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जब भारत की पहली व्यावसायिक उड़ान ने सन 1911 में इलाहाबाद से नैनी तक उड़ान भरी, तब दुनिया को भारत जैसे कीमत के मामले में संवेदनशील और उभरते बाजार में उड्डयन क्षेत्र में किसी उल्लेखनीय विकास की उम्मीद कम ही थी
तिरादित्य सिंधिया,
जब भारत की पहली व्यावसायिक उड़ान ने सन 1911 में इलाहाबाद से नैनी तक उड़ान भरी, तब दुनिया को भारत जैसे कीमत के मामले में संवेदनशील और उभरते बाजार में उड्डयन क्षेत्र में किसी उल्लेखनीय विकास की उम्मीद कम ही थी। हालांकि, समय के साथ भारत के उभरते मध्यवर्ग ने परिवहन के इस साधन को अपनाया और इसी क्रम में बड़े पैमाने पर किफायत की वजह से हवाई किराये में गिरावट भी आई। कुल मिलाकर, वर्ष 2016 तक की भारतीय नागरिक उड्डयन क्षेत्र के विकास की यही कहानी है।
वर्ष 2016 में इस क्षेत्र में एक आमूल बदलाव हुआ। हवाई अड्डों के दरवाजे पहली बार उड़ान भरने वालों के लिए खोल दिए गए। पहली बार उड़ान भरने वालों में ज्यादातर हवाई चप्पल पहनने वाले, यानी भारत के गरीब से लेकर निम्न मध्यवर्गीय लोग थे। निश्चित रूप से यह रुझान केवल शहरों में रहने वालों तक सीमित नहीं था। दरभंगा, झारसुगुड़ा व किशनगढ़ जैसे शहरों का पहले भारत के विमानन मानचित्र पर नामोनिशान तक न था, ऐसी जगहों पर छोटे-छोटे हवाई अड्डे शुरू हो गए। दरभंगा व झारसुगुड़ा, दोनों हवाई अड्डों ने पिछले एक साल में क्रमश: 5.75 लाख और 2.4 लाख यात्रियों की सेवा की है।
यह वह बदलाव है, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व ने नीति निर्माण के समेकित दृष्टिकोण के तहत की है और जिसने वाकई समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को लाभान्वित किया है। 2016 में उड़ान योजना के माध्यम से हवाई यात्रा के लोकतंत्रीकरण की शुरुआत और हालिया हेली-नीति, नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में सरकार की दो सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं। पिछले आठ वर्षों में (70 वर्षों में 74 हवाई अड्डों की तुलना में) भारत के पहले वाटर एयरोड्रॉम सहित 67 से अधिक हवाई अड्डों के साथ 90 लाख से अधिक यात्रियों ने उड़ान योजना के तहत विभिन्न उड़ानों के जरिये 419 उन नए मार्गों पर यात्रा की, जो साल 2014 तक नागरिक उड्डयन के दायरे से बाहर थे।
इस लोकतंत्रीकरण का मतलब किसी भी तरह से एयरलाइन उद्योग के विकास के साथ कोई समझौता करना नहीं था। घरेलू यात्रा करने वाले यात्रियों की वार्षिक संख्या 2013-14 में छह करोड़ से बढ़कर 2019-20 में 14.10 करोड़ तक पहुंच गई और 2023-24 तक इस संख्या के 40 करोड़ तक पहुंच जाने की उम्मीद है। उच्च लागत और अति-नियमन से बुरी तरह प्रभावित इस क्षेत्र में एक समय कंपनियों के लिए न सिर्फ प्रवेश करना कठिन हो गया था, बल्कि प्रवेश करने के बाद विमानन कंपनियों के लिए खुद को बनाए रखना और भी कठिन हो गया था।
पहले माहौल इतना प्रतिकूल था कि वर्ष 2005 से लेकर 2013 के बीच आधा दर्जन एयरलाइन कंपनियों को अपना कारोबार बंद करने पर मजबूर होना पड़ा, लेकिन 2014 के बाद इस सरकार के 'न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन' के आदर्श वाक्य ने इस परिदृश्य को उलटकर रख दिया। निरर्थकता और अक्षमताओं को लगभग समाप्त कर दिया गया है। हमारे नियामकों, डीजीसीए और बीसीएएस ने अधिकांश प्रक्रियाओं को ऑनलाइन कर दिया है। घाटे में चल रही सरकारी एयरलाइन, एयर इंडिया के निजीकरण को अंतत: इस साल एक जीत में बदल दिया गया और परिपाटी के उलट जाकर 11 नई क्षेत्रीय एयरलाइन शुरू हुई हैं। इसके अलावा, दो नई एयरलाइन जल्द ही अपना परिचालन शुरू करने जा रही हैं।
इस क्षेत्र में तेजी के इस नए रुख को हवाई अड्डे से संबंधित बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर सरकारी एवं निजी निवेश द्वारा पूरक बनाया गया है। वर्ष 1999-2013 की अवधि में, सिर्फ तीन ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों का परिचालन शुरू किया गया था। इसके उलट पिछले आठ वर्षों में आठ नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे बनकर तैयार हुए हैं। इसके अलावा, इस वर्ष दो और हवाई अड्डे बनकर तैयार हो जाएंगे। यहां तक कि कोविड-19 का असर भी कैपेक्स पाइपलाइन के 93,000 करोड़ रुपये के व्यापक निवेश के माध्यम से हवाई अड्डों के विस्तार की हमारी योजनाओं में बाधक नहीं बन सकेगा। हवाई सेवा विस्तार की ये योजनाएं इस तरह से बनाई जाएंगी कि भारत में न सिर्फ बुनियादी ढांचे, बल्कि शहरों के बीच परस्पर जुड़ाव में भी उछाल आएगा। अपने प्रमुख हवाई अड्डों को एविएशन हब में बदलकर, ज्यादा बड़े आकार वाले विमान लाकर और अपने द्विपक्षीय समझौतों पर फिर से विचार करके अमेरिका, ब्रिटेन, अफ्रीका और सुदूर यूरोप के लिए सीधे अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित किया जाएगा।
दूसरा आमूल बदलाव इस क्षेत्र में एक नए संपूर्ण-सरकारी दृष्टिकोण के रूप में हुआ है, जिसने अब पूरे विमानन परिवेश या इकोसिस्टम पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। सरकार का नजरिया व्यापक हुआ है। फ्लाइंग ट्रेनिंग ऑर्गेनाइजेशन, ड्रोन, एयर कार्गो, एमआरओ, एयरक्राफ्ट लीजिंग आदि जैसे अब तक अनछुए संबद्ध क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर आर्थिक एवं रोजगार सृजन क्षमता की दृष्टि से देखा जा रहा है। नया ड्रोन नियम 2021, नई एफटीओ नीति, नई एमआरओ नीति जैसी उदार नीतियों के साथ-साथ उपयुक्त प्रोत्साहन ने भारत में इन उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बढ़िया जमीन तैयार कर दी है। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र नागरिक उड्डयन और पर्यटन को भारत के विकास के नए इंजन के रूप उभरने में समर्थ बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगा। भारत को ड्रोन के मामले में विश्व में अग्रणी बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण की वजह से ड्रोन क्षेत्र ने भारत में एक क्रांति की शुरुआत की है। बदलाव की इस गति से उत्साहित, ई-वीटीओएल भी जल्द ही भारतीय आसमान में उड़ान भरेंगे और आने वाले दिनों में कम दूरी की हवाई यात्रा के परिदृश्य को पूरी तरह बदल देंगे।
नए क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके, ट्राइट नीति की व्यवस्था को समाप्त कर, निजी भागीदारी से दक्षता सुनिश्चित कर, नए बाजारों की तलाश और मांग का सृजन कर नागरिक उड्डयन की नई नींव रखी जा रही है। जैसे-जैसे भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह घरेलू विमानन बाजार के मामले में भी सर्वश्रेष्ठ होने का खिताब हासिल करने की दिशा में तत्पर है।
सोर्स- Hindustan Opinion Column

Rani Sahu
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