सम्पादकीय

नीना गुप्ता की आत्मकथा 'सच कहूं तो'; जीवन एक असंपादित फिल्म की तरह होता है, जिसके हटाए गए हिस्सों में कुछ महत्वपूर्ण छूट जाता है

Rani Sahu
27 Aug 2021 3:18 PM GMT
नीना गुप्ता की आत्मकथा सच कहूं तो; जीवन एक असंपादित फिल्म की तरह होता है, जिसके हटाए गए हिस्सों में कुछ महत्वपूर्ण छूट जाता है
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नीना गुप्ता ने रंगमंच टेलीविजन और फिल्मों में अभिनय किया है। कुछ कार्यक्रम निर्देशित भी किए हैं

नीना गुप्ता ने रंगमंच टेलीविजन और फिल्मों में अभिनय किया है। कुछ कार्यक्रम निर्देशित भी किए हैं। उन्होंने अभिव्यक्ति की हर विधा में हाथ आजमाया है। उनके जीवन और कार्यों का लेखा-जोखा मीडिया ने चटखारे लेकर उजागर किया है परंतु फिर भी ऐसा बहुत कुछ है, जो उन्होंने इस किताब में अभिव्यक्त करने का साहसिक प्रयास किया है। बहरहाल, नीना गुप्ता की जीवन यात्रा को दूरबीन के दोनों हिस्सों से देखने पर क्लोजअप की जगह लांग शॉट लिया जाता है और इसमें उलटफेर भी होता है। प्राय: जीवन एक असंपादित फिल्म की तरह होता है, जिसके हटाए गए हिस्सों में कुछ महत्वपूर्ण छूट जाता है।

नीना गुप्ता लंबे समय बेघर रहीं, कभी पेइंग गेस्ट रहीं और राष्ट्रपति से पुरस्कार ग्रहण करने राजभवन भी गई हैं। उनके जीवन के उतार-चढ़ाव पहाड़ी क्षेत्र की पगडंडियों की तरह सर्पाकार रहे हैं। कुंदन शाह की फिल्म 'जाने भी दो यारों' में उनकी भूमिका, शूटिंग के समय बदल दी गई। फिल्म निर्माण कुछ ऐसे सहज ढंग से किया गया, मानों सभी कलाकार और टेक्निशियन पिकनिक पर आए हैं। प्रदर्शन के समय दर्शक संख्या कम रही परंतु समय बीतने पर यह कल्ट फिल्म मानी गई। इसके संपूर्ण अधिकार जयंतीलाल गड़ा के पास हैं परंतु इसे दूसरी बार बनाना संभव नहीं लगता, क्योंकि कुंदनशाह का पुनर्जन्म में विश्वास नहीं था। सईद मिर्जा भी गोवा में रहते हुए कभी-कभी मुंबई आते हैं।
नीना गुप्ता ने श्याम बेनेगल की शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी अभिनीत 'मंडी' में अभिनय किया। इन प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ काम करते हुए नीना ने अपना वजूद कायम रखा। नीना ने श्याम बेनेगल की 'यात्रा' में भी अभिनय किया। इस फिल्म का सारा घटनाक्रम एक चलती हुई रेलगाड़ी में घटित होता है। नीना, गिरीश कर्नाड के संपर्क में आईं। शशिकपूर द्वारा निर्मित फिल्म 'उत्सव' में उन्होंने काम किया है।
वेस्टइंडीज के क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स से उनकी पहली मुलाकात में वे इस बात से प्रभावित हुईं कि वे एक मैच मात्र दो या तीन रन से हारने पर विचलित हो गए। विवियन अपने या अपने साथी के द्वारा हुई थोड़ी सी त्रुटि को भी मैग्नीफाइंग ग्लास के माध्यम से देखते थे। उनके बीच प्रेम, प्रथम बार एक-दूसरे को देखने पर नहीं हुआ जैसे फिल्मों में प्रस्तुत किया जाता है। विवियन रिचर्ड्स और नीना, दूसरी मुलाकात में एक-दूसरे के प्रति आकृष्ट हुए। उनके बीच अंतरंगता का विकसित होना उनके व्यक्तित्व के भीतरी सत्य और सौंदर्य के कारण हुआ। नीना गुप्ता और रिचर्ड्स के जीवन मंथन का अनमोल रत्न, मसाबा है।
बहरहाल, गर्भवती होने के बाद उसे गर्भपात की सलाह दी गई क्योंकि अनब्याही मां उस समय भी निंदनीय मानी जाती थी और आज भी कोई उसके समर्थन में सामने नहीं आता। शिशु को जन्म देने का निर्णय नीना गुप्ता का अपना निर्णय था परंतु उन्होंने विवियन से उनकी सहमति प्राप्त की थी। रिचर्ड्स पहले ही विवाहित थे और पिता भी थे। उन्होंने अपनी पत्नी को भी सब कुछ बता दिया था। बहरहाल उस गर्भावस्था के दौर में नीना गुप्ता के मित्र सतीश शाह ने नीना से कहा कि होने वाले शिशु को सामाजिक वैधता दिलाने के लिए वे नीना से विवाह कर लेते हैं जो केवल जन्म लेने वाले शिशु के लिए होगा। बहरहाल, नीना को अपने जीवन में धोखा देने वाले लोग मिले तो सच्चे मित्र भी मिले।
उन्होंने क्षीर सागर रचित 'खानदान' नामक सीरियल में साहसी पात्र, केतकी की भूमिका की। कई बार ऐसे अजनबी लोगों से उनका पाला पड़ा है, जो पात्र को ही व्यक्ति मान लेते हैं। इसके साथ यह भी सच है कि कभी-कभी भूमिका कलाकार के अवचेतन में पैठ कर जाती है। जैसे 'साहब बीवी और गुलाम' की छोटी बहू मीना कुमारी की काया में प्रवेश कर गई। नीना भी मसाबा को अपने जीवन मंथन का अनमोल रत्न मानती हैं।

जयप्रकाश चौकसे

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