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- राजस्थान में नया...
आदित्य नारायण चोपड़ा: राजस्थान में कांग्रेस की श्री अशोक गहलौत के नेतृत्व वाली सरकार का जिस तरह पुनर्गठन किया गया है उससे यह आभास होता है कि पार्टी का नई दिल्ली में बैठा आलाकमान दो वर्ष बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में कोई जोखिम नहीं लेना चाहता क्योंकि पिछले 20 वर्षों से राज्य में यह परंपरा सी चल रही है कि हर पांच साल बाद होने वाले चुनावों में कांग्रेस व भाजपा के बीच सत्ता बदल हो जाता है। इसके साथ ही यह भी जग जाहिर है कि राज्य कांग्रेस में जबर्दस्त गुटबाजी है और मुख्यमन्त्री श्री गहलौत व पूर्व उपमुख्यमन्त्री श्री सचिन पायलट के दो खेमे हैं। हकीकत तो यह है कि अब से 18 महीने पूर्व श्री पायलट ने पार्टी व सरकार से बगावत कर दी थी और अपने 18 समर्थक विधायकों समेत वह दिल्ली में डेरा डाल कर बैठ गये थे। तब उनके भाजपा में जाने की अफवाह बहुत तेजी से फैली थी क्योंकि इससे कुछ महीने पहले ही कांग्रेस में उनके साथी रहे ग्वालियर के नेता ज्योतिरादित्य सिन्धिया ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। परन्तु तब पायलट की बगावत के चलते गहलौत सरकार पर जो संकट के बादल गहराये थे उनकी गूंज उच्च न्यायालय तक में हुई थी और राज्यपाल की भूमिका भी विवादों में घिर गई थी। मसला श्री पायलट के बागी समर्थक विधायकों की सदस्यता की वैधता का खड़ा हो गया था। मगर समय के साथ यह मामला सुलझ गया और श्री पायलट के तेवर नरम पड़ गये और उन्होंने अपनी पार्टी के प्रति वफादारी की कसम पुनः उठा ली। मगर इस क्रम में उन्हें अपना उपमुख्यमन्त्री का पद खोना पड़ा था। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि 2018 के राज्य विधानसभा के दौरान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहते चुनावों में कांग्रेस को सफलता मिली थी मगर यह अपेक्षा के अनुरूप भी नहीं थी क्योंकि 200 सदस्यीय सदन में कांग्रेस मात्र 98 सीटें ही जीत पाई थी और उसे निर्दलीयों व चन्द बसपा विधायकों की मदद से ही बहुमत मिल पाया था जिससे उसकी सरकार बन पाई थी। किनारों पर बैठे बहुमत की सरकार को लगातार सफलतापूर्वक चलाने का श्रेय श्री गहलौत को दिया जाना चाहिए जिससे उनके राजनीतिक रणकौशल का पता चलता है। पिछले लगभग तीन सालों में राज्य में हुए उपचुनावों और बसपा के एक विधायक द्वारा कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद अब पार्टी को अपने बूते पर पूर्ण बहुमत प्राप्त हो चुका है और इसके कुल 102 सदस्य हैं। गहलौत सरकार को 19 निर्दलीय विधायक भी समर्थन दे रहे हैं। यह भी श्री गहलौत की कुशल राजनीति और नेतृत्व क्षमता है कि इन वर्षों में उनकी सरकार को गिराने की कोई भी चाल सफल नहीं हो सकी और मध्य प्रदेश की भांति इस राज्य में 'इस्तीफा संस्कृति' के जरिये सत्ता परिवर्तन नहीं हो सका। श्री गहलौत के रूप में राजस्थान को स्व. मोहनलाल सुखाड़िया और भैरोसिंह शेखावत के बाद एेसा कद्दावर नेता मिला है जिसकी नेतृत्व क्षमता में राज्य की जनता को पूरा विश्वास है। कांग्रेस के भीतर भी पिछड़े समाज से आने वाले नेताओं में उनका विशिष्ट स्थान माना जाता है, वैसे गौर से देखा जाये तो वह राज्य के पहले पिछड़ी जाति से आने वाले नेता हैं। उसे पहले सभी मुख्यमन्त्री कथित ऊंची जातियों से आते रहे हैं, परन्तु राजस्थान निराला राज्य है जिसने मुस्लिम मुख्यमन्त्री भी देखा है। संपादकीय :आर्यन खान को क्लीन चिटऑनलाइन क्रिमिनल से बचें...विधानसभा चुनावों की शतरंजप्रवासी भारतीयों की ताकततीन कृषि कानूनों की वापसीपाकिस्तान-तालिबान एक समान !सत्तर के दशक में स्व. बरकतुल्ला खां को स्व. इन्दिरा गांधी ने राज्य का मुख्यमन्त्री तब बनाया था जबकि उनसे पहले मोहनलाल सुखाड़िया जैसे कांग्रेसी महारथी नेता का राज्य में सिक्का चलता था मगर 1969 में हुए कांग्रेस के पहले विभाजन के समय वह संगठन कांग्रेस (सिंडीकेट) में चले गये थे और 1971 में हुए विधानसभा चुनावों में श्रीमती गांधी की नई कांग्रेस को अपार सफलता मिली थी। उस समय केवल सात प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले राज्य में श्री बरकतुल्ला खां को मुख्यमन्त्री बना कर कांग्रेस आलाकमान ने सबको हैरत में डाल दिया था मगर खां साहब भी खासे लोकप्रिय मुख्यमन्त्री रहे थे और उन्होंने रंग-रंगीले कहे जाने वाले राजस्थान की रंगीनी में चार चांद लगाने का ही काम किया था। श्री गहलौत भी वर्तमान सन्दर्भों में यही काम कर रहे हैं क्योंकि राजनीतिक कठिनाइयां होने के बावजूद उन्होंने राज्य के सामाजिक व आर्थिक विकास की कई महत्वपूर्ण योजनाओं को अंजाम दिया है और गरीब वर्गों में अपनी अलग पहचान बनाई है। जहां तक श्री पायलट का सवाल है तो वह यशस्वी पिता स्व. राजेश पायलट के पुत्र हैं और प्रतिभावान राजनीतिज्ञ हैं। राज्य में उनके कट्टर समर्थकों का एक वर्ग है। अतः पार्टी आलाकमान ने जमीनी सच्चाई को देखते हुए सरकार में पायलट समर्थकों को यथायोग्य स्थान देने का फैसला किया जिससे हर वर्ग सन्तुष्ट रह सके। हाल ही में पार्टी ने पंजाब में भी एेसा ही प्रयोग किया है मगर उसमें मुख्यमन्त्री बदला गया है। एेसा अगले वर्ष के शुरू में आसन्न चुनावों को देखते हुए किया गया है और यह प्रयोग सफल माना जा रहा है क्योंकि नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दलित वर्ग से आते हैं। परन्तु राजस्थान की हकीकत और है । यहां श्री गहलौत स्वयं पिछड़े (माली) समाज से आते हैं। अतः उनके मंत्रिमंडल में दलितों व अनुसूचित जातियों को भी समुचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया है।