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आरक्षण पर सुप्रीम फैसला बाकी
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद नीट-पीजी में एडमिशन के लिए मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (एमसीसी) 12 जनवरी से काउंसलिंग शुरू कर रही है. इन परीक्षाओं का रिजल्ट पिछले साल सितंबर में आ गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला अटकने की वजह से हज़ारों छात्रों की काउंसलिंग नहीं हो पा रही थी. पिछले साल जूनियर डॉक्टर के एडमिशन नहीं हुए, इसलिए दूसरे और तीसरे साल के पीजी डॉक्टर मरीजों को देख रहे हैं. अभी एक मामले का तात्कालिक समाधान हुआ है, लेकिन इस मामले में विवाद के कई कानूनी और सांविधानिक पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और फैसला आना बाकी है.
ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण की प्रष्ठभूमि
केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में सन 2006 से 27 फ़ीसदी आरक्षण ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था बनाई गई. यूपीए सरकार ने 2005 में आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में आरक्षण के लिए आयोग बनाया था, जिसने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. उसे लागू करने के लिए सोशल जस्टिस मंत्रालय ने कैबिनेट नोट बनाया, जिसके अनुसार जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन से ईडब्ल्यूएस आरक्षण के नियम को लागू कर दिया गया. जो लोग एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण के दायरे में नहीं हैं और जिनकी सालाना आमदनी आठ लाख रूपये से कम है, उन्हें ईडब्ल्यूएस के तहत 10 फ़ीसदी आरक्षण मिलने का क़ानून है.
ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए समान लिमिट से विवाद शुरू
दरअसल, ओबीसी में क्रीमी लेयर को लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने 8 लाख रूपये की सालाना लिमिट बनाई है. याचिकाकर्ताओं के अनुसार ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए समान आर्थिक पैमाने नहीं हो सकते. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब फाइल करके यह स्पष्ट किया कि दोनों पैमानों की तुलना गलत है. ओबीसी में पिछले 3 साल की आमदनी का मूल्यांकन किया जाता है, जबकि ईडब्ल्यूएस में सिर्फ पिछले साल की आमदनी को ही देखा जाता है. इसके अलावा ओबीसी में वेतन, कृषि और परंपरागत आमदनी को हटा दिया जाता है, जबकि ईडब्ल्यूएस में सभी आमदनी को जोड़े जाने का नियम है.
सरकार ने यह भी कहा कि 10 फीसदी से कम लोग ही 5 से 8 लाख की आमदनी के दायरे में आते हैं और बकाया लोग 5 लाख से कम की आमदनी के दायरे में आते हैं. विवाद से बचने के लिए सरकार ने आवासीय मकान और प्लाट की शर्तों को भी खत्म करने का निर्णय लिया है. जबकि याचिकाकर्ताओं के अनुसार ईडब्ल्यूएस के लिए 8 लाख की आय सीमा का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकी सालाना आय 2.5 लाख रुपए सालाना से कम है. पांडे समिति ने ईडब्ल्यूएस के लिए जो मापदंड तय किए हैं, उनपर 2 महीने बाद मार्च में सुप्रीम कोर्ट में फाइनल सुनवाई होगी.
103वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
ईडब्ल्यूएस के आरक्षण को लागू करने के लिए 103वां संविधान संशोधन हुआ था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. याचिकाकर्ताओं के अनुसार आर्थिक तौर पर आरक्षण के लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. यह संविधान के अनुच्छेद 14,15, 16 और 21 में किये गए समानता, सार्वजनिक क्षेत्रों में रोजगार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ ने सन 1992 के इंदिरा साहनी मामले में फैसला देकर आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फ़ीसदी रखा था. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक़, ईडब्ल्यूएस आरक्षण से संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन हो रहा है.
इस मामले पर 20 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई थीं, जिन पर सुनवाई के लिए अगस्त 2020 में संविधान पीठ बनाने का आदेश दिया था. संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत 5 या उससे ज्यादा जजों की बेंच को संविधान पीठ माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट में 400 से ज्यादा मामले लंबित मामलों की सुनवाई संविधान पीठ के द्वारा किया जाना है. इसलिए ईडब्ल्यूएस की वैधता के बारे में आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा होगा, जिसमे ख़ासा समय लग सकता है.
इस साल के बजट में टैक्स सीमा बढ़ने के कयास
एक और बड़ा मसला तमिलनाडु सरकार के विरोध की वजह से है. वहां पर सभी पार्टियों ने नीट कानून को राज्यों के मामले में हस्तक्षेप बताया है. केंद्र सरकार के मुताबिक़ शिक्षा का विषय समवर्ती सूची में आता है और ऐसे मामलों में केंद्र को कानून बनाने का अधिकार है. सरकार के अनुसार केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में सन 2006 से ही 27 फ़ीसदी ओबीसी आरक्षण है.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों और यूपीएससी में ईडब्ल्यूएस कोटा के आधार पर प्रवेश दिया जा रहा है तो फिर नीट-पीजी में इसे लागू न करना भेदभावपूर्ण होगा.
पांडे समिति ने ईडब्ल्यूएस मामले में टैक्स के जिन आंकड़ों को समाहित किया है, उसकी वजह से पैन, आधार और इनकम टैक्स के डाटा का महत्त्व रेखांकित हुआ है. इस साल के बजट में ईडब्ल्यूएस कोटे की पात्रता के अनुसार सरकार टैक्स छूट सीमा को बढाने पर विचार करे तो इस पर संसद की एक और मुहर लग जाएगी.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विराग गुप्ता एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
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