सम्पादकीय

ना'पाक संवैधानिक संकट

Rani Sahu
4 April 2022 6:58 PM GMT
नापाक संवैधानिक संकट
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संविधान और संसद के साथ ऐसा मज़ाक पाकिस्तान में ही हो सकता है

संविधान और संसद के साथ ऐसा मज़ाक पाकिस्तान में ही हो सकता है। जिस तरह नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को 'असंवैधानिक' करार दिया और मत-विभाजन के दिन ही उसे खारिज कर दिया, यह हरकत पाकिस्तान की संसद में ही हो सकती है। अल्पमत में आई सरकार और संसद में अविश्वास प्रस्ताव के विचाराधीन होने के बावजूद प्रधानमंत्री ने संसद भंग करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने, बिना कोई स्पष्टीकरण और साक्ष्य मांगे, उस सिफारिश को मंजूर करते हुए संसद भंग कर दी। भंग सदन में जिस तरह विपक्ष ने अपना स्पीकर तय करके आसन पर बिठाया और नेता प्रतिपक्ष शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री घोषित किया, ऐसा संवैधानिक खिलवाड़ पाकिस्तान में ही हो सकता है। बेशक अपने-अपने संदर्भों और कारगुजारियों में पाकिस्तानी संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का जि़क्र किया गया है। हम न तो उन्हें खारिज करते हैं और न ही उनका सत्यापन मानते हैं। खुद सुप्रीम कोर्ट ऑफ पाकिस्तान ने संज्ञान लिया है और विपक्ष ने भी याचिका दी है, लिहाजा पूरे प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट के 'संवैधानिक विवेक' पर ही छोड़ देना चाहिए। अदालत ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अटॉर्नी जनरल, संसद के स्पीकर, डिप्टी स्पीकर आदि को नोटिस भेजकर प्रतिवादी बनाया है।

सुप्रीम अदालत ही तय करेगी कि विपक्ष को कोई मौका मिलेगा अथवा पाकिस्तान में आम चुनाव ही कराए जाएंगे। बहरहाल यह पूरा ना'पाक संवैधानिक संकट विदेशी साजि़श की आड़ में पैदा किया गया है। विदेशी साजि़श अमरीका ने की या पाकिस्तान के भीतर से की गई, कुछ भी साफ नहीं है। बाहरी मुल्क की साजि़श के सबूत भी देश के सामने नहीं हैं। इमरान खान ने अपने सियासी जलसे या मुल्क को संबोधित करने के दौरान जो चिट्ठी लहराई थी, उसे प्रख्यात पत्रकार हामिद मीर ने 'फर्जी' करार दिया है। कई और पत्रकारों ने भी सवाल उठाए हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने भी बाहरी साजि़श की पुष्टि नहीं की है। सवाल तो यह है कि अमरीका पाकिस्तान को चुग्गा और पैसा देता रहा था, तो वह वहां की सरकार गिराने की साजि़श क्यों करेगा? पाकिस्तान की हैसियत ही क्या है? इमरान ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के जरिए भारत को भी बाहरी साजि़श में लपेटने की कोशिश की है, जो बेमानी और बेबुनियाद है। प्रधानमंत्री रहे इमरान खान को शीर्ष अदालत के सामने साबित करना पड़ सकता है कि विदेशी साजि़श के सबूत क्या हैं? यदि इमरान नाकाम रहे, तो देशद्रोह के जुल्म में उन्हें जेल भी हो सकती है। बहरहाल पाकिस्तान में जो भी हुआ है, वह ना'पाक सियासी हरकतों के अलावा कुछ भी नहीं है। इतना जरूर हुआ है कि प्रधानमंत्री इमरान संसद में अविश्वास प्रस्ताव हारने की बेदखली वाली फज़ीहत से बच गए हैं। पाकिस्तान सियासी संकट में ही नहीं है, उसका आर्थिक और कूटनीतिक संकट भी अभी जारी रहेगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अलावा, सऊदी अरब और कतर आदि पाकिस्तान को आर्थिक मदद देते रहे हैं। यह अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता। पाकिस्तान की मुद्रा का अवमूल्यन काफी हो चुका है। महंगाई 20 फीसदी तक पहुंच चुकी है।
करीब 31 फीसदी नौजवान बेरोज़गार हैं। दूध 200 रुपए लीटर बिक रहा है, जबकि टमाटर का भाव भी 120-160 रुपए प्रति किलो है। पाकिस्तान पर कर्ज़ 9.5 फीसदी बढ़ चुका है, जो खरबों में है। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 12 फीसदी से अधिक है। सारांशतः पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है। फिलहाल चीन पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे में निवेश कर हालात को कुछ सुधार रहा है, लेकिन वह भी पाकिस्तान के कर्ज़ में ही जुड़ रहा है। मुल्क में हुकूमत किसी की भी बने, लेकिन ये संकट बरकरार रहने ही हैं। ये आर्थिक हालात मुल्क के लिए अचंभा नहीं हैं, लेकिन फौज के जनरल कोई और पत्ता खेलने में जुटे हैं। वे भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते बेहतर करने की बात कह रहे हैं, लेकिन आतंकवाद पर पाकिस्तान का कोई ठोस वायदा नहीं है। बहरहाल सुप्रीम अदालत के फैसले के बाद पाकिस्तान में कथित 'गृहयुद्ध' की भी आशंका है, लिहाजा अदालत ने पहले ही कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी फौज को सौंप दी है। अब देखना है कि केयरटेकर सरकार किसकी बनती है और आम चुनाव किन परिस्थितियों में होते हैं। हालांकि कुछ वर्गों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान में चुनाव की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि चुनाव को प्रभावित किया जा सकता है। पिछली बार भी आरोप लगे थे कि इमरान ने सेना के माध्यम से दखल देकर चुनाव जीता था।
Rani Sahu

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