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Written by जनसत्ता: हाल ही में प्रदर्शित फिल्म 'कश्मीर फाइल्स' ने यह सिद्ध कर दिया कि सच को छिपाया तो जा सकता है, मगर दबाया नहीं जा सकता। कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को यह फिल्म सिलसिलेवार तरीके से रूपायित करती है। जो काम पंडितों की जलावतनी पर अब तक लिखी बीसियों पुस्तकें, कविताएं, लेख-भाषण आदि या फिर संवाद-सेमिनार नहीं कर सके, वह काम दो सवा दो घंटे की इस फिल्म ने कर दिखाया।
सरकारें आर्इं और चली गर्इं, मगर किसी भी सरकार ने निर्वासित कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाने की मन से कोशिश नहीं की। आश्वासन या कार्ययोजनाएं जरूर घोषित की गर्इं। और तो और, सरकारें जांच-आयोग तक गठित नहीं कर पार्इं, ताकि यह बात सामने आ सके कि इस देशप्रेमी समुदाय पर जो अनाचार हुए, जो नृशंस हत्याएं हुर्इं या फिर जो जघन्य अपराध किए गए, उनके जिम्मेदार कौन थे या हैं?
'कश्मीर फाइल्स' के प्रदर्शन से अब यह आशा जगने लगी है कि सरकार शीघ्र एक जांच-आयोग बिठाएगी, ताकि मानवता को शर्मसार करने वाले दोषियों पर दंड का शिकंजा कसने में ज्यादा देर न लगे। विपक्ष भी अब इस तरह के जांच-आयोग को गठित करने की बात करने लगा है। कहना न होगा कि किसी भी सभ्य समाज में सत्य की रक्षा के लिए दोषियों को दंडित करना परमावश्यक है। अगर समाज में सत्य की हानि होती है और पापाचार पर अंकुश नहीं लगता, तो लोगों में भ्रष्टाचार, षड्यंत्र और अन्य तरह की बुराइयों या अवगुणों का वर्चस्व स्थापित हो जाएगा, जिससे सामान्य जनता का जीवन दुखों से भर जाएगा और अपराधी बेफिक्र होकर घूमने लगेंगे। शठ को शठता से दबाना बहुत जरूरी है।
जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए हम 1993 से प्रतिवर्ष 22 मार्च को जल दिवस मनाते हैं, जिसका एक विशेष 'थीम' होती है। इस वर्ष की 'थीम' है 'भूजल अदृश्य को दृश्यमान बनाना'। आज स्थिति यह है कि दुनिया में 2.2 अरब लोगों के पास साफ जल की अनुपलब्धता है। भारत में अस्सी फीसद जल भूमिगत स्रोतों से प्राप्त होता है और नवासी फीसद भूमिगत जल का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।
वर्तमान में भूमिगत जल का दोहन बहुत तेजी से हो रहा है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य सबसे आगे हैं। भूमिगत जल सीमित है इसलिए इसका पुनर्भरण भी अति आवश्यक है, पर इसके संरक्षण और पुनर्भरण के प्रयास बहुत सीमित मात्रा में परिलक्षित होते हैं। क्योंकि लोगों में भूमिगत जल से होने वाली समस्याओं के प्रति जागरूकता का अभाव है।