- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- लापरवाही नहीं साजिश
x
लखीमपुर खीरी मामले में विशेष जांच दल यानी एसआइटी की रपट आने के बाद स्थिति बिल्कुल पलट गई है। इस घटना में गाड़ियों से रौंद कर चार किसानों और एक पत्रकार को मार डाला गया था
लखीमपुर खीरी मामले में विशेष जांच दल यानी एसआइटी की रपट आने के बाद स्थिति बिल्कुल पलट गई है। इस घटना में गाड़ियों से रौंद कर चार किसानों और एक पत्रकार को मार डाला गया था, कई किसान आंदोलनकारी घायल हो गए थे। उसके बाद तीन लोग क्रुद्ध भीड़ का शिकार हो गए थे। घटना के बाद कहा गया कि किसान आंदोलनकारियों ने वाहनों पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया था, जिसके चलते वाहनों का संतुलन बिगड़ा और लोग उनकी चपेट में आ गए थे। फिर कहा गया कि लापरवाही के कारण वह दुर्घटना हो गई थी। फिर कई दिन तक मामले पर पर्दा डालने की कोशिशें होती रहीं। मगर किसान संगठन इस घटना के बाद धरने पर बैठ गए थे।
आखिरकार प्रशासन ने माना कि उस घटना में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा शामिल था और उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। मगर उसमें भी लापरवाही से वाहन चलाने और गंभीर रूप से चोट पहुंचाने वाली धाराएं लगाई गई थीं। फिर भी आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी को टालने का प्रयास किया जाता रहा। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस को सख्त निर्देश दिए थे। मामले की जांच के लिए एक विशेष दल का गठन भी कर दिया था।
उस विशेष जांच दल ने विभिन्न कोणों से जांच के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में आवेदन पेश किया है। उसमें कहा गया है कि लापरवाही से वाहन चलाने और गंभीर चोट पहुंचाने वाली धाराओं को हटा कर साजिश, इरादन हत्या, हत्या का प्रयास और जानबूझ कर घातक हथियारों से चोट पहुंचाने की कोशिश संबंधी धाराएं लगाई जाएं। यानी जिस पहलू को छिपाने का प्रयास किया जा रहा था, एसआइटी ने उसी पहलू को उजागर कर दिया है। जाहिर है, इससे न सिर्फ अजय कुमार मिश्रा और उनके बेटे, बल्कि राज्य और केंद्र सरकार की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं।
तमाम विपक्षी दल और किसान संगठन शुरू से मांग करते रहे हैं कि लखीमपुर मामले का मुख्य साजिशकर्ता अजय कुमार मिश्रा हैं। किसान संगठनों ने तो अपनी प्राथमिकी में भी यही बात कही है और शुरू से मांग उठाते रहे हैं कि उन्हें मंत्री के पद से हटाया जाना चाहिए। अपने तर्क के पक्ष में उन्होंने अजय कुमार मिश्रा के घटना से कुछ दिन पहले के विवादित भाषण और किसानों को ठेंगा दिखाने के प्रमाण भी नत्थी किए थे। उनका कहना था कि उनके रहते मामले की निष्पक्ष जांच संभव नहीं है। मगर केंद्र सरकार ने न जाने किस मोह में उन्हें उनके पद पर बने रहने दिया।
वैसे ही ऐसे मामलों में सही निर्णय संदिग्ध रहता है, जिनमें रसूखदार लोग नामजद होते हैं। लखीमपुर खीरी मामले में तो खुद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री का नाम जुड़ा हुआ है। फिर राज्य में भी उन्हीं की पार्टी की सरकार है। इस मामले का अब तक शायद किसी गढ़ी हुई कहानी के साथ अंत हो गया होता, पर सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार इस पर नजर बनाए रखी। उसने उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार की तरफ से पेश वकीलों को कई बार फटकार लगाई, जांच में जरूरी पक्षों की तरफ ध्यान दिलाया। उसी का नतीजा है कि विशेष जांच दल बिना किसी प्रभाव में आए मामले का दूसरा पहलू उजागर कर सका। इस तरह पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ी है, पर साथ ही केंद्र सरकार की किरकिरी भी बढ़ गई है।
Next Story