सम्पादकीय

अमृत-काल का भारत

Gulabi
17 Aug 2021 5:14 AM GMT
अमृत-काल का भारत
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इस बार भारत का स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त, कई मायनों में खास रहा

इस बार भारत का स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त, कई मायनों में खास रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले की प्राचीर से देश को 8वीं बार संबोधित किया, तो उसके साथ ही आज़ादी का अमृत-काल आरंभ हो गया। देश की आज़ादी के मायने सिर्फ 15 अगस्त तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि 15 अगस्त, 2023 तक अमृत महोत्सव के समारोह जारी रहेंगे। लगातार 75 सप्ताह तक हम अपनी स्वतंत्रता को विशेष रूप से जिएंगे और आगामी 25 वर्षों, आज़ादी की शताब्दी सालगिरह तक, संकल्पों, सपनों और लक्ष्यों को साकार करने का अनथक प्रयास करेंगे, लिहाजा प्रधानमंत्री ने 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' वाले मंत्र के साथ 'सबका प्रयास' भी जोड़ दिया है। भारत का यही समय है, यही समय है, अनमोल भविष्य का समय है, एक कवि के शब्दों के जरिए प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास भी बयां हुआ है।


यह विश्वास साझा संकल्पों और साझा प्रयासों पर टिका है। प्रधानमंत्री ने 88 मिनट के अपने संबोधन में उल्लेख से प्रधानमंत्री बच नहीं सकते थे, क्योंकि संक्रमण आज भी मौजूद है। उन्होंने कोरोना रोधी टीके के संदर्भ में और कोरोना के आपद्काल में सक्रिय योगदान के लिए देश के डॉक्टरों, नर्सों, पेरामेडिकल स्टाफ और सफाई कर्मियों का वंदन किया। यह बड़ी भावुक और संवेदनशील मुद्रा थी। अक्सर प्रधानमंत्री के संबोधन में कुछ नीतिगत फैसलों, उपलब्धियों और लक्ष्यों के उल्लेख किए जाते हैं, लिहाजा इस बार भी दोहराए गए। उसके लिए प्रधानमंत्री को कोसना नहीं चाहिए। यह पहले के प्रधानमंत्रियों की भी परंपरा रही है। यदि प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य की रूपरेखा के मद्देनजर 100 लाख करोड़ रुपए की 'गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान' की घोषणा की है, सैनिक स्कूलों में अब बेटियां भी पढ़ सकेंगी, ऊर्जा संबंधी आत्मनिर्भरता की बात कही है, शिक्षा में स्थानीय भाषा के इस्तेमाल को मान्यता देने का ऐलान किया है, दो हेक्टेयर से भी कम ज़मीन वाले 80 फीसदी से ज्यादा किसानों के प्रति सरोकार जताए हैं और देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना का आश्वासन पुख्ता किया है, तो प्रधानमंत्री की आलोचना इस आधार पर करना 15 अगस्त का अपमान है कि प्रधानमंत्री तो जुमले फेंकते रहते हैं। जब योजनाएं साकार होंगी, तब माना जाएगा।

यदि अमृत-काल में भी ऐसी नकारात्मक राजनीति जारी रहेगी, तो फिर देश के प्रगतिशील भविष्य का रोडमैप कैसे प्रस्तुत किया जाएगा? एक औसत घर भी भविष्य की योजनाएं तैयार करता है, फिर प्रधानमंत्री के सामने करीब 139 करोड़ की आबादी के देश का सवाल है। इस स्वतंत्रता दिवस तक देश के 4-5 करोड़ घरों तक 'नल में जल' पहुंचा दिया गया है, क्या यह बड़ा और व्यापक योजनागत मिशन नहीं है। 'गति शक्ति' इतनी व्यापक योजना है कि यदि उसका कुछ हिस्सा भी आने वाले वक्त में लागू हो गया, तो देश का बुनियादी ढांचा व्यापक होगा और निश्चित तौर पर रोज़गार के असंख्य अवसर पैदा होंगे। यदि प्रधानमंत्री ऐसे प्रयासों की शुरुआत करने का आह्वान करते हैं, तो हमारा मानना है कि एक दिन ऐसी योजनाएं 'मास्टर स्ट्रोक' साबित हो सकती हैं। यदि प्रधानमंत्री उत्पादन और निर्यात बढ़ाने का आह्वान करते हैं और लोगों से स्थानीय उत्पादों को अपनाने और प्रचार करने की अपील करते हैं, तो बाज़ार किसका व्यापक होगा? मांग किसकी बढ़ेगी? और रोज़गार किसके हिस्से आएगा? इन सवालों पर मंथन करना बेहद आसान है। देश में हजारों स्टार्टअप काम कर रहे हैं। एक दिन वे बड़ी कंपनी भी बन सकते हैं। ऊर्जा के विकास और आत्मनिर्भरता पर 12 लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे। अमृत-काल के दौरान 75 'वंदे भारत' टे्रन देश के 75 स्थानों को जोड़ेंगी। यह योजना अंतिम चरण में है। क्या यह रेलवे का विस्तार नहीं है? क्या इससे रोज़गार पैदा नहीं होगा? प्रधानमंत्री के पास जादू की कोई छड़ी नहीं है, लिहाजा उन्होंने साझा प्रयास का मंत्र भी फूंका है। यह अमृत-काल में नए भारत के निर्माण का मौका है।

divyahimachal

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