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- पड़ोस पहले: भारत की...
आदित्य नारायण चोपड़ा: भारत ने हमेशा पड़ोस प्रथम नीति को प्राथमिकता दी है। भारत ने एक बार फिर उदारता का परिचय देते हुए आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को खाद्य उत्पादों और अन्य जरूरी चीजों की खरीद के लिए एक अरब डालर की ऋण सुविधा प्रदान की है। भूकम्पन हो या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा भारत ने हमेशा पड़ोसी देशों की मदद ही की है। कोरोना महामारी के दौरान भी भारत ने पड़ोसी देशों को कोरोना वैक्सीन की मुफ्त खेप देकर सभी का दिल जीत लिया था। श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने दिल्ली यात्रा के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ आपसी हितों और आर्थिक सहयोग से जुड़े विविध विषयों पर व्यापक चर्चा की राजपक्षे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वस्त किया कि भारत एक करीबी पड़ोसी मित्र के रूप में श्रीलंका के साथ हमेशा खड़ा रहेगा। भारत ने पिछले महीने श्रीलंका के पैट्रोलियम उत्पादों की खरीद में मदद करने के लिए 50 करोड़ डॉलर की ऋण सुविधा देने की घोषणा की थी। श्रीलंका वर्तमान में एक गम्भीर विदेशी मुद्रा और ऊर्जा संकट से जूझ रहा है। भारत ने श्रीलंका की मदद करके उसे दिवालिया होने से बचाया था लेकिन खतरा अभी भी टला नहीं है। भारत की तत्काल सहायता से श्रीलंका सरकार को दो महीने की राहत मिल गई थी लेकिन अब भारत के साथ समझौता करके उसे और राहत मिल गई है। हालांकि श्रीलंका को आर्थिक सुधारों को लागू करने के साथ इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए आईएमएफ से नेल आऊट की जरूरत है। लेकिन भारत हमेशा श्रीलंका की आर्थिक चुनौतियों पर काबू पाने के लिए हर सम्भव सहायता जारी रखेगा। श्रीलंका इस समय मुश्किल दौर में है। महामारी के दौरान उसका पर्यटन उद्योग पूरी तरह से ठप्प रहा है। िवदेशी मुद्रा का भंडार खत्म होने को है। महंगाई आसमान छू चुकी है। भारत की मदद से श्रीलंका खाद्य आवश्यक वस्तुएं और दवाइयों का आयात कर सकेगा। पिछले सप्ताह की शुरूआत में हजारों श्रीलंकाई प्रदर्शनकारी कोलम्बो की मुख्य सड़कों पर उतर आए थे और इनमें से कुछ ने तो राष्ट्रपति भवन में उतर कर गो गोटा गो और श्रीलंका सरकार फेल है के नारे लगाए थे। श्रीलंका की यह हालत चीन से ऋण लेकर घी पीने के कारण भी हुई है। चीन ने श्रीलंका को काफी ऋण दिया। श्रीलंका को इस बात की उम्मीद थी कि इससे उसका व्यापार बढ़ेगा लेकिन हुआ इसके विपरीत। चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को भी एक तरह से हड़प लिया है। श्रीलंका में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप से भारत भी चिंतित था और इससे भारत-श्रीलंका के संबंधों में भी ठहराव आ गया था। जब भी श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाय राजपक्षे ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने की बात कही तब भारत ने हमेशा यही कहा कि वह श्रीलंका में बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है। श्रीलंका के लोगों को अहसास है कि उनकी डूबती अर्थव्यवस्था की वजह से चीन से लिया गया कर्ज है। हालांकि सरकार कहती है कि इसका बड़ा कारण अधिक कमाई से ज्यादा खर्च का है। श्रीलंका के अधिकांश लोग यह मानते हैं कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की चाबी भारत के पास है। भारत ही श्रीलंका को संकट की स्थिति से निकाल सकता है, इसलिए सरकार को भारत के साथ सहयोग करना चाहिए।संपादकीय :द कश्मीर फाइल्स : कड़वी सच्चाईकांग्रेस का संकट और समाधानचीनी विदेश मन्त्री की यात्रा पहलवन रैंक वन पैंशन का मुद्दाद कश्मीर फाइल्स : नग्न सत्य'पंजाब में नया सूरज'भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंडा मोश गौड़ा ने भारत द्वारा मदद दिए जाने पर मोदी सरकार का आभार जताया था और उन्होंने यह भी कहा था कि एक बार जरूरी सैक्टर्स को लेकर भारत से बातचीत हो जाए तो दोनों देश काम करना शुरू कर देंगे तो बाकी चिंताओं की कोई जगह नहीं रह जाएगी। पैट्रोलियम और गैस, बिजली, बंदरगाह, निर्यात मैनूफैक्चरिंग और टूरिज्म में सहयोग से दोनों देशों के रिश्ते ठोस और सार्थक तरीके से आगे बढ़ेंगे। श्रीलंका टूरिजम के माध्यम से अर्थव्यवस्था सुधारने की कोशिश कर रहा है और इस कदम में भारत उसका सबसे बड़ा बाजार है। बासिल राजपक्षे इससे पहले भी भारत के दौरे पर आए थे तब दोनों देशों ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने के लिए चार पिल्लर्क्स की एक योजना बनाई थी। इनमें फूड एंड हैल्थ सिक्योरिटी पैकेज, एनर्जी सिक्योरिटी पैकेट, करैंसी स्वैप (डालर की बजाय एक-दूसरे की मुद्रा में व्यापार करना) और श्रीलंका में भारत को विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की सुविधा उपलब्ध कराना। भारत जिस तरीके से श्रीलंका की मदद कर रहा है उसकी हर कोई तारीफ कर रहा है। चीन के ऋणपाश का दंश अब श्रीलंका महसूस करने लगा है और अब उसे भारत सच्चा दोस्त लगने लगा है। श्रीलंका ने भारत से मदद मांगी थी और भारत ने उसे मदद दी। श्रीलंका को भारत और चीन से संबंधों में संतुलन बनाकर चलना होगा क्योंकि भारत से उसके संबंध स्वाभाविक हैं जबकि चीन से उसके संबंध विशुद्ध रूप से व्यापार पर आधारित हैं।