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कितने किसान मरे हैं, केंद्र सरकार को नहीं पता. संसद में इस सवाल पर दिए गए सरकार के जवाब बताते हैं कि
कितने किसान मरे हैं, केंद्र सरकार को नहीं पता. संसद में इस सवाल पर दिए गए सरकार के जवाब बताते हैं कि सरकार नहीं जानने पर अड़ जाए तो उसे कोई नहीं बता सकता है. आखिर सरकार क्यों नहीं बता रही है कि किसान आंदोलन के दौरान कितनने किसानों की मौत हुई है. संसद के तीन तीन सत्रों में सांसद सवाल पूछ रहे हैं तो क्या वाकई सरकार के पास इतने दिनों में कोई आंकड़ा नहीं है. यह सवाल बजट सत्र में भी पूछा गया था. सांसद अदूर प्रकाश और वी के श्रीकन्दन ने आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों की संख्या को लेकर सवाल किया था. लोकसभा में 2 फरवरी 2021 को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया कि कितने किसान मरे हैं. इसकी जगह राज्य और केंद्र के अधिकारों का ब्यौरा जवाब में लिख दिया.
भारत के संविधान की सातवीं अनुसूचि के अनुसार पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य के विषय हैं. कानून व्यवस्था बनाए रखने की जवाबदेही राज्य सरकारों की है. केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से व्यक्तियों और संगठनों पर नज़र रखती है. जब ज़रूरत होती है तब कार्रवाई करती है.
यह भी जवाब का हिस्सा है मगर उस सवाल का जवाब नहीं है कि किसान आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई है. राज्यसभा सांसद संजय सिंह और के सी वेणुगोपाल सवाल करते हैं कि क्या सरकार को देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलन कर रहे किसानों के मरने की जानकारी है? यदि हां तो कितने किसानों की मौत हुई है, राज्य वार ब्यौरा दें. इसका जवाब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर देते हैं. जवाब की तारीख है 5 फरवरी 2021 यानी नित्यानंद राय के जवाब के तीन दिन बाद का यह जवाब है. कृषि मंत्री कहते हैं कि ''कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पास कोई रिकार्ड नहीं है. गृह मंत्रालय ने बताया है कि देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलनकारी किसानों की मौत से संबंधी कोई विशिष्ट सूचना नहीं है. हालांकि दिल्ली पुलिस ने सूचित किया है कि किसान आंदोलन के दौरान दो लोगों की मौत हुई है और एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है.''
जिस गृह मंत्रालय ने तीन दिन पहले बताया है कि उसके पास कोई रिकार्ड नहीं है, तीन दिन बाद उसी गृह मंत्रालय से पूछ कर कृषि मंत्रालय बता रहा है कि किसान आंदोलन के दौरान दो लोगों की मौत हुई है और एक व्यक्ति ने आत्महत्या की है. इस जवाब में किसान शब्द का इस्तमाल नहीं किया गया है. दोनों जवाब फरवरी के बजट सत्र के हैं. लेकिन यह बात रिकार्ड पर है कि फरवरी तक सरकार को जानकारी है कि किसान आंदोलन के दौरान तीन लोगों की मौत हुई है. अब अगस्त में राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह, कुमार केतकर, राजमणि पटेल यही सवाल करते हैं कि क्या सरकार ने आंदोलन के दौरान हुई किसानों की मौत का रिकार्ड बनाया है? इस बार भी गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ही जवाब देते हैं जिन्होंने फरवरी में जवाब दिया था. इस बार जवाब की तारीख 11 अगस्त 2021 है.
'भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य के विषय हैं. इस तरह की कोई सूचना केंद्रीयकृत रूप से उपलब्ध नहीं है. तथापि, दिल्ली पुलिस ने आत्महत्या के कारण एक किसान की मौत होने की सूचना दी है.'
आपने अभी सुना कि कृषि मंत्री अपने जवाब में दिल्ली पुलिस के हवाले से कह रहे हैं कि तीन लोगों की मौत हुई है. और अब अगस्त में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय जवाब में लिख रहे हैं कि दिल्ली पुलिस ने एक किसान की आत्महत्या की ही सूचना दी है. अब संख्या तीन से एक पर आ गई. लेकिन अगस्त के जवाब में किसान शब्द का इस्तमाल है, फरवरी के जवाब में लोग है किसान नहीं है. क्या आपको पता चला कि जवाब देने के मामले में सरकार संसद में पूछे गए सवालों के जवाब को लेकर कितनी गंभीर है? अभी हमारी बात खत्म नहीं हुई है. इस शीतकालीन सत्र में भी सवाल उठा है कि किसान आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई है. लोकसभा में एक नहीं बल्कि आठ सांसदों ने यह सवाल किया है. इसमें सरकार की सहयोगी पार्टी के सांसद राजीव रंजन सिंह भी हैं. कई सवालों में आखिरी के दो सवाल हैं कि किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों की संख्या का ब्यौरा दें और बताएं कि क्या उन्हें मुआवज़ा दिया जाएगा तो जवाब में कृषि मंत्री कहते हैं, ''इस मामले में कृषि मंत्रालय के पास कोई रिकार्ड नहीं है और इसलिए मुआवज़े का प्रश्न ही नहीं उठता है.''
हमने किसान आंदोलन के दौरान संसद में पूछे गए चार प्रश्नों और चार जवाबों को दिखाया. बताया कि दो जवाब में सरकार बता रही है कि कितने लोगों की मौत हुई है. एक जवाब में कहती है कि तीन लोगों की मौत हुई है और एक जवाब में कहती है कि एक किसान ने आत्महत्या की है. लेकिन अब जब संयुक्त किसान मोर्चा पूरी सूची के साथ मुस्तैद है कि 700 किसानों की मौत हुई है उनके परिवारों को मुआवज़ा मिलना चाहिए, एक साल बाद सरकार कहती है कि उसके पास इसका कोई रिकार्ड नहीं है. इसलिए मुआवज़े का सवाल नहीं उठता.
यह बात सही है. पंजाब ने मरने वाले किसानों के परिजनों को मुआवज़ा दिया है और नौकरी भी दी है. करनाल में पुलिस से टकराव के बाद किसान सुशील काजल की मौत हो गई थी जिसे लेकर किसानों ने करनाल मुख्यालय को घेर लिया था. तब सरकार ने मुआवज़ा और नौकरी देने की मांग मान ली थी. क्या ये आंकड़े लेकर भी सदन में सांसदों को नहीं दिए जा सकते थे? इन आंकड़ों के होते हुए सरकार कैसे कह सकती है कि उसके पास इस बात के कोई रिकार्ड नहीं है कि कितने किसान मरे हैं. अगर रिकार्ड रखना राज्य का काम है तो राज्य से पूछ कर बताया जा सकता था ठीक उसी तरह से जैसे राज्यों के हवाले से संसद में सरकार ने कह दिया था कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई है.
सबने उस दौर में देखा था और अस्पतालों ने चीख चीख कर कहा था कि आक्सीजन की सप्लाई खत्म हो रही है, सरकार आक्सीजन एक्सप्रेस चला रही थी, कई जगहों से आक्सीजन की कमी से लोगों के मरने की खबरें आई थीं, डाक्टर तक मरे थे लेकिन राज्यों से पूछ कर केंद्र ने संसद में कह दिया कि आक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा. राज्यसभा में कांग्रेस सांसद के सी वेणुगोपाल ने एक सवाल किया था कि क्या यह सही है कि दूसरी लहर के दौरान आक्सीजन की कमी के कारण सड़क पर और अस्पताल में कई लोगों को मौत हो गई थी. इसके जवाब में 20 जुलाई को स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार कहती हैं कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है. दिशानिर्देशों के अनुसार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नियमित रिपोर्ट दी है. वैसे किसी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ने आक्सीजन की कमी से मौत का ब्यौरा नहीं दिया है.
लोकसभा सांसद के. रवींद्र कुमार ने एक सवाल पूछा था कि क्या सरकार ने आध्र प्रदेश के रुइया अस्पताल में आक्सीजन की कमी से हुई मौत के मामले में कोई जांच की है? 20 जुलाई 2021 को राज्यसभा में जिस स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि राज्यों ने कहा है कि किसी की मौत आक्सीजन की कमी से नहीं हुई है. वही स्वास्थ्य मंत्री 20 दिनों के बाद 10 अगस्त को लोकसभा में जवाब देती हैं. स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार कहती हैं कि आंध्र प्रदेश सरकार ने बताया है कि SVRR अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्ट पर कुछ मरीज़ों की मौत हुई है. आक्सीजन लाइन में दबाव कम हो गया था क्योंकि वेंटिलेटर सपोर्ट के मरीज़ों के लिए आक्सीजन कम उपलब्ध था.
उसीतरह अपराध भी राज्यों के विषय हैं तो क्या केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो हर साल रिपोर्ट तैयार कर देश को नहीं बताता है और उसके आधार पर सरकार संसद में जवाब नहीं देती है? केंद्रीय मंत्री भी कह रहे हैं कि कैसे मौत के आंकड़े गृह मंत्रालय तक पहुंचते हैं. इनके जवाब के अनुसार गृह मंत्रालय के पास डेटा है तो फिर संसद में क्यों नहीं बताया जाता है.
ऐसा नहीं है कि सरकार के पास किसी चीज़ का रिकार्ड नहीं होता या पता नहीं होता. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक सवाल किया है कि क्या सरकार को पता है कि आस्ट्रेलिया की संसद ने फरवरी में एक कानून बनाया है कि गूगल और फेसबुक को न्यूज़ का भुगतान करना होगा तो सरकार ने कहा कि पता है. आस्ट्रेलिया में क्या हो रहा है इसका पता है, होना भी चाहिए लेकिन यह भी पता होना चाहिए कि किसान आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई है. किसानों की मौत के आंकड़े देते वक्त आप यह नहीं कह सकते कि कानून व्यवस्था राज्यों के विषय है. क्या राज्यों से पूछ कर सरकार ये जानकारी नहीं दे सकती है कि कितने किसान मरे हैं.
सवालों की भाषा और जवाब की भाषा पर ग़ौर करने पर काफी कुछ जानने को मिलता है. देखना चाहिए कि क्या सरकार प्रश्न का सीधा जवाब देती है और उसकी जगह कुछ और लिख देती है. जवाब को टाला गया है या घुमा दिया गया है. मीडिया इन्हें आम तौर पर संक्षिप्त खबरों में निपटा देता है और न्यूज़ चैनलों में इन प्रश्नों और उत्तरों के लिए आज तक कोई फार्मेट नहीं बन सका जिससे जनता को बताया जा सके. इन सवालों को देखेंगे तो पता चलेगा कि आपके सांसद कितनी मेहनत करते हैं. राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने उज्ज्वला को लेकर सवाल किया. आप इन सवालों पर ग़ौर करें और सरकार के जवाब पर भी. सवाल पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री से पूछा गया है.
2021 में घरेलु एलपीजी सिलेंडडरों से सरकार को कुल कितना मासिक राजस्व अर्जित हुआ है? 2021 में वाणिज्यिक एलपीजी सिलेंडरों से सरकार द्वारा अर्जित कुल मासिक राजस्व कितना है?
प्रश्नकर्ता सांसद जानना चाहते हैं कि दोनों प्रकार के सिलेंडर की बिक्री से जो राजस्व मिला है उसकी राशि बताएं. लेकिन जवाब में राशि का ज़िक्र नहीं है. सरकार बताने लग जाती है कि कीमतें कैसे तय होती हैं. जीसएटी कितना लगता है. पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली अपने जवाब में कहते हैं कि "घरेलू और गैर-घरेलू एलपीजी सिलेंडरों से मिलने वाला राजस्व माह-दर-माह अलग होता है. क्यंकि मुद्राओं की विनिमय दर तथा अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में उत्पाद के मूल्यों के आधार पर तेल कंपनियों द्वारा खुदरा बिक्री मूल्यों को अधिसूचित किया जाता है. तथापि सरकार घलेलू एलपीजी पर पांच प्रतिशत जीएसटी और गैर घरेलू एलपीजी पर 18 प्रतिशत जीएसटी लेती है."
मल्लिकार्जुन खड़गे एक और सवाल करते हैं. 2021 में उज्ज्वला योजना के अंतर्गत प्रत्येक एलपीजी सिलेंडर के लिए बैंक खातों में हस्तांरतित की गई सब्सिडी का माह-वार ब्यौरा क्या है?
जवाब- घरेलू एलपीजी पर दी जाने वाली राज सहायता बाज़ार दर बाज़ार अलग होती है और गैर राज सहायता प्राप्त मूल्य पर रीफिल की खरीद करने पर लाभार्थी के बैंक खाते में लागू राज सहायता का सीधे अंतरण कर दिया जाता है. राज सहायता का भार सरकार वहन करती है.
क्या सरकार ने अपने जवाब में बताया कि हर महीने प्रत्येक सिलेंडर के हिसाब से खाते में कितनी सब्सिडी जाती है? वो तो प्रश्नकर्ता को भी पता है कि सब्सिडी खाते में जाती है, तो सरकार क्यों बता रही है कि सब्सिडी का पैसा सीधे खाते में जाता है. सवाल इस बात को लेकर था कि कितना पैसा गया है, जवाब में इसका ज़िक्र नहीं है. सरकार ने क्यों नहीं बताया कि कितनी राशि हर महीने बैंक खाते में जाती है जबकि 17 दिसंबर 2018 को लोकसभा में सरकार ने एक सवाल के जवाब में पूरा ब्यौरा दिया है कि तेल निर्माता कंपनियों ने बताया है कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों ने 22 करोड़ 91 लाख से अधिक सिलेंडर दोबारा भरवाए हैं. 2016-2019 के दौरान प्रति सिलेंडर औसत सब्सिडी का ब्यौरा दिया गया है. 2016-17 में प्रति सिलेंडर 108.78 रुपये राज सहायता दी गई. 2017-18 में प्रति सिलेंडर 173 रुपये 41 पैसे की राज सहायता दी गई. 2018-19 में प्रति सिलेंडर 219 रुपये 12 पैसे की राज सहायता दी गई.
इसका मतलब है कि सरकार एक समय बताती थी कि प्रति सिलेंडर कितनी सब्सिडी दी गई है. ये वो सवाल हैं जिसके बारे में मंत्री खुद से ट्वीट नहीं करते हैं. कभी मंत्री ट्वीट नहीं करेंगे कि उज्ज्वला योजना के तहत इतने लाख ग़रीब लाभार्थी अब सिलेंडर नहीं भरा रहे हैं. प्रथम तालाबंदी के समय सरकार ने घोषणा की थी कि उज्ज्वला योजना के लाभार्थी को तीन सिलेंडर मुफ्त दिए जाएंगे. अब इसे लेकर कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने एक सवाल किया जिसका जवाब 29 नवंबर को सरकार ने राज्यसभा में दिया है. रिपुन बोरा का सवाल था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि एलपीजी की कीमतों में वृद्दि सीधे तौर पर घरेलू बजट को प्रभावित करने वाली है औऱ वह भी उस समय जब महामारी के दौर में नौकरी चले जाने या वेतन में कटौती होने के कारण अनेक लोगों का गुज़र बसर मुश्किल हो रहा है. सरकार का जवाब है कि वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान मदद करने के लिए उज्ज्वला योजना के तहत अधिकतम तीन निशुल्क एलपीजी सिलेंडर उपलप्ध करवाए हैं और इस योजना के तहत उज्ज्वला उपभोक्ताओं ने 14.17 करोड़ नि:शुल्क एलपीजी सिलेंडरों का उपयोग किया है.
एक उपभोक्ता को फ्री में तीन सिलेंडर दिए जाने थे तो क्या फ्री सिलेंडरों की संख्या 24 करोड़ नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि सरकार कहती है कि उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ उपभोक्ता हैं. अगर सभी को मिले हैं तो राज्यसभा में 14 करोड़ क्यों बताया गया है? दस करोड़ कम क्यों है. इस साल 12 अगस्त को जब उज्ज्वला योजना का दूसरा चरण लांच हुआ तो पत्र सूचना कार्यालय PIB की प्रेस रिलीज़ में बताया है कि केंद्र सरकार ने 8 करोड़ लाभार्थियों को तीन सिलेंडर मुफ्त में दिए. इस हिसाब से तो यह संख्या 24 करोड़ सिलेंडर की होती है लेकिन सरकार संसद में 14 करोड़ बताती है और प्रेस रिलीज़ में कुछ और बताती है.
सूचक पटेल के एक RTI के जवाब में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने बताया है कि 1 करोड़ उज्ज्वला उपभोक्ताओं को मुफ्त में सभी तीन सिलेंडर दिए हैं. जबकि सरकार दावा करती है कि उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ उपभोक्ता हैं और सभी को तीन तीन सिलेंडर फ्री में दिए हैं. RTI के हिसाब से कुल लाभार्थियों के 12.5 प्रतिशत को ही फ्री के तीनों सिलेंडर मिले हैं.
इसलिए सवाल पूछना पड़ता है. तभी पता चलता है कि आठ करोड़ उपभोक्ताओं को 24 करोड़ सिलेंडर मिले हैं या नहीं. अगर मिलें होंगे तो सरकार हर जगह एक तरह से ही जवाब देगी. उसके आंकड़ों में अंतर नहीं आना चाहिए. आपने देखा कि सरकार की प्रेस रिलीज़ में कुछ और जानकारी है, RTI में अलग जानकारी है और संसद में कुछ और. क्या सरकार के मंत्री खुद से ट्वीट कर देंगे कि उज्ज्वला योजना की सब्सिडी मई 2020 से ज़ीरो हो गई है. नहीं करेंगे. इस साल मार्च महीने में हिन्दू अखबार में विस्तार से एक रिपोर्ट छपी कि मई 2020 से उज्ज्वला की सब्सिडी ज़ीरो हो गई है. आज वाणिज्यिक सिलेंडर के दाम 100 रुपये बढ़ा दिए गए.
संसद में सवाल को लेकर एक और मामला है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा के सभापति को एक पत्र लिखकर हैरानी जताई है कि पांच सत्रों से मीडिया के कुछ ही संगठन को सदन के भीतर प्रेस गैलरी में आने दिया जा रहा है. वरिष्ठ पत्रकारों को सेंट्रल हॉल में जाने से रोक दिया गया है. ये वो जगह है कि जहां पत्रकार सांसदों और मंत्रियों से ऑफ रिकार्ड चर्चाएं किया करते हैं. संसद सत्र के दौरान सांसदों को सदन के भीतर और पत्रकारों को सदन के बाहर सवाल पूछने का मौका मिलता है.
प्रधानमंत्री ने सात साल में एक भी खुली प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है. गीतकार और फिल्म कलाकार को इंटरव्यू दिया है लेकिन इस तरह से नहीं जैसे विपक्ष के सांसद प्रेस के सामने आते हैं. बेशक प्रधानमंत्री इस तरह से प्रेस कांफ्रेंस नहीं कर सकते लेकिन प्रेस कांफ्रेंस तो कर ही सकते हैं. भले व्यवस्था दूसरी हो. जिस नेता को पप्पू कहा गया वह इतने पत्रकारों के बीच सवालों के लिए मौजूद है, जिस नेता को मज़बूत कहा गया उनके प्रेस कांफ्रेंस का सात साल से इंतज़ार ही हो रहा है. आखिर विपक्ष में रहते हुए ही नेता प्रेस के लिए इतने उपलब्ध क्यों होते हैं, सैकड़ों कैमरे से घिरे रहते हैं और सत्ता में जाते ही सवाल से बचने लगते हैं.
अगर संसद में सभी सदस्य पूर्ववत आ रहे हैं तो प्रेस के साथियों को भी पहले की संख्या के हिसाब से आने की अनुमति मिलनी चाहिए. ताकि सवालों का सिलसिला जारी रहे और हम देख सकें कि कौन बच के सवाल पूछ रहा है और कौन बच के जवाब दे रहा है. आप प्राइम टाइम के दर्शक हैं. आपका सवालों से बचना मुश्किल है.
क्रेडिट बाय ndtv
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