सम्पादकीय

नई ताजपोशी, पुराना मर्ज़

Rani Sahu
1 July 2022 7:09 PM GMT
नई ताजपोशी, पुराना मर्ज़
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प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला है

सोर्स- Divyahimachal

प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर 'मास्टर स्ट्रोक' खेला है। बेशक भाजपा इसे कुछ भी कहे, लेकिन यह प्रयोग भी प्रधानमंत्री मोदी का है। भाजपा नेतृत्व की मुहर एक औपचारिकता भर है। प्रधानमंत्री ने इससे पहले भी चौंकाऊ निर्णय किए हैं। हरियाणा, उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक आदि राज्यों में उन चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया, जो अपेक्षाकृत लोकप्रिय नहीं थे। बिहार में भी छोटे दल के नेता को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन जद-यू एनडीए का घटक है। एकनाथ शिंदे के साथ ऐसे कोई समीकरण नहीं थे। बहरहाल मुख्यमंत्री बदले भी गए हैं, तो आश्चर्यजनक नाम सामने आए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी नेता शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना और भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री पद के लिए बाध्य करना एक दूरगामी रणनीति का 'मास्टर स्ट्रोक' ही है। सभी चौंक उठे, कई निराश भी हुए, इस फैसले की खामोश आलोचना भी की, लेकिन यह मोदी-शाह की भाजपा है, लिहाजा निर्णय स्वीकार करना मजबूरी भी है। शिंदे जनाधार वाले मराठा नेता हैं और सतारा, विरार, ठाणे आदि क्षेत्रों के बेताज बादशाह रहे हैं। इस तरह भाजपा के प्रभाव का विस्तार इन इलाकों में भी होगा। दूसरा मुद्दा शिवसेना का है। बेशक उद्धव ठाकरे की शिवसेना भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए का घटक नहीं है। शिंदे सेना के तौर पर भाजपा को एक सशक्त घटक दल भी मिलेगा। मुख्यमंत्री शिंदे की ताजपोशी के बाद ठाकरे परिवार के असंख्य शिवसैनिक पाला भी बदल सकते हैं। वे राजनीतिक भक्त रहे हैं, लेकिन बाला साहेब ठाकरे के…।
चूंकि सत्ता गंवा देने के बावजूद उद्धव कह रहे हैं कि उनकी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ, महाविकास अघाड़ी गठबंधन में ही रहेगी। यानी उद्धव अब भी उन शक्तियों के सहारे राजनीति करना चाहते हैं, जिनके संदर्भ में बाल ठाकरे कहा करते थे कि वह अपनी 'दुकान' बंद कर सकते हैं, लेकिन हिंदुत्व विरोधी दलों से गठबंधन नहीं कर सकते। दरअसल यह 'मास्टर स्ट्रोक' खेलते हुए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेतृत्व की 'आंख' 2024 के लोकसभा और महाराष्ट्र के ही विधानसभा चुनावों पर रही होगी। भाजपा महाराष्ट्र में ठाकरे वंश की शिवसेना का अस्तित्व ही मिटा देना चाहती है। यह काम मुख्यमंत्री शिंदे, उपमुख्यमंत्री शिंदे की तुलना में, बेहतर रूप से कर सकते हैं। अगले आम चुनाव में एनडीए के महत्त्वपूर्ण घटक के तौर पर शिंदे सेना भी साथ होगी, तो भाजपा को बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। उप्र के बाद सबसे अधिक 48 लोकसभा सीटें महाराष्ट्र में ही हैं। यह राज्य देश की आर्थिक और व्यावसायिक राजधानी भी है। शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की एक और रणनीति यह भी है कि शिंदे का सेना गुट लामबंद रहेगा, क्योंकि उनमें भी 10-12 विधायकों को मंत्री पद दिए जाने हैं। यदि शिंदे सेना में बिखराव होता भी है, तो उसे मुख्यमंत्री खुद संभालेंगे। सरकार के अस्थिर होने का आरोप भाजपा पर चस्पा नहीं किया जा सकेगा।
हमें यह गठबंधन ज्यादा स्वाभाविक लगता है, क्योंकि दोनों ही दल हिंदुत्व की विचारधारा रखते हैं। दोनों ने 2019 के चुनाव गठबंधन में ही लड़े थे और जीत कर आए थे। भाजपा भी बाल ठाकरे का सम्मान करती है। मुख्यमंत्री शिंदे सहज रूप से भाजपा के साथ सरकार चला सकते हैं, क्योंकि वह हमेशा 'आभारी' की मुद्रा में ही रहेंगे। यदि समीकरण ठीक नहीं बैठते, तो भाजपा समर्थन वापस ले भी सकती है, लेकिन तब तक वह अपने कई लक्ष्य साध चुकी होगी। यह 'मास्टर स्ट्रोक' इतना गोपनीय रखा गया कि अंतिम समय पर फडणवीस को बताया गया कि मुख्यमंत्री शिंदे होंगे और यह घोषणा आप करेंगे। फडणवीस के राजनीतिक पर कतर दिए गए अथवा उनका कद सीमित रखा गया, यह बचकाने विश्लेषण हैं, क्योंकि कद्दावर बनने में फडणवीस की अपनी मेहनत और राजनीतिक स्वीकृति का भी योगदान रहा है। हां, यह सवाल किया जा सकता है कि शपथ ग्रहण समारोह से ऐन पहले ही भाजपा अध्यक्ष नड्डा को राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर आकर यह निवेदन क्यों करना पड़ा कि फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनना चाहिए? बाद में उन्होंने निर्देश दिया कि फडणवीस उपमुख्यमंत्री होंगे। मजबूरन फडणवीस को शपथ लेनी पड़ी। सरकार बनाने की यह रणनीति संघ के स्तर पर बीते डेढ़ साल से खेली जा रही थी, लेकिन सेना के विधायकों के बगावत करने के बाद रणनीति फडणवीस खेल रहे थे और आलाकमान के लगातार संपर्क में थे। बहरहाल सत्ता-परिवर्तन हो चुका है। कुछ ही दिनों में पूरा परिदृश्य बदल जाएगा।
Rani Sahu

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