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अखिलेश आर्येंदु: सभी को शिक्षित करने और सबको विकास के दायरे में लाने के लिए नया बजट एक बेहतरीन शिक्षा की प्रगति का संदेश जैसा है। इससे भारत का अशिक्षित वर्ग ही नहीं, अर्धशिक्षित और गरीब-असहाय लोगों को भी शिक्षित कर विकास की मुख्यधारा में लाने का रास्ता खुल गया है। कहा जाता रहा है कि विकसित देशों की अपेक्षा भारत में शिक्षा पर बहुत कम खर्च होता है यानी शिक्षा सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। उसकी अपेक्षा रक्षा खर्च पर बजट अधिक बनाया जाता है। लेकिन इस बार का बजट भारत में शायद सबसे अधिक रखा गया है।
गौरतलब है कि इस बार के सार्वभौमिक शिक्षा बजट में सैंतीस हजार तीन सौ तिरासी करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। बीते वर्ष इस योजना के तहत तीस हजार करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे। सवाल है कि सरकार के बजट बढ़ाने से क्या शिक्षा हर स्तर पर आगे बढ़ेगी? जानकारों के मुताबिक, जिस बजट और संसाधनों की दरकार शिक्षा के लिए है, वे अभी नहीं मिल पाए हैं। इसलिए शिक्षा को हर स्तर पर अभी खाद-पानी देने की जरूरत है।
पिछले सालों में शिक्षा के लिए जो बजट आबंटित किया गया था, उससे शिक्षा के आधारभूत संसाधनों, गरीब और प्रतिभावान छात्रों को छात्रवृत्ति तथा शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती की प्रक्रिया का कार्य आगे बढ़ा है, लेकिन अभी और तेजी से बढ़ने की जरूरत है। इस साल के बजट में केंद्र सरकार ने शिक्षा पर पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा धन आबंटित करके शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तवर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए कुल एक लाख चार हजार दो सौ सतहत्तर करोड़ रुपए का आबंटन, शिक्षा के क्षेत्र में कई संभावनाओं के द्वार खोलता है। जो पिछले वित्तवर्ष से 11,053.41 करोड़ रुपए यानी बारह फीसद अधिक है। यह बजट वित्तवर्ष 2021-22 के बजट अनुमान में 93,224 करोड़ और संशोधित अनुमान में 88,001 करोड़ रुपए है। वित्तवर्ष 2022-23 में स्कूली शिक्षा के लिए आबंटन 63,449.93 करोड़ रुपए रखा गया है, जो वित्तवर्ष 2021-22 की तुलना में करीब नौ हजार करोड़ रुपए है।
वहीं समग्र शिक्षा के लिए 37,383.36 करोड़ रुपए आबंटित किया गया है जो पिछले वर्ष के बजट के आबंटन की तुलना में 6,000 करोड़ रुपए और जवाहर नवोदय विद्यालयों के लिए 4,115 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। वित्तवर्ष 2022-23 में शिक्षा विभाग को 40,828 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 6.6 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं पर उच्च शिक्षा के लिए 40,828 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं।
इस बार पिछले साल की तरह किसी तरह की कटौती नहीं की गई है। सबसे खास बात नए बजट में यह है कि डिजिटल एजुकेशन पर जोर दिया गया है। डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना की बात कही गई है। सवाल है कि इन उपायों से क्या शिक्षा को बेहतर बनाया जा सकेगा या दूसरे भी उपाय करने पड़ेंगे?
देश की चालीस प्रतिशत आबादी अठारह वर्ष से कम उम्र के युवाओं की है, लेकिन दुर्भाग्य है कि अब भी जीडीपी का महज तीन प्रतिशत शिक्षा के मद में व्यय किया जाता है। जबकि नई शिक्षा नीति में जीडीपी का कम से कम छह प्रतिशत शिक्षा के क्षेत्र में खर्च करने की बात है। इससे केंद्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों सहित सभी तरह के सरकारी और अर्ध सरकारी स्कूलों और संस्थानों को नई शिक्षा नीति से जोड़ कर शिक्षा का कायाकल्प करने में मदद मिलेगी।
केंद्र सरकार ने नए भारत के निर्माण के तहत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नई पहल करते हुए नई योजना के तहत 'डिजिटल विश्वविद्यालयों' की स्थापना करके घर-घर शिक्षा पहुंचाने का लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किए हैं। इससे जहां छात्र अपनी मातृ या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे वहीं उन्हें वह सभी शिक्षा संबंधी सामग्री मिल पाएगी जो उनके लिए आवश्यक होगी। डिजिटल विश्वविद्यालय के माध्यम से छात्रों को वैश्विक स्तर की सरल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाएगी। इससे उन निर्धन छात्रों को विशेष लाभ होगा जो दूरस्थ होने के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।
गौरतलब है कि यह विश्वविद्यालय आइएसटीई स्टैंडर्ड का होगा। डिजिटल विश्वविद्यालयों में क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करने के कारण उन छात्रों को विशेष लाभ होगा जो हिंदी और अंगे्रजी में कमजोर होते हैं, लेकिन वे क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा प्राप्त कर अपना करिअर सुधारना चाहते हैं। केंद्र की यह पहल कितना असर डालेगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने एक नया प्रयोग करके लोगों का ध्यान जरूर खींचा है।
वित्तमंत्री के अनुसार कोरोना काल में शिक्षा से सबसे अधिक वंचित सुदूर गांवों के ग्रामीण और वनवासी-आदिवासी हुए हैं। इसकी भरपाई के लिए सरकार ने पूरक (सप्लीमेंट्री) शिक्षा की बड़े पैमाने पर प्रारंभ करने जा रही है। क्या सरकार के इस कदम से गांवों और जंगलों में अनपढ़ों तक बेहतर शिक्षा की व्यवस्था कायम हो सकेगी या एक योजना बन कर रह जाएगी? एक नया प्रयोग करते हुए वित्तमंत्री ने कृषि विश्वविद्यालयों से नई कृषि नीति को बढ़ावा देने की योजना का खाका पेश किया है। इससे कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को अधिक व्यावहारिक बनाया जाएगा।
इसमें आर्गेनिक खेती के अलावा जीरो बजट, प्राकृतिक जरूरत जैसे अतिआवश्यक विषयों को संशोधित किया जाएगा। इससे छात्रों को नई कृषि तकनीकी और अधिक उत्पादन के संबंध में बेहतर जानकारी मिल सकेगी। इसी क्रम में शहरी विकास के लिए भी विश्वविद्यालयों में नए पाठ्यक्रमों की शुरुआत की जाएगी। इसके लिए पांच संस्थानों को सेंटर आफ एक्सीलेंस बनाया जाएगा। इससे छात्रों की हर व्यावहारिक जरूरत पूरी हो सकेगी। देखने में यह योजना आकर्षक है, लेकिन जब तक शिक्षा की जमीनी हालात नहीं सुधरते, क्या योजना को ठीक से लागू किया जा सकेगा?
नए बजट में देश के विभिन्न आइटीआइ में नए कौशल की शिक्षा दी जाएगी। इसके अंतर्गत छात्रों को आनलाइन प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। प्रशिक्षण के बाद छात्रों को आनलाइन माध्यम से नौकरी खोजने और प्रशिक्षण को सुगम बनाया जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र ने कौशल विकास के अंतर्गत लाखों छात्रों को रोजगार से जोड़ने का वादा किया है। इससे गांवों और शहरों में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित होंगे।
सरकार ने नए बजट में साठ लाख नई नौकरियां देने का वादा किया है। हजारों नौकरियां शिक्षा के क्षेत्र से मिलेंगी। बजट में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटी) के लिए आबंटन 8344.44 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 8,495 करोड़ कर दिया गया है। इससे जहां नए प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना हो सकेगी वहीं पर नए छात्रों को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआइआइटी) के लिए बेहतर अवसर मिल सकेंगे।
इससे एआइसीटीई अर्बन प्लानिंग कोर्सेज का विकास होगा और प्राकृतिक, जीरो बजट, आर्गेनिक फार्मिंग और आधुनिक कृषि के लिए पाठ्यक्रम में परिवर्तन किए जाने की संभावना है। वहीं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और एआइसीटीआइ के लिए 5320.91 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। गौरतलब है कि बीते वर्ष यह 5139.2 करोड़ रुपए था।
सभी को शिक्षित करने और सबको विकास के दायरे में लाने के लिए नया बजट एक बेहतरीन शिक्षा की प्रगति का संदेश जैसा है। इससे भारत का अशिक्षित वर्ग ही नहीं, अर्धशिक्षित और गरीब-असहाय लोगों को भी शिक्षित कर विकास की मुख्यधारा में लाने का रास्ता खुल गया है। हब एंड स्कोप माडल के आधार पर शिक्षा देने की केंद्र की यह पहल डिजिटल युग की शिक्षा की शुरुआत है। इससे घर बैठे उन छात्रों को भी उच्च, मीडिल, स्कूली शिक्षा मिल पाएगी, जो परिवार की माली हालात की वजह से कालेज या विश्वविद्यालय नहीं जा पाते हैं। शिक्षा का नया बजट भारतीय समाज को प्रगति की नई राह दिखाएगा, ऐसी आशा की जानी चाहिए।