सम्पादकीय न्यूज
By NI Editorial

अब 600 बिलियन डॉलर की इस योजना का नाम अब पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर रखा गया है। बहरहाल, नाम भले नया हो, लेकिन पुराने सवाल अभी भी कायम हैँ।

साल भर पहले जब जी-7 की शिखर बैठक जब ब्रिटेन में हुई थी, तब इन देशों ने बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड नाम से अपनी वैश्विक इन्फ्रास्ट्रक्चर योजना दुनिया के सामने रखी थी। जग-जाहिर है कि चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना के जरिए जिस तरह दुनिया भर में अपना प्रभाव बढ़ाया है, उससे पश्चिमी देश परेशान रहे हैँ। तो उन्होंने उसका जवाब देने के लिए अपनी योजना पेश की। लेकिन साल भर में बात कहीं आगे नहीं बढ़ी। बल्कि इसी नाम से अमेरिका में घोषित घरेलू इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी में ही समर्थन नहीं जुटा सके। तो अब नाम बदल कर उसी मकसद से नई योजना उन्होंने दुनिया के सामने रखी है। 600 बिलियन डॉलर की इस योजना का नाम अब पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर रखा गया है। बहरहाल, नाम भले नया हो, लेकिन पुराने सवाल अभी भी कायम हैँ। बीते एक साल के अंदर यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन अलग-अलग अपनी ऐसी योजना का एलान कर चुके हैँ। ईयू की 300 बिलियन यूरो की योजना का नाम ग्लोबल गेटवे है। उधर ब्रिटेन ने क्लीन ग्रीन इनिशिएटिव प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। खबरों के मुताबिक जापान भी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की 65 बिलियन डॉलर की योजना का खाका तैयार कर रहा है।

तो अब चुनौती यह है कि पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर योजना के साथ इन सबका तालमेल कैसे बने। जर्मनी के चांसलर ओलोफ शोल्ज ने स्वीकार किया है कि इन योजनाओं से भ्रम पैदा हुआ है। वैसे सबसे बड़ा सवाल धन जुटाने का है। इसका कोई साफ रोडमैप सामने नहीं है। बाइडेन ने कहा कि अमेरिका अगले पांच साल में 200 बिलियन डॉलर जुटाएगा। ये रकम सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के योगदान से जुटाई जाएगी। लेकिन क्या निजी क्षेत्र सचमुच इसमें भूमिका निभाएगा? एक और पहलू ऐसा है, जिससे नई योजना में विडंबना का पहलू जुड़ता है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए पूंजीगत सामग्रियों का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक चीन ही है। तो क्या पश्चिमी देश चीन को नए ग्राहक उपलब्ध करवाने जा रहे हैं? और फिर ये बात तो अपनी जगह मौजूद ही है कि नकल से असल का मुकाबला करना हमेशा मुश्किल साबित होता।

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