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दूसरी लहर कमजोर पड़ने के साथ ही ज्यादातर राज्य अब पाबंदियां भी तेजी से हटा रहे हैं।
दूसरी लहर कमजोर पड़ने के साथ ही ज्यादातर राज्य अब पाबंदियां भी तेजी से हटा रहे हैं। इस महीने के पहले हफ्ते से ही राज्यों ने अपने यहां चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंधों में ढील देना शुरू कर दिया था, ताकि धीरे-धीरे गतिविधियां सामान्य बनाने में मदद मिल सकें। दिल्ली सरकार ने तो प्रमुख बाजारों को खोलने की इजाजत पहले ही दे दी थी। अब साप्ताहिक बाजार भी फिर से लगने लगेंगे। मॉल और बड़े व्यावसायिक परिसरों में काम शुरू हो सकेगा। इसके अलावा रेस्तरां, बार, उद्यान भी खोल दिए गए हैं।
दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना आदि राज्यों ने भी अपने यहां सभी शहरों को सख्त पाबंदियों से लगभग मुक्त कर दिया है। तेलंगाना ने तो अपने यहां शिक्षण संस्थान भी खोलने का फैसला किया है। हालांकि कई राज्य अभी हालात को देखते हुए स्कूल, कॉलेज आदि खोलने में हिचकिचा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि स्कूल-कालेज खुलते ही विद्यार्थियों की आवाजाही तेजी से बढ़ेगी। और फिलहाल यह जोखिम भरा ही है। इसलिए शिक्षण संस्थानों, खेल परिसरों, जिम आदि खोलने की इजाजत नहीं दी गई है। सबसे जरूरी तो फिलहाल छोटे-बड़े कारोबारों को फिर से रफ्तार देने की जरूरत है। ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि देश में अब महामारी की दूसरी लहर एक तरह से उतार पर है। अठासी दिन बाद पहली बार रविवार को सबसे कम तिरपन हजार मामले सामने आए। दिल्ली में तो यह आंकड़ा सौ से भी नीचे आ गया है। इसलिए अब जिंदगी को फिर से पुराने ढर्रे पर लौटाने की कवायद होनी चाहिए, लेकिन पूरी सतर्कता के साथ
इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि महामारी का खतरा अभी टला नहीं है। लगभग दो महीने की सख्त पाबंदियों के कारण सिर्फ संक्रमण को फैलने से रोक पाने में कामयाबी भर मिली है। इसलिए अगर अचानक से भीड़ बढ़ने लगेगी तो फिर से संक्रमण फैलने में देर नहीं लगेगी। तीसरी लहर को लेकर महामारी विशेषज्ञों की चेतावनियों को नजरअंदाज करना बड़े जोखिम को न्योता देना ही होगा। तीसरी लहर का खतरा सितंबर-अक्तूबर में ही बताया जा रहा है। हालांकि विषाणु के बदलते रूपों को देखते हुए यह भविष्यवाणी कर पाना बहुत ही मुश्किल है कि कौन-सी लहर कितनी घातक होगी।
इसलिए अब सारा जोर बचाव संबंधी उपायों पर ही होना चाहिए। सच तो यह है कि अभी भी लोग हद से ज्यादा लापरवाही बरत रहे हैं। बिना मास्क के घूमने, सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित दूरी का पालन न करने, उचित तरीके से हाथ न धोने जैसी बातें आम हैं। कर्फ्यू के दौरान भी आवारागर्दी करते हुए लोग मिले। ऐसे में पुलिस को सख्ती के लिए मजबूर होना पड़ता है। दुस्साहस की यह प्रवृत्ति खतरनाक है। बाजार में चहल-पहल होते ही लोग मान लेते हैं कि अब महामारी खत्म हो गई। पर ऐसा है नहीं। खतरा बरकरार है। इसलिए बचाव ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।
इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती लोगों की जान बचाने और अर्थव्यवस्था को संभालने की है। अगर सिर्फ लापरवाही के कारण ही हालात बिगड़ते रहे तो बार-बार प्रतिबंध लगाने पड़ सकते हैं। ऐसे में बाजार नहीं खुलेंगे तो कारोबार कैसे चल पाएंगे, यह सोचने की जरूरत है। बंदी और प्रतिबंधों जैसे कदम से राज्यों को हजारों करोड़ रुपए के राजस्व का घाटा हो चुका है। ज्यादातर राज्यों की माली हालत खस्ता होती जा रही है। टीकाकरण की स्थिति क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। इसलिए अगर सतर्कता के साथ कदम नहीं बढ़ाए गए तो आने वाले वक्त में महामारी के खतरे के साथ ही अन्य जोखिम भी फिर से हालत खराब कर सकते हैं।
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