सम्पादकीय

प्रदेश में राजनीतिक विमर्श के नए आयाम

Rani Sahu
2 May 2022 7:20 PM GMT
प्रदेश में राजनीतिक विमर्श के नए आयाम
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भौगोलिक रूप से हिमाचल में लोग तूफान और भूकंप जैसी चरम प्राकृतिक घटनाओं के आदी हैं

भौगोलिक रूप से हिमाचल में लोग तूफान और भूकंप जैसी चरम प्राकृतिक घटनाओं के आदी हैं, लेकिन एक अनिश्चित राजनीतिक तूफान से निपटना उनके लिए कुछ नया है। आगामी राज्य विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी का जंग का ऐलान किसी राजनीतिक तूफान से कम नहीं, और राज्य के मतदाता अभी तक इसका पूरा प्रभाव महसूस नहीं कर पाए हैं। हां, उन्होंने इस तूफान की दस्तक को निश्चित रूप से महसूस किया जब 'आप ने घोषित किया कि जिन दो दलों ने अब तक राज्य पर शासन किया है, उन्होंने कोई विकास नहीं किया। एक आम हिमाचली, जो अब तक इस धारणा में था कि हिमाचल विकास के कई मानकों पर सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य है, अब थोड़ा भ्रमित है। शायद नाराज भी। जिस प्रकार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था को एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धी बाजार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार एक स्वस्थ लोकतंत्र को भी प्रतिस्पर्धी हितधारकों की आवश्यकता होती है। अब तक मतदाताओं ने राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दलों को बारी-बारी से शासन करने का जनादेश देकर उनके साथ निष्पक्ष रहने की कोशिश की है

'आप के एक विश्वसनीय तीसरे विकल्प के रूप में उभरने को राज्य के शांत राजनीतिक माहौल में एक स्वागत योग्य बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए। बदलाव के लिए हमेशा भारी कीमत चुकानी पड़ती है, और यह तय करना आम हिमाचलियों पर निर्भर करेगा कि वे क्या दांव पर लगाते हैं। हाल ही में हुए एक मानव संसाधन सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल देश का सबसे खुशहाल राज्य है। इस सर्वेक्षण के लिए राज्यों को रहने में आसानी, सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव, सामाजिक समर्थन, पसंद की स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार की धारणा के आधार पर स्थान दिया गया था। लागत मूल्य सूचकांक, राज्य घरेलू उत्पाद, साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, गरीबी और स्वास्थ्य सूचकांक जैसे अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखा गया था। लेकिन आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल राज्य में अपनी रैलियों के दौरान कह रहे हैं कि केवल 'आप ही हिमाचल को सुशासन प्रदान कर सकती है। वह दिल्ली मॉडल का हवाला देते हुए हिमाचल का परिदृश्य बदलने का वादा कर रहे हैं। 'आप भले ही ऐसा करने में सक्षम हो, लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या हिमाचली ऐसा चाहते हैं। यदि हां, तो किस कीमत पर। और यहां कीमत एक हिमाचली के आत्मविश्वास की हानि, अपूर्णता की भावना, व्यवस्था के प्रति अविश्वास और आक्रोश की है। क्या एक आम हिमाचली इस क्रांति से जो हासिल करने वाला है, वह उससे ज्यादा मूल्यवान है जो वह खो देगा? अब तक जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 'आप के हमले को कुंद करने के लिए जवाबी अभियान शुरू कर दिया है, कांग्रेस को अभी तक अपने अस्तित्व के संकट से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पाया है।
'आप पर एकमात्र वास्तविक हमला आश्चर्यजनक रूप से मेजर विजय सिंह मनकोटिया से हुआ है, जिन्होंने अभी भी आप में शामिल होने से इंकार नहीं किया है। उन्होंने कहा है कि केजरीवाल न तो हिमाचल के मुद्दों पर बात कर रहे हैं और न ही किसी हिमाचल के नेता से व्यक्तिगत रूप से मिल रहे हैं। भले ही वह 'आप पर अपने हमले को राजनीतिक सौदेबाजी के रूप में इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन उन्होंने जो सवाल उठाए हैं, वे प्रासंगिक हैं। हिमाचल में अब तक मतदाताओं ने किसी तीसरे राजनीतिक दल को ज्यादा जगह नहीं दी है। कुछ अपवादों को छोड़कर जब एक छोटी पार्टी विधानसभा चुनावों में चुनावी समीकरणों को झुकाने में कामयाब रही, लेकिन ये सभी राजनीतिक दल घर में ही पनपे थे। राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव ने एक बार फिर हिमाचल को तीसरा विकल्प दिया है, लेकिन इस बार यह पर्वतीय राज्य की राजनीति पर स्थायी प्रभाव छोड़ेगा। हिमाचल निश्चित रूप से दिल्ली 'आप के आकाओं के हाथों की कठपुतली नहीं बनना चाहेगा, और न ही फ्रीबी की राजनीति से हिमाचलियों को खरीदा जा सकता है। यदि 'आप अगली सरकार नहीं बनाती है, तब भी यह उसके लिए एक जीत होगी यदि वह कांग्रेस की जगह लेने में सफल हो जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मतदाता 'आप को राज्य में राजनीतिक विमर्श पर हावी होने देंगे? ज़ाहिर है कि कुछ मौकापरस्त नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए 'आप के चूल्हे में गीले उपले भी डालेंगे। इसके अलावा 'आप के अत्यधिक कॉरपोरेट मॉडल वाली राजनीति का भी राज्य में प्रभाव पडऩा तय है। ये भी तय है कि नए राजनीतिक समीकरणों के उभारने से प्रदेश की सामाजिक पृष्ठभूमि पर भी नई दरारें नजर आएंगी। ऐसे में हिमाचल की जागरूक जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है। पहला यह कि राजनीतिक दल चाहे कोई भी आख्यान बुनें, वे बयानबाजी से खुद को भ्रमित नहीं होने देंगे। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें खुद तय करना होगा कि राज्य के विकास की कहानी किन मापदंडों पर लिखी जानी चाहिए, चाहे वह रोजगार हो, बुनियादी सुविधाएं हों या समग्र विकास। सतत विकास अपने आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों के साथ भविष्य के प्रति अनिवार्य दृष्टिकोण है। अल्पकालिक लाभ के लिए अधीरता दिखाना अवसरवाद कहलाता है। हिमाचल की जनता जागरूक है और यह समझती है। अब यह देखने की जरूरत है कि वे अपने भविष्य को आकार देने के लिए इस अवसर का उपयोग कैसे करते हैं।
संजय वरसेन
स्वतंत्र लेखक


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