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- धर्म का नया पाठ्यक्रम

देव संस्कृति से हिंदू स्वाभिमान तक पहुंची हिमाचल की पटकथा में कुछ ऐसे शृंगार भी हैं जो आगे चलकर हमारे परिवेश की रूह बदल सकते हैं। मुबारिकपुर में तीन दिवसीय धर्म संसद ने हिमाचल को ऐसा कुछ नहीं दिया जिसकी सामाजिक जरूरत थी, लेकिन पंडाल ने यह साबित कर दिया कि बहुसंख्यकवाद की तालीम में नया पाठ्यक्रम जोड़ने की शिद्दत से तैयारी चल रही है। धर्म संसद की कुछ चेतावनियां और कुछ निर्देश सभ्य समाज के लिए अपच पैदा कर सकते हैं या प्रदेश में ऐसे मसले पैदा कर देंगे, जिन्हें मानवीय प्रगतिशीलता व लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ माना जा सकता है। यानी अब हिंदू समाज को बच्चों की फैक्टरी में बदलने की हिदायत देते हुए साधु समाज, एक नई व्यवस्था के पहरुआ बन रहे हैं। आश्चर्य यह कि विवाद के ढोल अब हिमाचल के शांति प्रिय माहौल को उत्तेजित बनाने का राग सुना रहे हैं। भले ही हिमाचल पुलिस का एक सुस्त सा नोटिस धर्म संसद के प्रांगण में संयोजक यति सत्यदेवानंद को तामील हो गया, लेकिन तब तक धर्म की बिजलियां गिर चुकी थीं या सुप्रीम कोर्ट की भावना के खिलाफ टिप्पणियां हो चुकी थीं। आश्चर्य यह कि जब धर्म संसद का बड़बोलापन हिंदुओं से अधिक बच्चे पैदा करने का आह्वान कर रहा था, तो कहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार का अर्थगणित समझा रहा था कि बढ़ती आबादी के कारण देश किस तरह गरीबी और भुखमरी का शिकार हो रहा है। ऐसे में क्या संसदीय होने की नई परिभाषा धर्म गढ़ेगा या लोकतांत्रिक संसद के प्रति देश की गवाही का चीरहरण होगा।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली
