सम्पादकीय

स्वास्थ्य पर संपूर्ण दृष्टि की आवश्यकता

Triveni
10 April 2023 2:44 PM GMT
स्वास्थ्य पर संपूर्ण दृष्टि की आवश्यकता
x
समाज को स्वस्थ रखे और आवश्यकता होने पर उपचार करे.

आम तौर पर लोग समझते हैं कि हम बीमार थे, ठीक हो गये, तो स्वस्थ हो गये. पर स्वास्थ्य का मतलब यह नहीं है. रोग का अभाव स्वास्थ्य नहीं है. बीमारी का नहीं होना स्वास्थ्य है, ऐसा कहना गलत होगा. स्वास्थ्य की परिभाषा यह है कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक कल्याण (वेलनेस) स्वास्थ्य है. यानी इतने पहलुओं में हमारा अच्छा होना जरूरी है, स्वस्थ कहे जाने के लिए.

आयुर्वेद में इस प्रकार स्वास्थ्य को परिभाषित किया गया है- समदोष: समाग्निश्च समधातुमलक्रियः / प्रसन्न आत्मेन्द्रियेमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते अर्थात जिसमें दोष, धातु, मल एवं अग्नि सम हो और जिसकी इंद्रियां, मन एवं आत्मा प्रसन्न हो, वही स्वस्थ है. इन सभी की सम अवस्था में होना ही स्वास्थ्य है. कोविड के दौरान चर्चा हो रही थी कि कैसे इम्यूनिटी बढ़ाया जाए. पर इम्यूनिटी का बढ़ना या घटना, दोनों ही स्वास्थ्य नहीं है.
चिकित्सा विज्ञान का कहना है कि स्वयं को समानता, संतुलन और समन्वय में रखना चाहिए. जिस स्थिति में आप हैं, उसी स्थिति में बने रहना स्वास्थ्य है. वह स्थिति यह है कि प्रकृति ने जैसा आपको बनाकर भेजा है, आप उस अवस्था को बरकरार रखें, मतलब तंदुरुस्त रहें, सीधे चलते रहें, मोटापा नहीं आये.
अब सवाल यह है कि क्या डॉक्टर या सरकारी मंत्रालय स्वास्थ्य की इस परिभाषा के अनुरूप कार्य कर रहे हैं. इनकी सारी व्यवस्था बीमारियों के नियंत्रण एवं उपचार पर केंद्रित है. वेलनेस और बचाव पर भी बहुत ध्यान दिया जाना चाहिए. डॉक्टर शब्द जिस लैटिन शब्द डॉसियर से निकला है, उसका अर्थ है- शिक्षक. चिकित्सक समाज का शिक्षक हो, समाज को स्वस्थ रखे और आवश्यकता होने पर उपचार करे.
तो सबसे पहले हमें स्वास्थ्य की समुचित परिभाषा को निर्धारित करना होगा. जब लोग स्वस्थ रहेंगे, तो हमें अस्पतालों की जरूरत कम रहेगी. स्वास्थ्य की दृष्टि से हम उसी देश को सफल मानेंगे, जहां अस्पताल की आवश्यकता कम होने लगे. अभी हम चिकित्सा व्यवस्था को स्वास्थ्य सेवा कहते हैं, अब वेलनेस सेंटर की बात भी हो रही है, लेकिन चाहे वे निजी अस्पताल हों या सरकारी, उनमें एक भी कोना ऐसा नहीं मिलेगा, जहां वेलनेस या स्वास्थ्य के लिए सलाह दी जा रही हो.
ऐसे में वर्तमान व्यवस्था को स्वास्थ्य सेवा न कह कर बीमार सेवा कहा जाना चाहिए. अगर हम वेलनेस की बात कर रहे हैं, तो अस्पताल में सबसे पहले और महत्वपूर्ण कोना वह होना चाहिए, जहां एक स्वस्थ व्यक्ति जाए और वहां उसे यह सलाह मिले कि वह इसी तरह आगे भी अपने को स्वस्थ कैसे रख सकता है. सलाह देने वाला डॉक्टर स्वयं भी मानसिक रूप से स्वस्थ हो, ज्ञान की दृष्टि से परिपक्व हो और उसमें लाभकारी ज्ञान देने की इच्छाशक्ति हो.
ऐसी व्यवस्था होने से आने वाले समय में हमारे देश पर बीमारी के बोझ और वित्तीय बोझ में बड़ी कमी आयेगी. अभी चाहे रोगी अपनी जेब से खर्च करे या सरकारी अस्पताल में खर्च हो, भारी मात्रा में राजस्व खर्च हो रहा है. यह सच है कि हमारे देश में या दुनिया में अन्यत्र बीमारियां बहुत हैं और उनके निदान के लिए व्यवस्था होनी चाहिए. अमेरिका में 53 प्रतिशत यानी आधे से अधिक लोग वेंटिलेटर पर मरते हैं. इसे मैं वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता कहूंगा. पहले भी हमारे बुजुर्ग मरते थे.
घर में हैं, बहुत अधिक आयु हो गयी है, किसी दिन सोये, तो फिर नहीं उठे. मरना तो सबको है, पर घुट-घुट कर मरना, वेंटिलेटर पर मरना उचित नहीं है. आयुर्वेद के आचार्य चरक ने कहा था कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में कभी न कभी व्याधि से भेंट करनी पड़ेगी. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जितनी बड़ी संख्या में लोग जो बीमार हो रहे हैं और गंभीर रोगों से जूझ रहे हैं, उस संख्या को हम कम करने का प्रयास करें. समाधान के लिए व्यापक उपाय करने होंगे, एक-एक कोने को ठीक कर हम सफल नहीं हो सकेंगे.
पहला कदम वेलनेस का होना चाहिए. फिर बचाव पर ध्यान दिया जाना चाहिए. तीसरा कदम शुरुआती चरण में ही बीमारियों की पहचान करना होना चाहिए. ऐसा होने से खर्च कम हो और ठीक होने की संभावना अधिक होगी. इसके बाद स्वास्थ्य सेवा की समुचित और सस्ती उपलब्धता की बात आती है. जब मैं चिकित्सा की पढ़ाई कर रहा था, तब जिसका उपचार कहीं नहीं होता था, वह मेडिकल कॉलेज आता था और गंभीर से गंभीर बीमारियों का उपचार होता था.
आज अगर कहीं उपचार नहीं हो पाता, तो लोग बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों का रुख करते हैं. सरकारी संस्थानों के प्रबंधन पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है तथा वहां प्रतिभाशाली चिकित्साकर्मियों को लाने के प्रयास होने चाहिए, जो या तो पलायन कर जाते हैं या निजी अस्पतालों में चले जाते हैं. सरकारी संस्थान केवल बजट देने से बेहतर नहीं होंगे, ठोस नीति भी बनायी जानी चाहिए. सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की व्यवस्था के बारे में सोचने का समय आ गया है, जिससे किसी बीमार को यह सोचने की मजबूरी नहीं रहे कि उसके पास पैसे नहीं है, तो उसका उपचार कैसे होगा. इसी प्रकार, सभी तरह के दवाओं और उपकरणों के दामों को नियंत्रित करने की जरूरत है.

सोर्स: prabhatkhabar

Next Story