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- ना'पाक संवैधानिक संकट
संविधान और संसद के साथ ऐसा मज़ाक पाकिस्तान में ही हो सकता है। जिस तरह नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को 'असंवैधानिक' करार दिया और मत-विभाजन के दिन ही उसे खारिज कर दिया, यह हरकत पाकिस्तान की संसद में ही हो सकती है। अल्पमत में आई सरकार और संसद में अविश्वास प्रस्ताव के विचाराधीन होने के बावजूद प्रधानमंत्री ने संसद भंग करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने, बिना कोई स्पष्टीकरण और साक्ष्य मांगे, उस सिफारिश को मंजूर करते हुए संसद भंग कर दी। भंग सदन में जिस तरह विपक्ष ने अपना स्पीकर तय करके आसन पर बिठाया और नेता प्रतिपक्ष शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री घोषित किया, ऐसा संवैधानिक खिलवाड़ पाकिस्तान में ही हो सकता है। बेशक अपने-अपने संदर्भों और कारगुजारियों में पाकिस्तानी संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का जि़क्र किया गया है। हम न तो उन्हें खारिज करते हैं और न ही उनका सत्यापन मानते हैं। खुद सुप्रीम कोर्ट ऑफ पाकिस्तान ने संज्ञान लिया है और विपक्ष ने भी याचिका दी है, लिहाजा पूरे प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट के 'संवैधानिक विवेक' पर ही छोड़ देना चाहिए। अदालत ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अटॉर्नी जनरल, संसद के स्पीकर, डिप्टी स्पीकर आदि को नोटिस भेजकर प्रतिवादी बनाया है।