सम्पादकीय

नवउदारवाद की देन है सत्ता को कंट्रोल करने वाले अति अमीर "रूसी ओलीगार्क"

Rani Sahu
4 March 2022 11:13 AM GMT
नवउदारवाद की देन है सत्ता को कंट्रोल करने वाले अति अमीर रूसी ओलीगार्क
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ओलीगार्क यानी वे अति अमीर जो किसी भी देश को नियंत्रित करते हैं

Faisal Anurag

ओलीगार्क यानी वे अति अमीर जो किसी भी देश को नियंत्रित करते हैं. ग्लोबलाइजेशन के कारण हर देश का एक ऐसा तबका उभर कर आ गया है, जो है तो संख्या में सीमित लेकिन कई देशों की नीतियों और राजनीति को अपने इशारे पर नचाता है. यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद यह शब्द इन दिनों खूब चर्चा में है. ये ओलीगार्क न केवल तबाही के लिए जबाव देह हैं, बल्कि तबाही के कारणों को भी तैयार करने में माहिर हैं. कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में चुनाव की महत्ता के बावजूद वे ही तय करते हैं कि किस देश में किस तरह की और किसकी सरकार की जरूरत है. ये ओलीगार्क केवल रूस में व्लादिमीर पुतिन को ही नियंत्रित और संचालित नहीं करते बल्कि उन देशों की सत्ताओं को प्रभावित करते हैं, जहां लोकतंत्र के नाम पर एकाधिकारवादी प्रवृति हावी है. पिछले 35 सालों में इस समूह ने इतनी आर्थिक ताकत हासिल कर ली है कि वे ही सत्ता के वास्तविक नियंत्रक हैं. कठपुतली नेताओं को सत्ता में बैठाना और हित नहीं सधने पर उतार फेंकना उनके लिए बाएं हाथ के खेल की तरह है.
ओलीगार्क की एक परिभाषा है : एक सरकार जिसमें एक छोटा समूह विशेष रूप से भ्रष्ट और स्वार्थी उद्देश्यों के लिए नियंत्रण का प्रयोग करता है. इस तरह के नियंत्रण का प्रयोग करने वाला एक समूह जो राष्ट्र पर वास्तविक शासन करता है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पिछले चार दशकों में जितने भी युद्ध हुए हैं, उसमें ऐसे ओलागार्क की एक बड़ी लेकिन परोक्ष भूमिका रही है. पूर्वी यूरोप के ज्यादातर देश में ओलागार्क की पसंद के ही नेता सत्ता में रहते हैं. यूक्रेन भी इसका अपवाद नहीं है. विषोषज्ञों का मानना है कि वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को सत्ता तक पहुंचाने की पूरी रणनीति दुनिया के बड़े पूंजीपतियों की भूमिका रही है. यह वही जॉर्ज सारेस हैं, जो अमरीका में किसको राष्ट्रपति बनाया जाए उसकी रणनीति बनाने वालों में महत्वपूण हैं. दक्षिण एशिया में भी यह धारणा बलबती है कि चुने हुए चंद कॉरपारेट टाइकून घराने इसी तरह के ओलीगार्क बनते नजर आ रहे हैं. पुतिन की तो पूरी राजनीति, व्यवसाय और आर्थिक नीतियों का निर्धारण यही लोग तय करते हैं. पुतिन के सबसे करीबी ओलीगार्क पुतिन के शासन काल में ही उभरे हैं और जिनकी बेशुमार संपत्ति इस समय दुनियाभर में चर्चा का विषय है.
लोकतंत्र किस तरह हाइजेक होता है, इसे भी इन ओलीगार्क के उभरने औनर ताकतवर बनने की प्रक्रिया से देखा जा सकता है. अमेरिका स्थित नेशनल इकोनॉमिक ब्यूरो (एनईबी) का 2017 का एक अध्ययन इस दावे का समर्थन करता है. अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि यूनाइटेड किंगडम, स्विट्जरलैंड, साइप्रस और इसी तरह के अपतटीय बैंकिंग केंद्रों जैसे देशों में रूसी कुलीन वर्गों के पास लगभग 800 बिलियन डॉलर हैं. इन अति-अमीर कुछ सौ रूसियों के पास लगभग 15 करोड़ रूसी आबादी के बाकी हिस्सों के बराबर संपत्ति है. आधिकारिक तौर पर पुतिन की वार्षिक आय 1,31,900 डॉलर की बात रिपोर्ट में की गयी है. हालांकि उनकी आमदनी इससे बहुत ज्यादा है, यूरोप में यह धारणा प्रबल है कि पुतिन के पास कई अरबों नकद और विदेशी संपत्ति है, जो उनके भरोसेमंद मित्रों और रिश्तेदारों के कुलीन वर्ग को लाभ पहुंचाता है. इस तरह के अति अमीर तो नवउदारवाद के शुरू होने के बाद तेजी से उभरे हैं. हथियारों के व्यापार ने इस तरह के अति अमीरों को अनेक देशों में इतना प्रभावी बना दिया है कि पूरी राजनीति उसके आसपास ही सिमटी रहती है.
आमतौर इस तरह की प्रवृति से आमजन वोटर अनभिज्ञ ही रहते हैं. इन ताकतों के उभार ने अनेक देशों में चुनावी लोकतंत्र ने भी एकाधिकारवादी सत्तातंत्र को बढ़ावा दिया है. क्योंकि इस तरह के ओलीगार्क तो ज्यादातर देशों की वास्तविकता बन कर उभर रहा है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के अनुसार, राष्ट्रपति के रूप में व्लादिमीर पुतिन के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक रूसी राज्य के अधिकार को फिर से स्थापित करना था. उन्होंने संघीय विधानसभा, क्षेत्रीय अभिजात वर्ग और तथाकथित कुलीन वर्गों के साथ क्रेमलिन के संबंधों को फिर से परिभाषित करके राष्ट्रपति पद को मजबूत किया है. अमीर टाइकून जो बोरिस येल्तसिन के समय उभर ही रहे थे और रूसी राजनीति पर हावी थे. इस अध्याय में इस बात की पड़ताल की गई है कि पुतिन ने अपने लक्ष्य का पीछा कैसे किया.
यह तर्क देता है कि पुतिन और कुलीन वर्गों के बीच संबंधों की स्थिरता सौदे की शर्तों को बनाए रखने के लिए मजबूत प्रोत्साहन देती रही है. ओलीगार्क किसी एक देश तक सीमित नहीं हैं. हाल ही में जारी विषमता इंडेक्स और रिपोर्ट बताती है कि किसी तरह देशों की बड़ी आबादियों के पास से संपत्ति निकल कर उन चंद कॉरपारेट टाइकून के हवाले हो रहा है जिनके देश के सत्ता प्रधानों से गहरे रिश्ते हैं. वक्त है कि ऐसे ओलीगार्क की पहचान उन देशों में भी जाए जो स्वयं को लोकतांत्रिक बताते हैं जो चुनाव जीत कर ही सत्ता में बैठते हैं. अर्थतंत्र,मीडिया और विदेशनीति पर इस प्रभाव की छाया देखी जा सकती है.
Rani Sahu

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