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- बूस्टर डोज की जरूरत?
आदित्य नारायण चोपड़ा: कोरोना का वायरस नए-नए स्वरूप अपना कर फिर से दुनिया के लिए बेहद तकलीफदेह हालात पैदा कर रहा है। नए वेरिएंट 'ओमीक्रोन' ने फिर से जटिल परिस्थितियां पैदा कर दी हैं। कहीं लाकडाउन तो कहीं सख्त पाबंदियां। अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंधों का अर्थ यही है कि एक बार फिर दुनिया थम रही है। एक तरफ नए वेरिएंट का खतरा तो दूसरी तरफ खुद को सुरक्षित रखने की चुनौती है। नए खतरों के बीच भारत में अब तक 123 करोड़ कोविड रोधी टीके लगाए जा चुके हैं। हालांकि अब तक भारत में 30-32 फीसदी आबादी को ही टीके की दोनों खुराकें मिली हैं। कोरोना वैक्सीन निर्माता होने के बावजूद भारत वैक्सीनेशन में दुनिया में काफी पीछे चल रहा है। कम टीकाकरण को देखते हुए कई राज्यों ने उन पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया है जो अभी तक टीकाकरण से दूरी बनाए हुए हैं। टीकाकरण के लिए लोगों को कुछ सुविधाएं भी दी जा रही हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कोरोना की तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए भारत कितना तैयार है। इसी बीच देश में बूस्टर डोज को लेकर बहस शुरू हो गई है। इस बात को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है कि बूस्टर डोज लगाई जाए या नहीं। अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जब तक सबका पूरा टीकाकरण नहीं हो जाता बूस्टर डोज की अनुमति नहीं िमलनी चाहिए। देश के कुछ प्राइवेट अस्पताल कोरोना संक्रमण के बूस्टर डोज की अनुमति के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। इन अस्पतालों ने करोड़ों की वैक्सीन तो खरीद ली, लेकिन जिस महंगी कीमत पर वह लगे, उसे देखते हुए लोगों ने उनसे दूरी बना ली। प्राइवेट अस्पतालों की लॉबी को लगता है कि ओमीक्रोन वेरिएंट का भय फैला हुआ है और यह समय इस मुहिम के लिए अनुकूल है िक देश को बूस्टर डोज की जरूरत है। इस बीच 40 साल से ऊपर वाले लोगों को बूस्टर डोज लगाने की सिफारिश शीर्ष जीनोम वैज्ञानिक कर रहे हैं। सरकार अगले दो सप्ताह में एडिशनल डोज (बूस्टर डोज) पर नई पालिसी लेकर आएगी। 44 करोड़ बच्चों के िलए भी नई पालिसी लाई जाएगी। केवल भय के माहौल के कारण कोई भी फैसला लेने का कोई आैचित्य नहीं हो सकता।कुछ विशेषज्ञों का मत है कि देश के उन लोगों को बूस्टर डोज की जरूरत है जो दोनों डोज लेने के बावजूद अपने भीतर इम्युनिटी पैदा नहीं कर पाए। कुछ विषाणु विज्ञान भी 'ओमीक्रोन' वेरिएंट को देखते हुए बूस्टर डोज की वकालत कर रहे हैं। टीका निर्माण करने वाली कुछ कम्पनियों का मानना है िक उनकी वैक्सीन सभी प्रकारों या वेरिएंट्स पर असरदार है, जबकि कुछ कम्पनियों ने पाया है कि समय के साथ-साथ उनके टीके का असर कम हुआ है। ऐसे में टीका निर्माता कम्पनियां बूस्टर डोज का िवकल्प पेश कर रही हैं। अमेरिका टीका निर्माता कम्पनी फाइजर अपने टीके का बूस्टर डोज लाना चाहती है। संयुक्त अरब अमीरात, थाइलैंड आैर बहरीन जैसे देश जिन्होंने अपने यहां लोगों के ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका का डोज लगाया है, इन देशों ने भी टीके का बूस्टर डोज लगाने का फैसला किया है। ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, इस्राइल समेत दुनिया के तकरीबन 30 से ज्यादा देश बूस्टर डोज लगा रहे हैं। बूस्टर डोज लगाने या नहीं लगाने का फैसला किसी भी देश के लिए इस बात पर निर्भर करता है कि वैक्सीन की उपलब्धता उस देश के पास कितनी है। यद्यपि भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन का निर्यात शुरू कर दिया है लेकिन बूस्टर को लेकर वैचारिक मतभेद सामने आ चुके हैं। यद्यपि दबी जुबान में इस बात की चर्चा जरूर है कि दुनिया भर की फार्मा कम्पनियां व्यावसायिक लाभ के लिए इसके लिए लाॅबिंग कर रही हैं। दुनिया में इस वक्त कोरोना वायरस की 24 से ज्यादा वैक्सीन इस्तेमाल की जा रही हैं, जबकि 300 से ज्यादा वैक्सीन अभी और तैयार हो रही हैं। ऐसे में जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या में वैक्सीन आने पर कम्पनियों को खरीददारों की जरूरत पड़ेगी। फिलहाल भारत में कोरोना की रफ्तार काफी धीमी हो चुकी है, इसलिए क्या सच में बूस्टर डोज से कोई फायदा होगा। इन सवालों के जवाब में ही बूस्टर डोज लगाने या न लगाने का फैसला लिया जाना चाहिए।होम :चीन की बढ़ती क्षमताओं के परिणाम 'गहरे' हैं : जयशंकरजो 'नया कश्मीर' दिखाया जा रहा है, वह वास्तविकता नहीं है : महबूबामछुआरों की चिंताओं और मत्स्यपालन क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएगी कांग्रेस : राहुल गांधीसिद्धू ने फिर अलापा PAK राग! बोले- दोनो देशों के बीच फिर शुरू हो व्यापारत्रिपुरा में TSR कर्मी ने दो सहयोगियों की गोली मार कर हत्या कीविधानसभा को 'शुद्ध' करने के लिए कांग्रेस विधायक ने छिड़का गंगा जल, जानें क्या है पूरा मामलाटीकाकरण पर बनी राष्ट्रीय टास्क फोर्स के सदस्य का कहना है िक प्राथमिकता सबसे पहले वयस्क टीकाकरण कार्यक्रम को पूरा करने की होगी। इस वर्ष के अंत तक सभी वयस्क लाभार्थियों को कम से कम वैक्सीन की पहली डोज तो लग जानी चाहिए। आईपीएसआर का कहना है कि बूस्टर डोज पर चर्चा में यह जरूरी है िक हमारा ध्यान दो डोज वाले कार्यक्रम से भटके नहीं। तीसरी डोज की बात तो उन लोगों के िलए हो रही है जिनकी पर्याप्त इम्युनिटी नहीं बन रही है। दोनों डोज लेने वाले भी महामारी का शिकार बन रहे हैं। कोई भी अभी तक कोरोना वायरस से सौ फीसदी सुरक्षित नहीं। बूस्टर डोज से अगर ये सूरत बदलती है तो फैसला लिया जा सकता है लेकिन पहले अपनी आबादी को तो टीके की दोनों खुराक देने का काम पूरा होना चाहिए। कोई भी निर्णय सोच समझ कर ही लिया जाना चाहिए।