सम्पादकीय

गिरेबान में कभी अपने भी झांकिए

Subhi
6 Feb 2022 3:54 AM GMT
गिरेबान में कभी अपने भी झांकिए
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पिछले सप्ताह दो घटनाओं ने मुझे याद दिलाया कि नरेंद्र मोदी क्यों दो बार पूर्ण बहुमत हासिल करके प्रधानमंत्री बने हैं। साथ में इन घटनाओं ने भी याद दिलाया कि मैंने क्यों मोदी का समर्थन किया था कभी।

तवलीन सिंह: पिछले सप्ताह दो घटनाओं ने मुझे याद दिलाया कि नरेंद्र मोदी क्यों दो बार पूर्ण बहुमत हासिल करके प्रधानमंत्री बने हैं। साथ में इन घटनाओं ने भी याद दिलाया कि मैंने क्यों मोदी का समर्थन किया था कभी।

पहली घटना थी वह वाली जिसमें 'अबाइड विद मी' नाम की अंग्रेजी धुन बीटिंग रिट्रीट के कार्यक्रम से हटाई गई और उसके बदले 'ऐ मेरे वतन के लोगों' की धुन चुनी गई। जिस अंग्रेजी धुन की जगह इस देसी धुन ने ली थी, उसको हर वर्ष इस उत्सव में इसलिए खास जगह दी गई थी, क्योंकि कहा जाता है कि गांधीजी इसको बहुत पसंद करते थे।

सो, कई आला कांग्रेस नेताओं ने खूब हल्ला मचाया, जब मालूम हुआ कि इस साल इसको हटा दिया गया है। इनका समर्थन कई जाने-माने बुद्धिजीवियों और लेखकों ने खुल कर किया, जिनकी शोहरत अंग्रेजी में अच्छा लिखने से बनी है। इनका शोर मीडिया में तभी बंद हुआ जब 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाने की धुन बजी और सारे देश को ऐसा छू गई कि मेरे साथ जो लोग बैठ कर इस समारोह को टीवी पर देख रहे थे, उन सबकी आंखें भर आईं। मेरा भी यही हाल था।

धुन के बजने के फौरन बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इस देसी धुन को उस अंग्रेजी धुन की जगह बजाना बहुत अच्छा फैसला था। यह गाना कोई चालीस साल पुराना है। इसको कवि प्रदीप ने लिखा 1962 वाली जंग के बाद, जब चीन ने हमको बुरी तरह हराया और जिसमें हमारे कई जवान मारे गए थे।

कई सिर्फ इसलिए कि भारत सरकार ने उनको बर्फीली, पहाड़ी युद्ध भूमि में भेजा बिना गर्म कपड़ों के, बिना मुनासिब जूतों के। इतने सालों बाद क्यों याद आया है कि इस धुन को बीटिंग रिट्रीट में होना चाहिए? इसलिए कि नरेंद्र मोदी के राज में कई चीजों का देसीकरण हुआ है।

जिस अंग्रेजीपन पर कभी हमारे शासक इतरा कर चला करते थे, अब गायब हो गया है। जो लोग कभी अंग्रेजों की तरह अंग्रेजी बोला करते थे, आज हिंदी बोलने की कोशिश करते हैं। देसी बनने की कोशिश करते हैं। ऐसा हुआ है मोदी के आने के बाद।

लेकिन आज भी कुछ चीजें उस पुराने दौर की चलती आ रही हैं। कांग्रेस पार्टी की पैरवी आज भी राहुल गांधी करते हैं बावजूद इसके कि दूसरी बार आम चुनाव हारने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया था कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हार की जिम्मेवारी लेते हुए।

पिछले सप्ताह राहुलजी वतन वापस आए विदेशों में घूमघाम के और लोकसभा में दिखे राष्ट्रपति के भाषण पर बहस में हिस्सा लेते हुए। लंबा, भावुक भाषण दिया उन्होंने जिसकी तारीफ उनके समर्थकों ने खूब की सोशल मीडिया पर। लेकिन सच पूछिए तो मुझे इस भाषण को सुनने के बाद ऐसा लगा जैसे कांग्रेस के ये चिर युवराज अभी समझ नहीं पाए हैं कि यह देश कितना बदल गया है पिछले सात वर्षों में और वे खुद अभी तक वहीं खड़े हैं जहां थे 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद।

अपने भाषण में उन्होंने पहली गलती यह की, मेरी नजर में, कि एक बार फिर याद दिलाया कि उनके परदादा जेल में कई साल रहे आजादी की लड़ाई के दौरान, उनकी दादी और पिता ने कैसे अपनी जानें कुर्बान कर दी थीं देश के लिए। संदेश उनका यही था शायद कि भारत उनको विरासत में मिल जाना चाहिए।

बाकी भाषण में इतनी गलतियां थीं इतिहास और राजनीति को लेकर कि मोदी के आला मंत्रियों को दखल देना पड़ा। विदेश मंत्री को दखल इसलिए देना पड़ा, क्योंकि राहुलजी ने आरोप लगाया मोदी सरकार पर कि उनकी गलत विदेश नीति के कारण इस देश के दो सबसे बड़े दुश्मन- चीन और पाकिस्तान- अब मिल गए हैं।

क्या किसी ने उनको इतना भी नहीं बताया था कि इन दोनों देशों के बीच दोस्ती इतनी पुरानी और पक्की है कि पाकिस्तान ने दशकों पहले चीन को काराकोरम हाइवे बनाने की इजाजत दे दी थी कश्मीर के उस हिस्से में, जो उनके कब्जे में है?


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