सम्पादकीय

पड़ोसी देश : भीषण है श्रीलंका का संकट, 2019 में चर्च में हुए आतंकी हमले और कोविड-19 ने तोड़ दी कमर

Neha Dani
5 April 2022 1:45 AM GMT
पड़ोसी देश : भीषण है श्रीलंका का संकट, 2019 में चर्च में हुए आतंकी हमले और कोविड-19 ने तोड़ दी कमर
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श्रीलंका को इस संकट में उबरने में, जाहिर है, लंबा वक्त लगेगा।

भारत के पड़ोस में एक साथ सामने आए दो संकटों के कारण भले अलग-अलग हों, लेकिन उनका नतीजा एक है। पाकिस्तान में मुख्यधारा की दोनों वंशवादी राजनीतिक पार्टियों से ऊबी वहां की सर्वशक्तिमान सेना ने लोकप्रिय क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान पर दांव लगाया था। लेकिन पाकिस्तानी सेना का वह प्रयोग विफल हो गया, जिसके चलते वहां राजनीतिक उथल-पुथल और आर्थिक संकट गहरा गया। इमरान खान ने सत्ता में बने रहने के लिए सांविधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया और डोनाल्ड ट्रंप की तरह अवज्ञा का परिचय दिया। अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट की जांच का सामना करना पड़ रहा है।

श्रीलंका में, जो अपने शक्तिशाली लोकतंत्र और भारत-पाकिस्तान की तुलना में मानव विकास के पैमाने पर बेहतर होने का गर्व करता है, जनता ने एक ही परिवार के पक्ष में मतदान किया था, जिसके पांच सदस्य सत्ता में शीर्ष पदों पर आए। पहले से ही वहां की सुस्त अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन ने एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट को जन्म दिया, जिसके चलते अब राजनीतिक पतन अनिवार्य हो गया है। रविवार रात वहां पूरे मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया, सिर्फ राजपक्षे बंधु-राष्ट्रपति गोतबाया और प्रधानमंत्री महिंदा पद पर बने हुए हैं। स्थिति सुधारने के लिए लिए वयोवृद्ध वित्त मंत्री बासिल रोहाना राजपक्षे को मंत्रिमंडल से निकाला गया, जिन्हें अर्थव्यवस्था की बर्बादी के लिए जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है।
आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी, कीमतों में तेज वृद्धि और बिजली कटौती के साथ श्रीलंका वर्ष 1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद की सबसे भयावह मंदी का सामना कर रहा है। भारत द्वारा आपातकालीन आपूर्ति और भारत, चीन से ऋण और आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद थोड़े समय के लिए कोलंबो को आर्थिक संकट से बचने में मदद कर सकती है। पर यह तभी संभव होगा, जब राजपक्षे परिवार की फिजूलखर्ची पर अंकुश लगे। राजपक्षे परिवार, जिसकी गलत नीतियों के कारण आज यह स्थिति बनी, इस राजनीतिक तूफान को शांत कर पाएगा या नहीं, यह तो निकट भविष्य में ही पता चलेगा।
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पहले से ही अप्रैल, 2019 में चर्च में हुए आतंकी हमले के, जिसमें दो सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे, सदमे से जूझ रही थी। कोविड-19 ने उसकी कमर ही तोड़ दी। खराब कृषि नीति और गलत समय पर खेती में किए गए नए प्रयोग ने उसकी स्थिति और बदतर कर दी। राजपक्षे परिवार ने अपने भ्रामक आर्थिक फैसलों और उधार ली गई राशि के अपव्यय से इसे और बढ़ा दिया। उनके तौर-तरीकों से ऐसा लग रहा था, मानो कोई उनसे सवाल करने वाला नहीं है।
सबसे बुरी बात यह थी कि आने वाली आपदा से निपटने के लिए सरकार के पास कोई योजना ही नहीं थी। ऐसे में यह संकट अपरिहार्य था। 2.2 करोड़ लोगों वाला यह द्वीपीय राष्ट्र दूध और ब्रेड जैसी बुनियादी जरूरतों की भारी कमी और लोगों की लंबी कतारों का सामना कर रहा है। प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर कोलंबो ने संकट और बढ़ा दिया है। राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे की अपील पर वहां सर्वदलीय सरकार बनी है और नए मंत्रियों ने शपथ ली है।
पिछले शनिवार को हुई हिंसा के मद्देनजर राजधानी कोलंबो में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया और सरकार ने सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार देते हुए आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी थी। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध ने संचार और मीडिया को प्रभावित किया है। प्रधानमंत्री महिंदा के बेटे नमल ने, जो युवा एवं खेल मंत्री भी हैं, ब्लैक आउट को पूरी तरह से अनुपयोगी बताया, लेकिन उनके इस बयान से लोगों को शायद ही सांत्वना मिले। श्रीलंका अनेक समस्याओं से जूझ रहा है।
मसलन, खाद्य पदार्थों की कीमत सिर्फ मार्च में ही 25 फीसदी बढ़ गई। आसमान छूती महंगाई, सरकार की कमजोर वित्तीय स्थिति, गलत समय पर कर में कटौती और कोविड-19 महामारी ने राजस्व पैदा करने वाले पर्यटन उद्योग तथा विदेशों से आने वाले धन पर प्रतिकूल असर डाला। इससे पिछले कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था की स्थिति बदतर हो गई है। जनवरी, 2020 से देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 70 फीसदी गिरकर फरवरी तक लगभग 2.3 अरब डॉलर रह गया।
श्रीलंका के मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार केवल एक महीने के सामान आयात के भुगतान के लिए पर्याप्त हैं। नतीजतन उसने मदद के लिए भारत और चीन से संपर्क किया। भारत द्वारा श्रीलंका को दी गई एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन के तहत 40,000 टन डीजल ले जाने वाला जहाज श्रीलंका पहुंच गया है। यह बताया गया है कि श्रीलंका के नई दिल्ली के साथ एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन पर हस्ताक्षर करने के बाद, कोलंबो ने आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए भारत से एक अरब डॉलर अतिरिक्त क्रेडिट लाइन की मांग की है।
क्रेडिट लाइन के अलावा भारत ने इस साल की शुरुआत में श्रीलंका को 40 करोड़ डॉलर की मुद्रा स्वैप और 50 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन ईंधन खरीद के लिए दी थी। चीनी तब तक ऋण नहीं देते, जब तक कि यह निवेश का हिस्सा न हो। श्रीलंका ने चीन से कहा है कि वह वित्तीय संकट से निपटने में मदद करने के लिए अपने ऋण भुगतान का पुनर्गठन करे। श्रीलंका चीन के साथ 2.5 अरब डॉलर की ऋण सहायता के लिए भी बातचीत कर रहा है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चीनी बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के हिस्से के रूप में श्रीलंका को भारी निवेश और ऋण मिला, जिससे वह कर्ज के जाल में फंस गया है। लेकिन उनका कहना है कि श्रीलंका की आर्थिक दुर्दशा के लिए चीन एक कारण है, पर श्रीलंका की मौजूदा बदहाली के लिए सिर्फ वह जिम्मेदार नहीं है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि द्विपक्षीय सौदों के बावजूद श्रीलंका को या तो अपने कर्ज का पुनर्गठन करना होगा या राहत के लिए आईएमएफ से संपर्क करना होगा। आईएमएफ के दरवाजे पर दस्तक देने से इनकार करने के बाद राजपक्षे सरकार ने हाल में कहा कि वह संकट से निकलने के लिए वैश्विक वित्तीय संस्था से बातचीत शुरू करेगी। लेकिन आईएमएफ की सहायता भारी शर्तों के साथ मिलती है और इसमें समय लगता है। श्रीलंका को इस संकट में उबरने में, जाहिर है, लंबा वक्त लगेगा।

सोर्स: अमर उजाला

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