सम्पादकीय

व्यवस्था को जवाबदेह बनाने की जरूरत

Rani Sahu
3 Jan 2022 7:10 PM GMT
व्यवस्था को जवाबदेह बनाने की जरूरत
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आज यदि देश में भ्रष्टाचार की बात करें तो लगता है

आज यदि देश में भ्रष्टाचार की बात करें तो लगता है कि ईमान किसी कोने में सहम कर बैठा है और बेईमानी मदमस्त होकर किसी चौराहे पर नृत्य कर रही है। कहा जा सकता है कि पहले दाल में काला था, अब काले में दाल है और कमाल ये है कि देश फिर भी चल रहा है। किसी ने क्या खूब कहा है-'यहां तहजीब बिकती है, यहां फरमान बिकते हैं, जरा तुम दाम तो बोलो यहां ईमान बिकते हैं।' देश 1947 में आज़ाद हो गया, परंतु भ्रष्टाचार के बाहुपाश से आज़ाद नहीं हो पाया है। आजकल चर्चा है थाना नादौन के निलंबित उन साहिब की जो 25 हज़ार की रिश्वत लेकर विजिलेंस को रौंदने का प्रयास करते हुए फरार हो गए। साहिब की गाड़ी बरामद है और खबर है कि साहिब की गाड़ी से बरामद हुआ है नौजवान पीढ़ी को बर्बाद करने वाला चिट्टा। बहरहाल थानेदार साहब नदारद ही हैं। सदर थाना रहे हैं, तो जाहिर है कानूनी दांवपेंच तो बखूबी जानते होंगे और कानून से फिलहाल बचने का कुछ कानूनी नुस्खा खोज रहे होंगे। जिस साहब के पास लोग जुर्म की शिकायत करने जाते हैं, कानून की हिफाज़त करने वाले वही साहिब आज कानून की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। खैर ये बात नई नहीं है। अगस्त 2019 में इनसे बड़े साहिब जवाली के डीएसपी को भी विजिलैंस ने 50 हज़ार की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा था। दिमाग पर ज़रा सा ज़ोर और डालें तो गुडि़या कांड स्मरण हो आता है जिसमें इन साहिबों के बड़े साहिब भी…। वैसे ये बात अब किसी एक विभाग की नहीं रही। हाल ही में विजिलेंस विभाग की टीम ने जि़ला कांगड़ा में एक पटवारी को एक व्यक्ति से जमीन की निशानदेही और खानगी तकसीम करवाने की एवज में 15 हजार रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था।

खबर ये भी पढ़ी कि एक पटवारी अभी नया नया ही भर्ती हुआ था कि रिश्वतखोरी की रंगत में रंग गया। पर क्या करें, किस्मत खराब थी कि पकड़ा गया वर्ना न जाने कब तक ऊपर की कमाई का शौक़ चढ़ा रहता। सबक यह कि कभी-कभी हाथी की पूंछ भी फंस जाती है। लोक निर्माण विभाग के साहबों द्वारा ठेकेदारों से रिश्वत लेने के मामले भी अखबार की सुर्खियां बनते रहते हैं। इससे पहले अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड में हुए चिटों पर भर्ती घोटाला, स्कूल शिक्षा बोर्ड फर्जी प्रमाणपत्र घोटाला भी हमारी यादों में ताज़ा हैं। वास्तविकता यह है कि कोई भी राज्य हो, विभिन्न विभागों में ऊंचे-नीचे हर ओहदे पर बैठे अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार व घूसखोरी के मामले में अपना कमाल दिखाते रहते हैं। दो वर्ष पहले गणतंत्र दिवस पर जयपुर के कोटा में तैनात नारकोटिक्स डिप्टी कमिश्नर व आईआरएस अफसर सहीराम मीणा ने तिरंगा फहराया व अपने भाषण में कर्मचारियों को ईमानदारी का सबक दिया। परंतु दो घंटे बाद ही एक लाख की घूस लेते भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। ये बात भी सामने आती रही है कि ईमानदार अफसरों को अपनी ईमानदारी की कीमत भी चुकानी पड़ी है जो भ्रष्ट माफिया के बुलंद हौसलों को दर्शाता है। कसौली में हुई महिला पुलिस अफसर की हत्या को अभी हम भूले नहीं हैं जिसे अवैध निर्माण मामले में घूस न लेने के एवज में अपनी जान गंवानी पड़ी। ये देख दिल में ये सवाल उभर आता है, 'खुदा गर तूं जि़ंदा है, जुर्म क्यों कर रहा नृत्य इंसानियत शर्मिंदा क्यों है?' मैं ये दावा तो नहीं करता कि सभी या सौ फीसदी लोग भ्रष्ट हैं, परंतु बहुत हैं और हर जगह हैं। इतने हैं कि देश का भट्ठा बिठाने के लिए काफी से ज़्यादा हैं। शायद ही कोई ऐसा विभाग बचा होगा जिसके हाथ भ्रष्टाचार के रंग में न रंगे हों।
भ्रष्टाचार के इस मंज़र को देख कर वैसे तो भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति शोचनीय है, परंतु भोले-भाले व ईमानदार लोगों का प्रदेश माने जाने वाले इस राज्य में भी भ्रष्टाचार के मामलों की कमी नहीं है। शेयर घोटाला, चारा घोटाला, व्यापम घोटाला, 2जी स्कैम, नीरव मोदी-मेहुल चौकसी बैंक घोटाला, ये सब मामले इस बात का द्योतक हैं कि हमारे देश में भ्रष्टाचार बड़े-बड़े मंत्रियों व ओहदेदारों से आरंभ होता है और सबसे निचली पायदान चपड़ासी तक फैला है। सरकारी फाइलों पर भ्रष्टाचार का वज़न इतना है कि फाइल चलाने के लिए आम आदमी मज़बूरी में भ्रष्ट तरीके से काम निकलवाने में ही गनीमत मानता है। इंटरनेशनल ट्रांसपेरैंसी इंडैक्स में भारत 86वें स्थान पर है। यह देश में हो रहे भ्रष्टाचार के कारनामों की ही परिणति है। हमारे देश में हर सरकारी कर्मचारी का वेतन इतना तो है ही कि वह आराम से अपना व परिवार का बोझ उठा सकता है। तो फिर इतनी लूट-खसूट क्यों? सीधा सा उत्तर है लालच, स्वार्थ और समाज व राष्ट्र के प्रति संवेदनहीनता जिसकी कोई सीमा नहीं। भष्टाचार के इस मंज़र को देख कर अनायास ही ज़ेहन में ख्याल उभर आता है, 'हर शाख पे उल्लू बैठा है…।' यदि हर शाख पर उल्लू बैठा हो, तो पेड़ की रखवाली कौन करे, उसे हरा-भरा कौन रखे। याद रखिए भ्रष्ट तौर-तरीके शौहरत का आसमान तो दिखाते हैं, पर आपको ज़्यादा देर वहां पर टिकने नहीं देते। आज वास्तव में व्यवस्था को स्वच्छ, पारदर्शी व जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है। कानून को सशक्त, शीघ्रगामी व प्रभावी बनाना होगा। समाज के हर तबके के हर नागरिक को सजग रह कर भ्रष्ट लोगों के गठजोड़ को तोड़ना होगा। अंग्रेजों से आज़ादी के 73 वर्ष उपरांत भी हमें भ्रष्टाचार से आज़ादी की सख्त दरकार है, अन्यथा गुलामी का रास्ता बरकरार है।
जगदीश बाली
लेखक शिमला से हैं
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