सम्पादकीय

युद्ध की नई लपट

Subhi
15 May 2021 2:09 AM GMT
युद्ध की नई लपट
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यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद में इजराइल की कार्रवाई ने एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बना डाले।

यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद में इजराइल की कार्रवाई ने एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बना डाले। चार दिन से इजराइल और फिलस्तीन एक दूसरे पर मिसाइलें और बम गिरा रहे हैं। अब तक सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। दोनों तरफ के रिहायशी इलाके खंडहरों में तब्दील हो रहे हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इजराइल और फिलस्तीन के बीच भड़के इस युद्ध में महाशक्तियां भी सक्रिय हो उठी हैं। ऐसा नहीं है कि इजराइल और फिलस्तीन के बीच टकराव कोई पहली बार हुआ है। लेकिन इस बार जिस तरह से इजराइल ने आक्रामक रुख अख्तियार किया है, उससे तो लग रहा है वह फिलस्तीन को मटियामेट करके ही दम लेगा। अगर बमों और मिसाइलों से हमलों का यह सिलसिला जल्द ही नहीं थमा और बड़ी ताकतें भी इसमें कूद पड़ीं, तो इससे तीसरे विश्वयुद्ध की नींव पड़ते देर नहीं लगने वाली। ऐसे में युद्ध की लपटें एक बार फिर हजारों बेकसूरों को लील जाएंगी।

मामला इस बार ज्यादा इसलिए गरमाया कि अल अक्सा मस्जिद में इजराइली कार्रवाई रमजान के दौरान की गई। भले ही पूरा मुसलिम जगत इस पर अभी मुखर नहीं हुआ हो, लेकिन इजराइल की इस हरकत से सुन्नी बहुल देशों में भयानक गुस्सा है। पाकिस्तान और तुर्की तो जिस तरह से खुल कर फिलस्तीन के साथ आ गए हैं उससे हवा का रुख समझा जा सकता है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान रेसेप तैय्यप ने तो रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से इजराइल को कड़ा सबक सिखाने को कहा है। उधर, अमेरिका खुल कर इजराइली कार्रवाई का समर्थन कर रहा है। जाहिर है, रूस भी बहुत देर तक शांत नहीं बैठने वाला। अल अक्सा मस्जिद से फिलस्तीनियों को खदेड़ने की इजराइल ने जो कार्रवाई की, लगता है वह सुनियोजित थी। इसका मकसद फिलस्तीनियों को उकसाना और फिर हमले का बहाना ढूंढ़ना था।
मौजूदा लड़ाई का नतीजा इजराइली शहरों में अरब मूल के लोगों और यहूदियों के बीच दंगों के रूप में भी देखने को मिल रहा है। इजराइल में अरब मूल के लोगों की आबादीइक्कीस फीसद है। ऐसे में इजराइल में अरब-यहूदी संघर्ष और भयानक रूप ले ले तो कोई आश्चर्य नहीं।
दुनिया के हालात के मद्देनजर इजराइल और फिलस्तीन के बीच मौजूदा संघर्ष थमना चाहिए। इसी में सबकी भलाई है। हालांकि दोनों पक्षों के बीच समस्या का कोई समाधान दूर-दूर तक नजर नहीं आता। इसका कारण इस संघर्ष में अमेरिका जैसी ताकतों का रवैया है। इजराइल पश्चिम एशिया में अमेरिका का प्रतिनिधि देश है। उसी के जरिए इस क्षेत्र में अमेरिका के हित सधते हैं। अमेरिका के दम पर ही इजराइल फिलस्तीन की सत्ता पर काबिज हमास को मिटा देने के सपने देखता रहा है। पश्चिमी देश पहले से ही हमास को उग्रवादी संगठन मानते हैं। इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि हमास जिस ताकत से इजराइल को चुनौती दे रहा है, उसके पीछे भी कई शक्तियां होंगी।
गौर इस बात पर भी किया जाना चाहिए कि हमास जिस तरह से इजराइली शहरों को निशाना बना रहा है, उससे उसकी बढ़ती सैन्य ताकत का भी पता चलता है। जाहिर है, हमास को सैन्य मदद देने वालों की भी कमी नहीं है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान में तालिबान का उदय अमेरिकी नीतियों की देन रहा है। इजराइल को इससे सबक लेना चाहिए। हमास भी इजराइल की ही देन है। लेकिन अब वही उसके लिए संकट बन गया है। ऐसे में अफगानिस्तान में जो हश्र अमेरिका का हुआ, आगे चल कर वैसे ही नतीजे कहीं इजराइल को भी न झेलने पड़ जाएं!

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