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आॅक्सीजन के मुद्दे पर राजनीतिक घमासान हैरान करने वाला है। दरअसल दूसरी लहर के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आॅक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा था।
आॅक्सीजन के मुद्दे पर राजनीतिक घमासान हैरान करने वाला है। दरअसल दूसरी लहर के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आॅक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा था। उस दौरान अस्पतालों में आॅक्सीजन की खपत की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट को लेकर अब नाहक ही विवाद खड़ा कर दिया गया। अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली ने अपनी जरूरत से चार गुना ज्यादा आॅक्सीजन की मांग के लिए दबाव बनाया। इसका असर देश के बारह राज्यों पर पड़ा और उन्हें जरूरत के मुताबिक आॅक्सीजन नहीं मिल पाई।
हालांकि अंतिम रिपोर्ट आना बाकी है। इसलिए कोई कारण नहीं दिखता कि पूरे तथ्य सामने आने से पहले राजनीतिक वितंडा खड़ा किया जाए। इस विवाद के बाद कमेटी के सदस्य और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने साफ किया कि यह रिपोर्ट अंतरिम है। इसलिए इसके आधार पर यह कहना सही नहीं होगा कि दिल्ली ने जरूरत से ज्यादा आॅक्सीजन मांगी। शीर्ष अदालत ने कमेटी इसलिए बनाई थी कि यह सच्चाई सामने आ सके कि दिल्ली के अस्पतालों में आॅक्सीजन की खपत और उपलब्धता की क्या स्थिति थी। पर इस मुद्दे पर कमेटी के सदस्यों के बीच भी मतभेद की खबरें आ रही हैं। कमेटी के एक सदस्य ने रिपोर्ट को पूर्वाग्रह से ग्रस्त बता दिया। कुछ सदस्य बैठकों में ही नहीं गए। इसलिए राजनीतिक विवाद और आरोप-प्रत्यारोप शुरू होने में जरा देर नहीं लगी।
गौरतलब है कि दूसरी लहर में दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में आॅक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में कोरोना मरीजों ने दम तोड़ दिया था। हालात इतने गंभीर हो गए थे कि दिल्ली हाईकोर्ट सहित दूसरे हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट तक को मामले का संज्ञान लेना पड़ा। अदालतों ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के रवैए को लेकर कड़ा रुख अपनाया था। सख्त कदम उठाने की चेतावनियां दीं गईं। पर फिर भी कई दिनों तक अस्पतालों को आॅक्सीजन की आपूर्ति सामान्य नहीं हो पाई। दिल्ली सरकार और दूसरी राज्य सराकरें केंद्र पर आरोप लगाती रहीं कि उन्हें उनके हिस्से की आॅक्सीजन भी नहीं दी जा रही है। केंद्र सरकार के इस रवैए पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई थी और पूछा भी था कि जिन राज्यों को जरूरत नहीं है वहां क्यों ज्यादा आॅक्सीजन भेजी जा रही है। वैसे संकट के कारण और भी थे। अचानक मरीजों की संख्या में तेजी, आॅक्सीजन सिलेंडरों और टैंकरों की भारी कमी, उत्पादन का संकट आदि। लेकिन अदालतों की सख्ती से चीजें धीरे-धीरे कुछ हद तक सामान्य भी हुईं।
इस वक्त देश मुश्किल हालात से गुजर रहा है। तीसरी लहर का खतरा सर पर है। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं कि आॅक्सीजन का मुद्दा बेहद गंभीर है। हालांकि पिछले कुछ दिनों में सरकारों ने अस्पतालों में आॅक्सीजन की उपलब्धता को लेकर कदम उठाए हैं। कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट ने सबसे महत्त्वपूर्ण सुझाव यह है कि पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए पेट्रोलियम उत्पादों की तरह आॅक्सीजन का भंडार भी रखना चाहिए। कमेटी ने आॅक्सीजन की जरूरत निर्धारित करने का फॉर्मूला बनाने को भी कहा है। इसलिए जोर भविष्य के संकट से निपटने की रणनीति पर होना चाहिए, न कि एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में। दुनिया भर ने देखा कि जब लोग आॅक्सीजन के अभाव में मर रहे थे, तो हमारी सरकारें अदालतों में एक दूसरे को घेरने में लगी थीं और हर संकट में अवसर तलाश रही थीं। कम से कम संकटकाल में तो ऐसी प्रवृत्तियों से बचना चाहिए।
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