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87.58 मीटर तक भाला फेंक कर टोक्यो ओलंपिक में देश को स्वर्ण पदक दिलाने वाले नीरज चोपड़ा ने एक भाला और फेंका है
प्रियदर्शन। 87.58 मीटर तक भाला फेंक कर टोक्यो ओलंपिक में देश को स्वर्ण पदक दिलाने वाले नीरज चोपड़ा ने एक भाला और फेंका है- इस बार उन कुत्सित सांप्रदायिक कुढ़मगज़ों पर, जो हर बात में हिंदू-मुसलमान और भारत-पाकिस्तान की तलाश करते रहते हैं. मामला ये है कि किसी इंटरव्यू में उन्होंने सहज भाव से कहा कि फाइनल में थ्रो से पहले उन्हें कुछ हड़बड़ी हो गई क्योंकि उनका भाला पाकिस्तान के अरशद नदीम ने ले रखा था. वे अपना भाला खोज रहे थे और फिर नदीम से लेकर उन्होंने फेंका तो पहला थ्रो 7.03 मीटर तक ही जा सका. नीरज चोपड़ा की इस सहज सी बात को लोगों ने एक साज़िश में बदलने की कोशिश की. बताने लगे कि कैसे पाकिस्तान के खिलाड़ी ने भारतीय ओलंपिक विजेता को जीतने से रोकने की कोशिश की.
इसके बाद नीरज चोपड़ा को एक बार फिर उतरना पड़ा. उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि वे इसे दूसरे ढंग से तूल न दें. नदीम ने जो कुछ किया, वह खेल के नियमों के तहत किया, उसमें कोई दुर्भावना नहीं थी. उन्होंने ये भी कहा कि हम सब खिलाड़ी आपस में मिल कर रहते हैं.
यह सच है कि जिस तरह नीरज चोपड़ा का यह टूर्नामेंट जीतना भारत के लिए बड़ी बात थी, उसी तरह अरशद नदीम का फाइनल तक पहुंचना भी पाकिस्तान के लिए बड़ी बात थी. पाकिस्तान का खेल ढांचा भारत के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा ख़राब है और वहां से कोई खिलाड़ी अगर इस मुकाम तक भी पहुंचता है तो यह बड़ी बात है. ओलंपिक में नीरज की जीत के बाद पाकिस्तान में यह सवाल बार-बार पूछा गया कि अरशद नदीम को पाकिस्तान के खेल-ढांचे से क्या उतनी मदद मिली जितनी नीरज को भारत में मिली? दिलचस्प यह है कि ओलंपिक के उस शोर-शराबे के बीच अरशद नदीम के किसी फैन द्वारा किया गया एक ट्वीट भारत-पाकिस्तान दोनों जगह वायरल हो गया जिसमें नीरज कुमार को अरशद ने अपना गुरु मानते हुए बधाई दी थी और पाकिस्तान से माफ़ी मांगी थी कि वह उनके लिए पदक नहीं जीत सका.
खेलों का यह भाईचारा फिर याद दिलाता है कि दुनिया उतने खांचों में नहीं बंटी है जितने राजनीति ने बना रखे हैं. सरहदें धीरे-धीरे गल रही हैं. यूरोप की सरहदें लगभग गल चुकीं. आज की तारीख़ में हम इंग्लैंड-फ्रांस या इंग्लैंड-स्पेन या जर्मनी फ्रांस के बीच युद्ध की कल्पना नहीं कर सकते. जबकि एक दौर ऐसा था जब सात साल से लेकर सौ साल तक इन सबके बीच युद्ध चलते रहे और दो-दो विश्वयुद्धों में इनका सबसे बड़ा हिस्सा रहा. दुनिया का महानतम फुटबॉलर मेस्सी बार्सिलोना क्लब छोड़ते हुए इस तरह रो पड़ता है जैसे उसका मायका छूट रहा हो. उसकी पत्नी उसे आंसू पोछने के लिए जो टिश्यु पेपर बढ़ाती है उसकी नीलामी का अनुमान दस लाख डॉलर यानी क़रीब 7 करोड़ रुपयों से ऊपर का चला जाता है.
ऐसा नहीं कि भारत या एशियाई मुल्कों में खेल का यह एहसास नहीं है. आइपीएल के बाद कई खिलाड़ी अपने-अपने मुल्कों से ज़्यादा हिंदुस्तान के शहरों के लिए जाने जाने लगे. हरभजन और सायमंड्स एक साथ खेलते नज़र आए और आपस में दोस्त भी हुए. सचिन तेंदुलकर के एक फैन को पाकिस्तान में सज़ा भुगतनी पड़ी और खिलाड़ी इमरान ख़ान के फैन भारत में भरे पड़े थे. यह सच हो या कहानी हो, लेकिन कश्मीर के बदले लता मंगेशकर को मांगे जाने की कहानी बताती है कि कुछ कल्पनाशील लोग ऐसे बैठे हुए हैं जो मुल्कों की जकड़नों को संगीत के सुरों से, फुटबॉल की किक से या फिर क्रिकेट के स्ट्रोक्स से कम करते हैं. हम अक्सर भूल जाते हैं कि मेहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह या बेगम अख़्तर कहां के हैं.
लेकिन इन दिनों हिंदुस्तान में राष्ट्रवाद का बुखार कुछ ज़्यादा चढ़ गया लगता है- कुछ वैसा ही जैसे कभी जापान में या कभी जर्मनी में हुआ करता था. दुर्भाग्य से यह राष्ट्रवाद भी अपनी एक धार्मिक पहचान के आग्रह के साथ अपने-आप को खड़ा रखने की कोशिश कर रहा है. इसमें खोखले गौरव और नफ़रत का तत्व इतना ज़्यादा है कि वह अपनी ही उपलब्धियों को धूमिल करने लगता है. नीरज कुमार की चमकीली उपलब्धि को किसी ऐसे खोखले दर्प और नक़ली क़िस्से की ज़रूरत नहीं है कि पाकिस्तान की साज़िश के बावजूद वह जीता. वह एक बड़ी जीत है जिसकी सुनहरी यादें अरसे तक हमारा माथा सहलाती रहेंगी.
ऑस्ट्रेलिया में ब्रैडमैन के अलावा एक और बड़ा बल्लेबाज़ हुआ था- विक्टर ट्रंपर. कहते हैं, वह बहुत आकर्षक बल्लेबाज़ था. तब इंग्लिश क्रिकेट प्रशंसक मनाया करते थे कि ऑस्ट्रेलिया 130 पर आउट हो जाए, लेकिन ट्रंपर शतक बनाए.
सुनील गावसकर ने अपना आख़िरी टेस्ट पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बेंगलुरु में खेला था. उस बेहद टूटती हुई पिच पर गावसकर की पारी से ही मैच का फ़ैसला होना था. गावसकर टिके रहते तो भारत मैच जीतता, आउट हो जाते तो हार जाता. वे 96 पर आउट हुए. भारत 16 रन से हार गया. पारी में दूसरे सबसे ज़्यादा रन जिस खिलाड़ी के थे, वे अजहरुद्दीन थे जिन्होंने 26 रन बनाए थे. लेकिन इस हार-जीत के बीच एक कहानी सुनने को मिलती है. कहते हैं, पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने बिशन सिंह बेदी से पूछा था कि गावसकर कैसे आउट होंगे. और बताया जाता है कि बेदी ने उत्तर दिया था कि उसको धीरज से गेंद फेंकते रहो, वह खुद गलती करेगा, तब आउट होगा. यह किस्सा कितना सच्चा या झूठा है- यह बेदी बता सकते हैं. लेकिन यह जिसके दिमाग की भी उपज हो, इसमें संदेह नहीं कि वह खेल के विशाल परिसर के भीतर देशों की सिकुड़ी हुई रेखाओं को ठीक से पहचानने वाला शख़्स रहा होगा.
Rani Sahu
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