सम्पादकीय

सौर ऊर्जा उत्पादन को और बढ़ाने की जरूरत

Rani Sahu
16 Nov 2021 6:59 PM GMT
सौर ऊर्जा उत्पादन को और बढ़ाने की जरूरत
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तेजी से होते जलवायु परिवर्तन ने सबकी नींद चुरा ली है

तेजी से होते जलवायु परिवर्तन ने सबकी नींद चुरा ली है। विश्व के सभी देश पिछले कई सालों से जलवायु परिवर्तन को समझने और इसके प्रभावों को कम करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। यह समस्या इतनी आसानी से सुलझने वाली नहीं है। इस सबमें यह जरूरी हो जाता है कि हम ऊर्जा का उत्पादन ऐसे साधनों से करें जिससे प्रदूषण कम से कम हो, प्राकृतिक सम्पदा जैसे पेड़-पौधे या पानी का दुरुपयोग न हो। प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लास्गो में अपने भाषण के दौरान कहा, 'धरती पर सूरज के बढ़ते ताप से लड़ने में सूरज की ही रोशनी बड़ा हथियार बनेगी। सौर ऊर्जा के बेहतर प्रयोग से जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग को कम करना संभव है। एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड की संकल्पना इस दिशा में ऐतिहासिक परिणाम दे सकती है।' हिमाचल के अधिकतर भाग सारा साल सूरज की ऊर्जा में रहते हैं। यूं तो हिमाचल के सभी गांवों में 1988 में ही पूर्ण रूप से बिजली आ गई थी और 24 घंटे निवासियों को निरंतर बिजली मिलती रही। हिमाचल में बिजली सबसे सस्ती भी है। हिमाचल में बहुत सी जल विद्युत ऊर्जा योजनाएं हैं जिनमें अधिकतर निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं। पन बिजली परियोजनाओं से नदियों के पानी का प्रयोग कर बिजली का उत्पादन किया जाता है, लेकिन सौर ऊर्जा से बिजली आ सकती है। यही नहीं, प्रदेश में सौर ऊर्जा बड़ी मात्रा मीलों फैले पहाड़ हैं, उन पर सौर ऊर्जा फार्म बनाए जा सकते हैं। लोग अपनी बंजर ज़मीनों पर या कम उपजाऊ जमीनों पर भी सोलर फार्म बना सकते हैं। राजस्थान के कई इलाकों में बहुत से और ऊर्जा फार्म लगाए गए हैं। हिमाचल में घरों की छतों पर सोलर पैनल लगा कर अपने घर की बिजली की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। हालांकि हिमाचल में यह काम हो भी रहा है, बहुत से घरों और गली-मुहल्लों में आपको सोलर पैनल मिल जाएंगे। लगाने के लिए सरकार द्वारा 10 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था है। एक मेगावॉट बिजली का उत्पादन करने के लिए 5 एकड़ जमीन की आवश्यकता होती है और पांच मेगावाट के लिए करीब 25 एकड़ जमीन की जरूरत पड़ेगी, जिन पर फोटोवाल्टिक पैनल लगाए जाएंगे एवं एक ग्रिड होगी जहां पर बिजली जमा होगी। फिर उसका वितरण होगा

सरकार ऐसे फार्म लगाने में उद्यमियों की मदद करेगी। प्राकृतिक साधनों के दोहन से जो ऊर्जा बनाई जाती है, उसमे रॉ मैटीरियल पर कुछ भी खर्च नहीं होता, वह प्रकृति हमें मुफ्त में देती है। सौर ऊर्जा से उत्पन्न बिजली का प्रयोग हम छोटे कल-कारखानों, घर की दूसरी ज़रूरतों तथा फोटोवोल्टिक सेल्स से चलने वाले हीटर, वाटर हीटर और दूसरे कामों में प्रयोग कर सकते हैं। विदेशों में सौर ऊर्जा से कारें तथा दूसरे वाहन भी चलाए जा रहे हैं। अगर हम देश की बात करें तो सौर ऊर्जा उत्पादन में कर्नाटक राज्य का देश में पहला स्थान है। कर्नाटक की 20 प्रतिशत बिजली की ज़रूरतें सौर ऊर्जा से ही पूरी की जाती हैं। राजस्थान दूसरे स्थान पर है। प्रदेश में सबसे बड़ा करीब 2000 मेगावाट का सोलर पार्क जोधपुर के भड़ला में बना है जो देखते ही बनता है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश के रीवा में 750 मेगावॉट की सौर ऊर्जा परियोजना का उद्घाटन किया था। सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में राजस्थान ने दूसरा स्थान प्राप्त किया है। यहां सर्वाधिक 1264 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन हुआ। इसके बाद क्रमशः गुजरात (1024 मेगावाट), मध्य प्रदेश (679 मेगावाट) व तमिलनाडु (419 मेगावाट) हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ ने 73.18 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया है। नेशनल सोलर मिशन के तहत केंद्र सरकार ने 175 गीगावाट सूर्य की ऊर्जा से बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है जिसमें 40 गीगावाट बिजली घरों की छतों पर लगाए जाने पैनलों से पैदा की जाएगी। भारत विश्व के पांच देशों में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादित कर रहा है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह के एक वक्तव्य के अनुसार भारत में कुल स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को छोड़कर, 100 गीगावॉट के महत्वपूर्ण पड़ाव को पार गई है। भारत आज स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर, सौर ऊर्जा में पांचवें और पवन ऊर्जा में चौथे स्थान पर है।
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत ने अपने लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय प्रतिबद्ध है। जबकि 100 गीगावॉट की क्षमता स्थापित की जा चुकी है। 50 गीगावॉट क्षमता स्थापित करने का काम जारी है और 27 गीगावॉट के लिए निविदा की प्रक्रिया चल रही है। भारत ने 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की अपनी महत्वाकांक्षा को भी बढ़ा दिया है। यदि बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को शामिल कर लिया जाए तो स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता 146 गीगावॉट बढ़ जाती है। 100 गीगावॉट की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता की उपलब्धि 2030 तक 450 गीगावॉट के अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में भारत की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। हिमाचल में सूर्य की ऊर्जा से बिजली प्राप्त करने का इतिहास पुराना है। 1986 में मलाणा गांव पर वृत्तचित्र का निर्माण करते हुए मैंने सोलर पैनल देखे थे, जिन्हें मंदिर के बाहर और स्कूल के बाहर लगाया गया था। हिमाचल का बड़ा हिस्सा पहाड़ हैं जहां सूरज साल के 12 महीने चमकता है। कुछ इलाके चंगर हैं, जो पंजाब से सटे हुए हैं जहां बहुत गर्मी होती है। नालागढ़, बद्दी, जोघों, कुण्डलु तक बहुत सी ऐसी जगह हैं जहां पर बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा फार्म लगाए जा सकते हैं। ऊना,हमीरपुर, अंब, स्पीति, किन्नौर तथा लाहुल में भी बड़े स्तर पर यह प्रयोग किए जा सकते हैं। इन इलाकों में भी राजस्थानऔर गुजरात की तरह बड़े स्तर के सोलर एनर्जी फार्म लगाने की सोची जा सकती है। अक्षय ऊर्जा सूर्यदेव का दिया हुआ एक कीमती तोहफा है जो हमें साल के 365 दिन मुफ्त मिलता है।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक
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