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- विसंगतियों का जंजाल
Written by जनसत्ता; ऐसे दौर में अनर्गल प्रलाप के माध्यम से जनमत को प्रभावित करने का हर संभव उपक्रम किया जाता है। राजनीतिक तथा सामाजिक क्षेत्र में जब तर्क-वितर्क का स्थान व्यक्तिगत आक्षेप की ओर केंद्रित हो जाता है, तब तनावपूर्ण परिस्थितियां निर्मित होने लगती हैं।
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व सामाजिक समरसता की खातिर व्यक्तिगत आलोचना को हतोत्साहित करें। अन्यथा चुनाव-दर-चुनाव व्यक्ति से व्यक्ति की दूरियां बढ़ती चली जाएगी। परिणामस्वरूप राजनीतिक तथा सामाजिक जनजीवन में परस्पर अविश्वास का वातावरण देश के सांस्कृतिक मूल्यों के सर्वथा विपरीत जाकर नकारात्मक परिणाम देने लगेगा।
कालांतर में इसके दूरगामी दुष्परिणाम अत्यंत घातक सिद्ध हो सकते हैं। यों भी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में विभिन्न राजनेताओं पर प्रामाणिकता का संकट दिन-प्रतिदिन विकट होता चला जा रहा है। परस्पर आरोप-प्रत्यारोप के चलते एक-एक करके हर एक राजनीतिक संदेह के दायरे में आता जा रहा है। कल्पना की जा सकती है कि ऐसी परिस्थितियों में आने वाली पीढ़ियों के सम्मुख हम कौन-सा आदर्श रख पाएंगे?
दरअसल, राजनीति में नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए जागृत जनमत की अत्यंत आवश्यकता है। नकारात्मक व्यक्तित्व का कालांतर में सकारात्मक विभूति के रूप में परिवर्तित हो जाना केवल राजनीति में ही संभव सिद्ध हो सकता है। समय-समय पर होने वाले चुनावों में 'जीत की संभावना' के आधार पर प्रत्याशियों का चयन किया जाता है। राजनीति की प्रचलित परंपरा में जातिगत समीकरण, धनबल तथा बाहुबल जीत की संभावना का आधार सुनिश्चित करते हैं। इन हालात को बदले जाने की जरूरत है। दिन-प्रतिदिन विकृत होती जा रही राजनीति में शुचिता और पवित्रता की स्थापना के लिए जनमत का जागृत होना अत्यंत आवश्यक है।
इस विषय में सार्थक प्रयासों की शुरुआत राजनीतिक स्तर पर होने की कल्पना व्यर्थ है। लेकिन सामाजिक स्तर पर ऐसी संभावना बनती प्रतीत होती है, जिससे कि राजनीति में व्याप्त तमाम विसंगतियों का कारगर समाधान संभव सिद्ध हो सके। राजनीति की एक और विडंबना यह भी है कि विभिन्न राजनेताओं के समक्ष प्रामाणिकता का संकट सर चढ़कर बोल रहा है। राजनेताओं के व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन करते समय एक अजीब-सी भ्रमपूर्ण मानसिक अवस्था से दो-चार होना पड़ता है, जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर विसंगतियों के जंजाल में उलझकर राजनीति में नैतिक मूल्यों का पतन अत्यंत चिंता का विषय है।
वर्तमान दौर में तकनीकी विकास के साथ साथ विद्युत गति से आचार-विचार और व्यवहार का आदान-प्रदान होने लगा है। इसके सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही प्रकार के प्रभाव समाज पर पड़ते हैं। ऐसे में संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के प्रति सामाजिक जागृति अत्यंत आवश्यक है। कुल मिलाकर बदलते परिवेश में आत्मानुशासन को बढ़ावा देना जरूरी है। हम पहल करें और समाज के सम्मुख आदर्श उपस्थित करें। बेशक जब ऐसा हो तभी कोई बात बन सकती है। यों कुछ हद तक हम आश्वस्त हो सकते हैं, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चलते हम अपने अभिमत को प्रकट करते हुए जनमत से समर्थन की आस कर सकते हैं।