सम्पादकीय

राजनीति के नए मुखौटे

Rani Sahu
31 March 2022 7:09 PM GMT
राजनीति के नए मुखौटे
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तीव्रता से राजनीति अब आंदोलन या एनजीओ की तर्ज पर सत्ता का रास्ता चुन रही है

तीव्रता से राजनीति अब आंदोलन या एनजीओ की तर्ज पर सत्ता का रास्ता चुन रही है और राष्ट्रीय स्तर पर सफलता-असफलता के बीच पैगाम बदलने लगे हैं। इसी संदर्भ में आगामी चुनावों की सुगबुगाहट के बीच, हिमाचल में भी सियासत के रंग बदल सकते हैं। अपने तजुर्बों को नई परिभाषा देती आप पार्टी ने 'पंजाब मॉडल' को हिमाचल की तरफ सरका दिया है, तो भाजपा भी अपनी सत्ता के पैगाम ऊंचे कर रही है। ऐसे में कांग्रेस ने सड़क को चुना है और सीधे आंदोलनों की शुमारी में एकजुटता का उद्घोष कर रही है। आप की मंडी रैली का जवाब भाजपा हर विधानसभा क्षेत्र में एक साथ कई रैलियों से देगी। यह परिदृश्य गजब की अनुभूतियों और चुनौतियों का दिखाई देता है। आप की पंजाब सरकार ने ऐसे विषय चुनने शुरू कर दिए हैं जो आम जनमानस को उद्वेलित करते हुए उन्हें वैकल्पिक सियासत के जहाज पर चढ़ा दें। विधायकों की पंेशन को एक पैमाने में डालने के बाद भगवंत मान ने अब निजी स्कूलों में फीस बढ़ाने पर एक तरह से रोक लगा दी है। शिक्षा क्षेत्र में सुधार की बड़ी चिडि़या पकड़ने से पहले जिस तरह निजी स्कूलों के नक्षत्र बदलने का फरमान जारी हुआ है, इसे क्रांतिकारी मानने वालों का एक बड़ा वर्ग तैयार होगा और यह फैसला हिमाचल में भी असर बनाएगा। ऐसे फैसलों से आप का राजनीतिक जादू आम जनमानस को आंदोलित कर सकता है।

अपने आंदोलन की सियासत में केजरीवाल महात्मा गांधी की जगह भगत सिंह और अंबेडकर को कब आगे ले आए, किसी को मालूम नहीं होगा। कमोबेश इसी के समानांतर हिमाचल भाजपा भी मूर्तियों के जरिए एक नया गठबंधन उस परिचय से कराना चाहती है, जो आगे चलकर पृष्ठभूमि बदलेगा। धर्मशाला में दो मूर्तियों का जिक्र पिछले कुछ दिनों में हुआ है। अदालत परिसर के बाहर अंबेडकर चौक और वहां एक मूर्ति स्थापना के अलावा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कालेज चौक को विवेकानंद चौक बनाने का शपथ पत्र देते हुए वहां मूर्ति बैठाने की इच्छा शक्ति दिखाई है। वह आगे बढ़ते हुए प्रदेश के सबसे पुराने कालेज का नामकरण भी करना चाहते हैं। जाहिर है यह किसी महापुरुष के नाम पर ही होगा। कल हमें शिक्षण संस्थानों के बोर्ड बताएंगे कि देश के महापुरुष कौन-कौन हुए। इस प्रतीकवादी परंपरा को हम झुठला नहीं सकते और अतीत में भी ये निशानियां अपना-अपना संदेश देती रही हैं। यह अलग तरह का नायकवाद या राष्ट्रवाद है, जिसके तहत प्रतीक स्तंभ बदल रहे हैं या स्थापित हो रहे हैं।
अपने अस्तित्व के सौ वर्षों के करीब पहुंच रहे धर्मशाला कालेज को अब अचानक यह जरूरत क्यों पड़ गई कि वहां नामकरण को लेकर सामाजिक विभाजन हो जाए या ऐसा प्रतीक सामने आकर बताए कि चिन्हित इरादे अपना वर्चस्व चाहते हैं। यह दीगर है कि प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ के नाम पर कालेज को पुकारा जाए और इसी के अनुरूप डिफंेस स्टडीज का विंग जोड़ा जाए, तो छात्र समुदाय के लिए इस एहसास को जीना खुद में पारंगत होना हो सकता है। इसी संदर्भ में एक अच्छी पहले उस समय भी हुई जब हर स्कूल अपने प्रांगण से निकले श्रेष्ठ छात्रों का उल्लेख करने लगा था। जाहिर है हिमाचल के हर स्कूल व कालेज से निकले छात्र विभिन्न क्षेत्रों में अपना सिक्का जमा रहे हैं और अगर इस लिहाज से उन्हें शिक्षण संस्थान स्मरण करते हैं, तो यह गौरव की ताजपोशी होगी। भविष्य में नए पुस्तकालय अगर भारतीय महापुरुषों के नाम पर अर्जित ऊष्मा के कारण प्रतिष्ठित संस्थान बन पाते हैं, तो ऐसी योजनाबद्ध परिकल्पनाएं आगे आनी चाहिएं। देश में नायकत्व पैदा करने की प्रथम सीढ़ी स्कूल या शिक्षण संस्थान हैं, लेकिन जिस कर्मशाला में देश का श्रम पैदा होता है, उसे भी तो याद रखना होगा। विडंबना यह है कि हमारे कृषि-बागबानी जैसे विश्वविद्यालय किसान-बागबान को आज भी नायक नहीं बना पाए। बहरहाल राजनीति के गहने बदल रहे हैं और अगर प्रतीक व पद्चिन्हों में भेद पैदा नहीं हुआ, तो देश के महापुरुष आगे चलकर सियासत के संबोधनों में फंस जाएंगे। यह शुरुआत है, अभी तो इतिहास के पन्ने न जाने कहां-कहां चस्पां होंगे।

क्रेडिट बाय दिव्यहिमाचल

Rani Sahu

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