सम्पादकीय

धर्म का नया पाठ्यक्रम

Rani Sahu
20 April 2022 7:16 PM GMT
धर्म का नया पाठ्यक्रम
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देव संस्कृति से हिंदू स्वाभिमान तक पहुंची हिमाचल की पटकथा में कुछ ऐसे शृंगार भी हैं

देव संस्कृति से हिंदू स्वाभिमान तक पहुंची हिमाचल की पटकथा में कुछ ऐसे शृंगार भी हैं जो आगे चलकर हमारे परिवेश की रूह बदल सकते हैं। मुबारिकपुर में तीन दिवसीय धर्म संसद ने हिमाचल को ऐसा कुछ नहीं दिया जिसकी सामाजिक जरूरत थी, लेकिन पंडाल ने यह साबित कर दिया कि बहुसंख्यकवाद की तालीम में नया पाठ्यक्रम जोड़ने की शिद्दत से तैयारी चल रही है। धर्म संसद की कुछ चेतावनियां और कुछ निर्देश सभ्य समाज के लिए अपच पैदा कर सकते हैं या प्रदेश में ऐसे मसले पैदा कर देंगे, जिन्हें मानवीय प्रगतिशीलता व लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ माना जा सकता है। यानी अब हिंदू समाज को बच्चों की फैक्टरी में बदलने की हिदायत देते हुए साधु समाज, एक नई व्यवस्था के पहरुआ बन रहे हैं। आश्चर्य यह कि विवाद के ढोल अब हिमाचल के शांति प्रिय माहौल को उत्तेजित बनाने का राग सुना रहे हैं। भले ही हिमाचल पुलिस का एक सुस्त सा नोटिस धर्म संसद के प्रांगण में संयोजक यति सत्यदेवानंद को तामील हो गया, लेकिन तब तक धर्म की बिजलियां गिर चुकी थीं या सुप्रीम कोर्ट की भावना के खिलाफ टिप्पणियां हो चुकी थीं। आश्चर्य यह कि जब धर्म संसद का बड़बोलापन हिंदुओं से अधिक बच्चे पैदा करने का आह्वान कर रहा था, तो कहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार का अर्थगणित समझा रहा था कि बढ़ती आबादी के कारण देश किस तरह गरीबी और भुखमरी का शिकार हो रहा है। ऐसे में क्या संसदीय होने की नई परिभाषा धर्म गढ़ेगा या लोकतांत्रिक संसद के प्रति देश की गवाही का चीरहरण होगा।

शांता कुमार की दो टूक देश के सामने आ रही चिंताओं का विभाजन नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही की ईमानदार कोशिश है जो हर नागरिक को समान दृष्टि से देखते हुए, राष्ट्र की उन्नति का सही नजरिया विकसित करती है। काफी दिनों बाद शांता कुमार ने देश में पनप रहे धर्मबल के ढिंढोरचियों को आईना दिखाया है। हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की नसीहत देते हुए जिस तरह धर्म गुरु कूद पड़े हैं, उससे हमारा बौद्धिक पिछड़ापन ही नहीं, आर्थिक पिछड़ापन भी सामने आ रहा है। देश के भीतर समाज का औचित्य बच्चों की पैदाइश बन जाए, तो राष्ट्रीय हुनर की व्याख्या कैसे होगी। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद के लिए जो हुनर चाहिए या देश के बजटीय सिद्धांत जिस अनुशासन की दरख्वास्त करते हैं, उन्हें विस्मृत करके हिंदू अगर बच्चे पैदा करने की मशीन बन जाएं, तो विश्व गुरु बनने की यह धारा आत्मघाती विस्फोट ही करेगी। ऐसे में शांता कुमार के साहस की तारीफ करनी होगी कि वह पहले भाजपा नेता हैं, जो धर्म संसद के कानों में यथार्थ उंडेल देते हैं। एक सौ चालीस करोड़ की जनसंख्या वाले देश के लिए धर्म संसद के मायने कितने करोड़ के हैं और इसके लिए कौन सा अर्थ शास्त्र काम कर रहा है, यह एक खतरनाक भंवर है। धर्म संसद ने परोक्ष में हिमाचल की मंदिर व्यवस्था में चोंच लड़ाई है और यह इच्छा जाहिर की है कि ऐसी संपत्तियां सरकारी नियंत्रण से बाहर हों
यानी कल सुव्यवस्थित मंदिरों की परिकल्पना में सरकार के प्रयास पुनः धर्म के मठाधीशों के गले में डाल दिए जाएं। हिमाचल में ऐसी धर्म संसद से टकराव के बिंदु जरूर उभरे हैं, जो आगे चलकर लोकतांत्रिक पद्धति, मानवीय अधिकारों और राष्ट्रीय सद्भावना को सीधे चुनौती देंगे। हिमाचल जैसे प्रदेश में धर्म का आज तक न तो ऐसा प्रकटीकरण हुआ और न ही इसके रास्ते व्यवस्था व समाज को ऐसे निर्देश दिए गए। ऐसे में मुबारिकपुर की धर्म संसद के निष्कर्ष केवल एक टोले के लिए नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे समाज के लिए भी हैं जो अपनी दाल-रोटी की चिंता में सीमित परिवार और सामाजिक समरसता को अधिमान देता रहा है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली


Rani Sahu

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