सम्पादकीय

हस्तशिल्प को विश्व मानचित्र पर लाने की जरूरत

Gulabi
25 Aug 2021 5:03 AM GMT
हस्तशिल्प को विश्व मानचित्र पर लाने की जरूरत
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प्रदेश में बनी सहकारी समितियों को बुनकरों तथा शिल्पकारों के आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर कदम उठाने होंगे

दिव्याहिमाचल।

प्रदेश में बनी सहकारी समितियों को बुनकरों तथा शिल्पकारों के आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर कदम उठाने होंगे, उनके जीवन स्तर, शिक्षा के लिए सोचना होगा। सरकार को बुनकरों और शिल्पकारों को कच्चे माल की उपलब्धता का भी विशेष ध्यान रखना होगा। देश से हथकरघा और हस्तशिल्प के उत्पादों का बड़े स्तर पर निर्यात होता है। हिमाचल के अधिकतर शिल्पकारों को इसके प्रति और शिक्षित करना होगा। देश में लगभग 70 लाख बुनकर और शिल्पकार हैं। हिमाचल के अधिकतर बुनकरों को और शिल्पकारों को मुख्य धारा में लाना होगा। पिछले साल देश से लगभग 3100 मिलियन डालर की हस्तशिल्प और हथकरघा वस्तुओं का निर्यात अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी तथा यूरोप और खाड़ी के कुछ देशों में किया गया…

हिमाचल का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पूरे विश्व में हिमाचल पर्यटन की दृष्टि से अपनी साख बनाए हुए है। यहां का हथकरघा और हस्तशिल्प, शायद कुल्लू शॉल, कुल्लू/किन्नौरी टोपी तथा कुछ ऐसी चीज़ों के लिए पूरे भारत में तो जाना जाता है, लेकिन विश्व मानचित्र पर अपनी ख़ास जगह बनाने में शायद इतना सफल नहीं हुआ। सात अगस्त 2021 को शिमला में, राज्य हस्तशिल्प और हथकरघा निगम ने कॉमर्स में अग्रणी स्वदेशी कम्पनी फ्लिपकार्ट के साथ एक समझौता किया जिसमें हिमाचल के हथकरघा और हस्तशिल्प के उत्पादों को फ्लिपकार्ट पर बिक्री के लिए रखा जाएगा। यह बहुत अच्छी पहल है। इससे प्रदेश के करीब बीस हज़ार शिल्पकारों और बुनकरों को लाभ पहुंचेगा।

हिमाचल में मिट्टी के बर्तन, बांस से बने उत्पाद, लक्कड़ी पर नक्काशी, खिलौने, धातु के मास्क मुखौटे, चांदी और सोने के गहने, ख़ासकर किन्नौर में अपनी विशिष्ट शैली में बनाए गए आभूषण, कुल्लू-किन्नौर के शॉल, पट्टू, मफलर, स्टोल, लोई, टोपी, पूलां, ऊनी जुराबें, दस्ताने, कांगड़ा और चंबा में वस्त्रों और रूमाल पर अनूठी कढ़ाई, बांस के उत्पाद, नालागढ़ तथा चंगर क्षेत्र में बनाई जाने वाली दरियां, खेसी, कई जगह लक्कड़ी, मिट्टी और धातु के बर्तन बहुत ही निपुणता से बनाए जाते हैं। बुनकरों और शिल्पकारों को शायद उनके हिस्से का सम्मान और लोकप्रियता कभी नहीं मिली। कुल्लू और किन्नौर शॉल की गुणवत्ता और डिज़ाइन शायद पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। बहुत से डिज़ाइनर इनसे प्रभावित हुए हैं और उन्होंने इससे फायदा भी उठाया है। आप लुधियाना में मशीनों और हौजऱी में बनाए गए शॉल और बुनकरों द्वारा बनाई गई शॉल में एकदम फर्क महसूस कर सकते हैं, अगर आपकी नजऱ जऱा भी पारखी है। सरकार को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए कि स्थानीय बुनकरों को इससे कितना नुक्सान हो रहा है।

हालांकि देश में समय-समय पर इन उत्पादों को प्रदर्शनियों में आधे-अधूरे उत्साह के साथ शामिल किया जाता है, लेकिन कोई ठोस प्रयास नहीं किया जाता ताकि यह उत्पाद लोगों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बना सकंे। दिल्ली में हिमाचल भवन में पूरा साल इस भवन की कला दीर्घा में कोई न कोई निजी कम्पनी वस्त्र और दूसरा सामान बेचती रहती है। भले ही सरकार को किराए के रूप में इससे फायदा होता होगा, लेकिन जो उत्पाद या फैक्टरी सेकण्ड्स, वे वहां बेचते हैं वे आप किसी स्टोर या दुकान से भी ले सकते हैं। साल के बारह महीने आप कला दीर्घा का दुरुपयोग कैसे होने दे सकते हैं। साल में दो महीने तो कला दीर्घा में हिमाचली कलाकारों, बुनकरों, शिल्पकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए रखा जा सकता है। राज्य हस्तशिल्प और हथकरघा निगम को नए सिरे से अपने शोरूम डिज़ाइन करने होंगे, 'खादी' के शोरूम्स से भी बेहतर और हर प्रदेश की राजधानी में कम से कम एक छोटा ही सही लेकिन अच्छा आउटलेट बनाना होगा, क्योंकि बहुत से लोग चीज़ें देखकर, छूकर खरीदना चाहते हैं।

शिक्षित युवा-युवतियों को यहां रोजग़ार दिया जा सकता है। निफ्ट कांगड़ा के छात्रों को डिज़ाइन के लिए और नए सुधारों के लिए आमंत्रित कर उनसे विचार-विमर्श किया जा सकता है। बुनकरों से मिलकर छात्र छोटे-छोटे हथकरघा सम्मेलन कर सकते हैं सरकार की अगुवाई में, जैसे ही हम महामारी से निजात पाएंगे। बुनकरों को और शिल्पकारों को हर तरह से शिक्षित करने की आवश्यकता है। समय-समय पर यह देखना कि उनका कोई दुरुपयोग तो नहीं कर रहा आर्थिक दृष्टि से, बैंकों को भी थोड़ा सतर्क रहना होगा क्योंकि बहुत से ऐसे मामले सामने आए हैं कि किसी गरीब मेहनतकश बुनकर के नाम पर दो-तीन खड्डियों के अरसे के बाद उत्पाद और खड्डियों के नाम पर कुछ नहीं होता।

उद्योग विभाग को भी इसके बारे में सतर्क रहना होगा। प्रदेश में बनी सहकारी समितियों को बुनकरों तथा शिल्पकारों के आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर कदम उठाने होंगे, उनके जीवन स्तर, शिक्षा के लिए सोचना होगा। सरकार को बुनकरों और शिल्पकारों को कच्चे माल की उपलब्धता का भी विशेष ध्यान रखना होगा। देश से हथकरघा और हस्तशिल्प के उत्पादों का बड़े स्तर पर निर्यात होता है। हिमाचल के अधिकतर शिल्पकारों को इसके प्रति और शिक्षित करना होगा। देश में लगभग 70 लाख बुनकर और शिल्पकार हैं। हिमाचल के अधिकतर बुनकरों को और शिल्पकारों को मुख्य धारा में लाना होगा। पिछले साल देश से लगभग 3100 मिलियन डालर का हस्तशिल्प और हथकरघा वस्तुओं का निर्यात अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी तथा यूरोप और खाड़ी के कुछ देशों में किया गया।

हस्तशिल्प और हथकरघा की वस्तुओं की गुणवत्ता, पैकिंग, मार्केटिंग पर विशेष ध्यान देना होगा। बुनकरों और शिल्पकारों को जागरूक करना होगा। देश और विदेश में लगने वाले हस्तशिल्प मेलों, हाटों तथा प्रदर्शनियों के बारे में भी जागरूक करना होगा। हथकरघा और हस्तशिल्प की पूरी सोच को आधुनिक बनाने की ज़रूरत है। प्रदेश की आर्थिक प्रगति में यह एक ख़ास योगदान हो सकता है। हिमाचली बुनकरों और शिल्पकारों का विश्व के बाजार में प्रवेश होना चाहिए ताकि उन्हें वाजिब दाम मिल सकें।

रमेश पठानिया

स्वतंत्र लेखक


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