सम्पादकीय

व्यापार घाटे पर काबू जरूरी

Subhi
30 Aug 2022 4:59 AM GMT
व्यापार घाटे पर काबू जरूरी
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सचित व्यापार घाटा हमारी देनदारियों में वृद्धि करता जाएगा, देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा इन देनदारियों को चुकाने पर खर्च करना होगा और इसका असर यह पड़ेगा कि विकास कार्यों में निवेश के लिए पैसा कम पड़ने लगेगा।

विजय प्रकाश श्रीवास्तव: सचित व्यापार घाटा हमारी देनदारियों में वृद्धि करता जाएगा, देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा इन देनदारियों को चुकाने पर खर्च करना होगा और इसका असर यह पड़ेगा कि विकास कार्यों में निवेश के लिए पैसा कम पड़ने लगेगा। अगर हम व्यापार घाटे को काबू कर लेते हैं तो इससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आएगी, हम अपने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि कर सकेंगे और रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी पैदा कर पाएंगे।

अर्थव्यवस्था को लेकर इन दिनों मिलीझ्रजुली खबरें आ रही हैं। कभी विकास दर में वृद्धि को लेकर खुश हो लिया जाता है, तो कभी रुपए का और गिर जाना निराशाजनक तस्वीर पेश करता है। यह सही है कि कोरोना महामारी अपने में एक अभूतपूर्व घटना थी जिसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला दिया। यह प्रभाव इतना गहरा था कि इससे उबरना कोई दो-चार महीनों की बात नहीं थी।

इसी बीच रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो गया और नई मुश्किलें खड़ी हो गर्इं। देखा जाए तो दुनिया के देशों के सामने आर्थिक समीकरण इतने जटिल कभी नहीं थे। साल 2008 में जो वैश्विक आर्थिक मंदी आई थी, उसके लिए कारणों और प्रभावों के बीच संबंध को समझना आसान था। अभी ऐसा लगता है कि बहुत सारी चीजें एक साथ हो रही हैं या हो गई हैं और कुछ मामलों में इनके लिए कारण परस्पर संबंधित हो सकते हैं।

भारत का बढ़ता व्यापार घाटा अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। लगभग महीने भर पहले भारत का व्यापार घाटा अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच कर 31.02 अरब डालर हो गया। जबकि ठीक एक साल पहले यानी जुलाई 2021 में यह 10.63 अरब डालर का था। मात्र साल भर में व्यापार घाटे में तीन गुना वृद्धि निश्चित रूप से चिंता की बात है।

आसान भाषा में कहें तो व्यापार घाटा निर्यात और आयात के मूल्य के बीच अंतर होता है। जब कोई देश निर्यात के मुकाबले अपने आयात पर ज्यादा पैसा खर्च करता है तो व्यापार घाटे की स्थिति पैदा होती है। गिने-चुने देश ही होंगे जिनकी सारी जरूरतें देश से ही पूरी हो जाती हों और जिन्हें आयात करने की जरूरत ही न पड़ती हो। यह भी शायद ही देखने को मिलता है कि एक देश का आयात और निर्यात बराबर और पूरी तरह संतुलन में हो।

आयात और निर्यात विश्व व्यापार के प्रमुख अंग हैं। चूंकि सभी देशों की आबादी बराबर नहीं है, उनका आकार-प्रकार एक जैसा नहीं है, इसलिए उनके पास संसाधनों में एकरूपता भी नहीं है और उनकी जरूरतें गुणात्मक तथा मात्रात्मक रूप से एक जैसी नहीं हैं। इसलिए उन्हें दूसरे देशों के साथ आदान-प्रदान करने की जरूरत होती है। कुछ देश निर्यात ज्यादा करते हैं तो कुछ का आयात ज्यादा रहता है। एक देश के निर्यात और आयात में अंतर एक सीमा तक तो स्वीकार्य होता है, पर भारत के संदर्भ में देखें तो यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है।

व्यापार घाटे के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं। एक सीधा कारण यह है कि देश अपनी जरूरत की वस्तुओं और सेवाओं को खुद देश में उत्पादित नहीं कर पाता और बाहर से मंगाने या लेने के लिए बाध्य होता है। इसके लिए उसे भारी रकम खर्च करनी पड़ सकती है। यदि देश की मुद्रा कमजोर हो तो यह आयात और महंगा हो जाता है। व्यापार घाटे का ऊंचा होना देश की मुद्रा पर भी दबाव डालता है। भारत में इस समय ये दोनों ही स्थितियां देखने को मिल रही हैं। व्यापार घाटा रोजगार की स्थिति से भी जुड़ा है। यदि कोई देश इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का बड़ी संख्या में निर्यात करता है तो इन वस्तुओं के देश में ही निर्माण हेतु रोजगार के जो अवसर उत्पन्न हो सकते थे, उनसे वंचित हो जाता है।

कोरोना महामारी आने से पहले के वर्षों में भारत का व्यापार घाटा निरंतर कम हो रहा था। इसका मुख्य कारण बढ़ता निर्यात था। हालांकि पिछले 31 मार्च को समाप्त हुए वित्त वर्ष में भारत का निर्यात बढ़ कर रिकार्ड चार सौ अठारह अरब डालर हो गया, पर आज हमारा व्यापार घाटा भी रिकार्ड स्तर पर है। इसका एक सीधा अर्थ यह है कि हमारा आयात बिल अभी भी भारी-भरकम है।

भारत जिन वस्तुओं का आयात करता है, उनमें कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं और यह हमारे कुल आयात बिल का करीब एक तिहाई है। पिछले एक साल में हमारा यह आयात सत्तर फीसद से अधिक बढ़ चुका है। इसका कारण व्यापारिक गतिविधियों का पटरी पर लौटना और परिवहन सुविधाओं का बहाल होना हो सकता है। इसी तरह कोयले के आयात पर भी हमें भारी रकम खर्च करनी पड़ रही है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतों में भी उछाल आ गया था। मानसून के बाद देश में कोयले की मांग में कुछ कमी जरूर आई है, पर पिछले साल की तुलना में बाहर से कोयला खरीदने पर अब ढाई-तीन गुना ज्यादा रकम खर्च हो रही है। हालांकि बिजली उत्पादकों से कहा गया है कि बिजली पैदा करने के लिए वे केवल आयातित कोयले पर निर्भर नहीं रहें।

भारत सोने का भी आयात करता है, लेकिन इस आयात पर शुल्क में वृद्धि के बाद देश में बाहर से आने वाले सोने की मात्रा कम हुई है। भारत से रत्नों और आभूषणों, कार्बनिक और अकार्बनिक रसायनों, सिलेसिलाए कपड़ों का निर्यात वर्षों से होता रहा है। लेकिन वैश्विक मांग में कमी के कारण इनके निर्यात में गिरावट आई है। इस गिरावट का भी बढ़ते व्यापार घाटे में योगदान है।

हालांकि देश की जरूरत को देखते हुए सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी, पर इससे विदेशी मुद्रा की आवक में भी कमी आई है। दूसरी ओर मोबाइल फोन और कंप्यूटर-लैपटाप जैसी इलेक्ट्रानिक वस्तुओं को अभी भी बाहर से मंगाना पड़ रहा है और इनकी मांग में भी उछाल आया है। भले ही हम और देशों से सामान मंगाने को बाध्य हैं, पर ज्यादा बड़ा संकट यह है कि अपने देश का माल बाहर बेचने में हमें मुश्किलें आ रही हैं, क्योंकि मांग सुस्त बनी हुई है और निकट भविष्य में इसमें सुधार के आसार दिख नहीं रहे।

यह सही है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हमारा अधिक वश नहीं है, पर यदि भारत को अपना व्यापार घाटा कम करना है तो इसके लिए उसे अपने स्तर पर कुछ कदम उठाने होंगे। सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता आयात विशेषकर पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की है। हमें ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों के उपयोग को बढ़ावा देना होगा। इस दिशा में प्रगति बेशक हो रही है, पर उस गति से नहीं जो कि होनी चाहिए।

इसके अलावा निर्यात बढ़ाने के लिए नए बाजार तलाशने होंगे। अर्थशास्त्रियों के अनुसार लौह अयस्क और कुछ विशेष प्रकार के स्टील उत्पादों पर निर्यात शुल्क में कटौती कर इनका निर्यात बढ़ाया जा सकता है। हमारे निर्यात में सेवाओं के हिस्से में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसमें और संभावनाएं तलाशने की जरूरत है।

देश में बढ़ती मुद्रास्फीति पर रिजर्व बैंक के दखल से गिरावट आई है। डालर की तुलना में रुपए की कीमत भी लगातार गिरने के बाद अब लगभग स्थिर है। इसका अनुकूल पक्ष यह है कि अब सरकार और रिजर्व बैंक देश के व्यापार घाटे को कम करने पर अधिक ध्यान दे सकते हैं। यह जरूरी भी है क्योंकि संचित व्यापार घाटा हमारी देनदारियों में वृद्धि करता जाएगा, देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा इन देनदारियों को चुकाने पर खर्च करना होगा और इसका असर यह पड़ेगा कि विकास कार्यों में निवेश के लिए पैसा कम पड़ने लगेगा। अगर हम व्यापार घाटे को काबू कर लेते हैं तो इससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आएगी, हम अपने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि कर सकेंगे और रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी पैदा कर पाएंगे।


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