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देश की पुरानी एयर लाइन कंपनी एयर इंडिया एक बार फिर टाटा ग्रुप के पास लौट आई है
टाटा ग्रुप ने भावनाओं के चलते महाराजा यानी एयर इंडिया को ख़रीदा है। उम्मीद है कि उनके तजुर्बे और भावनात्मक लगाव से कई वर्षों से लॉस में चल रही एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति ठीक हो सकती है। टाटा गु्रप सामाजिक जिम्मेवारी के लिए भी जाना जाता है…
देश की पुरानी एयर लाइन कंपनी एयर इंडिया एक बार फिर टाटा ग्रुप के पास लौट आई है। कर्ज में फंसी एयर इंडिया को खरीदने के लिए टाटा ग्रुप ने 18000 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। एयर इंडिया का 15300 करोड़ रुपए का कर्ज टाटा चुकाएगी। एयर इंडिया पर 31 अगस्त तक 61560 करोड़ रुपए का कर्ज था। इसमें 15300 करोड़ रुपए टाटा संस चुकाएगी। पिछले दो दशकों से सरकार लगातार घाटे में जा रही एयर इंडिया के निजीकरण की कोशिश कर रही थी। इस दौरान केंद्र में 5 बार सरकारें बदलीं। एयर इंडिया हमेशा से सरकारी कंपनी नहीं थी। इसे 1932 में जेआरडी टाटा ने 'टाटा एयरलाइंस' के नाम से शुरू किया था। शुरू में यह कराची से मद्रास तक वीकली फ्लाइट सर्विस मुहैया कराती थी, जो अहमदाबाद और बॉम्बे होते हुए जाती थी। इस एयरलाइन ने अपने पहले साल में 155 यात्रियों और 10.71 टन चिठ्ठियों को लेकर 260000 किलोमीटर की उड़ान भरी। इस दौरान इसने 60000 रुपए का मुनाफा कमाया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह एयरलाइन एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी में बदल गई और इसका नाम एयर इंडिया हो गया। इसके ठीक बाद 1948 में भारत सरकार ने इसमें 49 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीद ली। फिर 1953 में सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास कर एयरलाइन में जेआरडी टाटा से मेजॉरिटी हिस्सेदारी खरीद ली। टाटा ग्रुप के एयर इंडिया और उसकी सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस के लिए बोली जीतने की घोषणा से पहले ही इस डील से जुड़ी चुनौतियों की लिस्ट तैयार हो रही थी। इनमें मुलाजिम, सीनियॉरिटी, पॉलिसीज, इंजीनियरिंग इत्यादि से जुड़ी चुनौतियां शामिल हैं। एयर इंडिया को एक्वायर करने के बाद टाटा ग्रुप के पास चार एयरलाइंस एयर एशिया इंडिया, विस्तारा, एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस हो जाएंगे। ये 150 डोमेस्टिक रूट्स पर फ्लाइट्स ऑपरेट करती हैं। इनमें से अधिकतम फ्लाइट्स 121 एयर इंडिया की हैं। इसके बाद एयर एशिया इंडिया की 46, विस्तारा की 42 और एयर इंडिया एक्सप्रेस की केवल 13 हैं। टाटा ग्रुप का एयर इंडिया के साथ भावनात्मक रिश्ता रहा है। यही कारण है कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन ने एक इमशोनल चिठ्ठी लिखकर एयर इंडिया का टाटा ग्रुप में स्वागत किया। इस चिठ्ठी के साथ उन्होंने जहांगीर रतनजी दादाभॉय टाटा (जेआरडी टाटा) की एक तस्वीर भी शेयर की और एयर इंडिया की टाटा ग्रुप में 'वापसी' पर खुशी जाहिर की। जेआरडी टाटा ने ही 1932 में टाटा एयरलाइंस के रूप में एयर इंडिया की स्थापना की थी जिसका 1948 में नाम बदलकर एयर इंडिया हो गया। बाद में सरकार ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर इसे अपने नियत्रंण में ले लिया था।
टाटा ग्रुप के चेयरमैन ने एक इमोशनल चिठ्ठी लिखकर कहा, 'जेआरडी टाटा आज हमारे बीच में होते तो वह खुशी से उछल पड़ते।' उन्होंने यह भी कहा की, 'यह हमारे लिए एक भावुक पल है। जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एक समय एयर इंडिया की गिनती दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में होती थी। टाटा ग्रुप के पास अब फिर से इस एयरलाइन को वही साख और प्रतिष्ठा दोबारा दिलाने का मौका है।' इस मौके पर जेआरडी टाटा की जो तस्वीर शेयर की गई, उसमें वह एयर इंडिया के एक विमान के सामने खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। साथ में उनके कुछ और यात्री भी विमान से उतर रहे हैं। एक बात और जो आज से 88 साल पुरानी है, 1932 है वो साल, जिस साल से पहले तक इंग्लैंड से हवाई डाक सिर्फ कराची तक ही पहुंचती थी। उसे कराची पहुंचाती थी इंपीरियल एयरवेज़। इंपीरियल एयरवेज़ ने इस डाक को मुंबई तक पहुंचाने का जि़म्मा दिया दो नौजवानों को, एक आरएएफ (रॉयल एयर फोर्स) का पूर्व पायलट नेविल विंसेंट और दूसरा उसका एक करीबी पारसी दोस्त जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा। 28 साल का नवयुवक जेआरडी टाटा जो भारत की उस टाटा फैमिली से आता था, जिसे देश की पहली बिज़नेस फैमिली कहा जा सकता है। जेआरडी का दूसरा परिचय ये कि वो भारत के पहले सिविल एविएशन पायलट थे। जेआरडी और उसके दोस्त ने इंपीरियल एयरवेज़ का कॉन्ट्रैक्ट पूरा करने के वास्ते 2 लाख रुपए इन्वेस्ट करके 'टाटा एयर मेल' नाम की कंपनी खोली। दो सेकेंड हैंड सिंगल इंजन एयर क्राफ़्ट ख़रीदे। स्टाफ में थे सिर्फ 11 लोग। दो पायलट, तीन इंजीनियर, चार कुली और दो चौकीदार। टाटा एयर मेल ने पहली उड़ान भरी 15 अक्तूबर 1932 को, कराची से मुंबई तक। इसे उड़ाने वाले ख़ुद जेआरडी टाटा ही थे।
शुरू में विमानों से मेल को इधर से उधर ले जाया गया। लेकिन फिर यात्रियों को भी ले जाने लगे। 1938 तक कंपनी का नाम टाटा एयरलाइंस हो गया और इसी साल इसने एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरी। 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस को पब्लिक कर दिया गया। पब्लिक करने का मतलब कंपनी में आम नागरिक भी हिस्सेदारी ख़रीद सकते थे। कंपनी पब्लिक लिमिटेड हुई तो नाम भी बदल कर एयर इंडिया रख दिया गया। मुंबई-लंदन और अन्य अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए टाटा ने सरकार के साथ मिलकर 'एयर इंडिया इंटरनेशनल' का गठन किया। डील के अनुसार सरकार ने टाटा की एयर इंडिया को अंतरराष्ट्रीय फ़्लाइट ऑपरेट करने की इजाज़त दी और एयर इंडिया के 49 फीसदी शेयर्स भारत सरकार के पास आ गए थे। आज़ादी मिलने तक भारत में ढेरों एयरलाइंस ऑपरेट करने लग गई थीं। कारण यह था कि द्वितीय विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद युद्ध में इस्तेमाल हुए ढेरों विमान भंगार के मोल बिक रहे थे। लेकिन 1952 तक आते-आते दुनिया भर की एयरलाइन्स की हालत में गिरावट देखी गई। इस विश्वव्यापी संकट से भारतीय एयरलाइंस को बचाने के वास्ते भारत के योजना आयोग ने सभी एयरलाइन्स को एकीकृत करके उनका निगम बनाने की सिफारिश की। मार्च 1953 में संसद ने 'एयर कॉर्पोरेशन बिल' पारित कर दिया। बिल के प्रावधानों के अनुसार दो निगम बने। घरेलू उड़ानों के लिए राष्ट्रीयकृत विमान सेवा का नाम रखा गया इंडियन एयरलाइंस। इसमें 8 प्राइवेट करियर को एक साथ जोड़ दिया गया था। इसी में एयर इंडिया के डॉमेस्टिक ऑपरेशन्स भी मर्ज़ हो गए, जबकि अंतरराष्ट्रीय विमानों को ऑपरेट करने वाली राष्ट्रीयकृत संस्था का नाम पड़ा एयर इंडिया। नेहरू की राष्ट्रीयकरण वाली नीति से जेआरडी टाटा नाराज़ थे। नेहरू ने उनकी नाराज़गी दूर करने की कोशिश की।
जेआरडी एयर इंडिया के अध्यक्ष बनाए गए और इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड का निदेशक भी बनाया गया। एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के डे टू डे ऑपरेशंस में उनकी बड़ी भूमिका होती थी। कहा जाता है कि वो एक रुपए सैलरी पर काम करते थे। जब 1950 और 60 के दशक में भारत गरीबी-भुखमरी जैसे मोर्चों पर जूझ रहा था, तब एयर इंडिया विकसित देशों के एयरलाइंस से मुकाबला कर रही थी। 1960 में एयर इंडिया इंटरनेशनल ने अपनी फ़्लीट में पहला बोइंग 707-420 शामिल किया। इस तरह वो जेट युग में प्रवेश करने वाली पहली एशियाई एयरलाइन बनी। 11 जून 1962 को एयर इंडिया दुनिया की पहली 'ऑल-जेट एयरलाइन' बन गई। 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बनी। कुछ महीनों बाद ही एयर इंडिया के मैनेजमेंट भी बदलाव हुआ। जेआरडी टाटा को हटा दिया गया। इससे वो काफी नाराज़ भी हुए। हालांकि इंदिरा गांधी की सरकार आने के बाद जेआरडी टाटा को बोर्ड का सदस्य बनाया गया। 1986 में जाकर राजीव गांधी ने रतन टाटा को एयर इंडिया का चेयरमैन बना दिया। आज टाटा ग्रुप देश का एक नामी पेशेवर बिजनेस ग्रुप है जिसने व्यापार के साथ-साथ देश के लोगों के प्रति सामाजिक जिम्मेवारी भी निभाई है। इस ग्रुप ने भावनाओं के चलते महाराजा यानी एयर इंडिया को ख़रीदा है। उम्मीद है कि उनके तजुर्बे और भावनात्मक लगाव से कई वर्षों से लॉस में चल रही एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति ठीक हो सकती है।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
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