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आजादी से पहले अंग्रेज भारत पर नौकरशाहों के जरिये ही राज करते थे
योगेंद्र नारायण। आजादी से पहले अंग्रेज भारत पर नौकरशाहों के जरिये ही राज करते थे। लेकिन आजादी के बाद जैसे-जैसे देश की जरूरतें बदलीं, उसके साथ ही धीरे-धीरे नौकरशाही भी बदली। उसका स्टील फ्रेम न सिर्फ कमजोर हुआ, बल्कि अंग्रेजी राज के साथ ही गायब भी हो गया। तब नौकरशाही राज करती थी, अब वह जनता की सेवा करती है।
अंग्रेजों के समय प्रशासनिक सेवाओं को प्रोसेस ओरिएंटेड यानी प्रक्रिया जनित बनाया गया था। हमें हर हालत में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना होता था। जहां प्रक्रिया से हटे, तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से लताड़ पड़ती थी। अब प्रशासनिक सेवाएं आउटपुट ओरिएंटेड हो गई हैं। प्रशासनिक सुधार आयोगों की अनुशंसा लागू करने से यह बदलाव आया है। अब सार्वजनिक उद्यम के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) ही खुद एमओयू साइन कर रहे हैं। लक्ष्य तय हो रहे हैं और पार किए जा रहे हैं।
पिछले 75 वर्षों के दौरान भारतीय नौकरशाही में कई बड़े बदलाव आए हैं। तब भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों (आईएएस अफसरों) को आम लोगों से ज्यादा मेलजोल न रखने को कहा जाता था। अब जनता से मिलकर ही उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने पर जोर रहता है। तकनीक में बदलाव से बहुत फर्क आया है। शुरुआत में न टीवी था और न ही कंप्यूटर। बिजली भी 24 घंटे नहीं आती थी। बिजली का बिल भी मीटर की रीडिंग से नहीं आता था, बल्कि महीने का प्रति हॉर्स पावर फिक्स चार्ज होता था। बतौर मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी 1976 में मुझे ब्लैक ऐंड व्हाइट टीवी इस्तेमाल करने को दिया गया था, वह भी एक प्रयोग के रूप में।
उस समय देश की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। हमें विदेश से कोई न्योता भी आता था, तो सरकार से इजाजत मिलने के समय पूछा जाता था कि वह टिकट का खर्च तो दे रहे हैं न। तब देश में विदेशी मुद्रा का संकट होता था। अब तो प्रशासनिक अधिकारियों को सरकार अपने खर्च पर हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में ट्रेनिंग के लिए भेज रही है, जिससे नए विचारों का समावेश हो सके।
कंप्यूटर के ईजाद से बहुत फर्क आ गया है।
हमने तकनीक को विकास के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से हर तरह का भ्रष्टाचार और देरी खत्म हो गई है। तीसरा बड़ा बदलाव निजी क्षेत्र से लोगों की सीधी भर्ती के रूप में आया है। अभी तक नौकरशाहों का चयन केवल केंद्रीय लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के जरिये ही होता था। लेकिन अब अन्य क्षेत्रों में मौजूद सर्वोत्तम प्रतिभाओं को भी सरकार में सर्वोच्च पदों पर सीधे लाया जा रहा है।
एक बड़ा बदलाव सिविल सेवा परीक्षा को 18 भारतीय भाषाओं में आयोजित करने से भी आया है। अब देश के कोने-कोने से प्रतिभाएं सिविल सेवा में जगह पा रही हैं। हर भाषा, हर वर्ग और हर सामाजिक स्तर के लोग सिविल सेवा में आ रहे हैं। तकनीक के इस्तेमाल से फैसले लेने की गति बढ़ी है। पहले हर फाइल पर नोटिंग और हस्ताक्षर जरूरी होते थे। अब अधिकतर काम ई-मेल और डिजिटल सिग्नेचर से ही हो जाता है। पहले मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी ही एकमात्र प्रशिक्षण केंद्र था, अब हैदराबाद स्थित वीवी गिरी इंस्टीट्यूट जैसे कई और संस्थान प्रशासनिक अफसरों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।
सरकार के साथ प्रशासनिक संबंधों को लेकर भी बहुत-सी बातें कही जा सकती हैं, क्योंकि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का सर्वोच्च स्थान होता है। प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ अपनी राय दे सकते हैं। लेकिन जब जनता द्वारा चुनी हुई सरकार कोई फैसला ले लेती है, तो प्रशासनिक अधिकारियों का काम उस निर्णय को लागू कराने का होता है। इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि प्रशासनिक अफसर स्टैंड नहीं लेते। हां यदि, इन अफसरों की फाइलों पर दी गई राय पर कोई अध्ययन या शोध किया जाए, तभी पता चलेगा कि क्या उन्होंने अपनी राय ईमानदारी से व्यक्त की है या सिर्फ सरकार की हां में हां मिलाई है।
एक वाकया याद आता है। उत्तरकाशी में बादल फटने से भीषण दुर्घटना हुई, तब मैं उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव था। गढ़वाल आयुक्त ने मुझसे आग्रह किया कि किसी वीआईपी को वहां आने न दिया जाए, क्योंकि इससे राहत कार्यों में व्यवधान पड़ेगा। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह नहीं माने। आयुक्त के पूछने पर मैंने सलाह दी कि उन्हें मुख्यमंत्री के दौरे की चिंता किए बिना अपना राहत कार्य जारी रखना चाहिए। लौटकर मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और मेरी आपत्ति को दरकिनार करते हुए गढ़वाल आयुक्त को निलंबित करने की घोषणा कर दी। अगले दिन मैंने एक तीन-पेज का नोट बनाकर उनके सामने रखा, जिसमें सभी घटनाओं का जस का तस जिक्र था। उसे पढ़ने के बाद उन्होंने आयुक्त का निलंबन तुरंत रद्द कर दिया।
हमें नीतियों को और प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने को (सर्विस डिलीवरी) बेहतर किया जाना चाहिए। एक और सुधार जिसके बारे में मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी लिखा है, वह है - जिलाधिकारियों को जिले की विकास योजनाएं लागू करने का एकमात्र जिम्मेदार बनाने के बजाय चयनित जनप्रतिनिधियों की कमेटी का सीईओ मात्र बनाया जाना चाहिए। वैसे ही जैसे ग्राम पंचायत और ब्लॉक पंचायत स्तर पर पहले ही कर दिया गया है। साथ ही प्रशासनिक सेवाओं को दो भागों में बांटने की जरूरत है। एक हिस्सा पूरी तरह ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए होना चाहिए और दूसरा अन्य सभी कामों के लिए।
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