सम्पादकीय

आजादी का अमृत महोत्सव

Rani Sahu
13 Aug 2021 6:49 PM GMT
आजादी का अमृत महोत्सव
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15 अगस्त, भारत का स्वतंत्रता दिवस….! हम ऐतिहासिक और खुशनसीब हैं कि आज़ादी की 75वीं सालगिरह मना रहे हैं

दिव्याहिमाचा।15 अगस्त, भारत का स्वतंत्रता दिवस….! हम ऐतिहासिक और खुशनसीब हैं कि आज़ादी की 75वीं सालगिरह मना रहे हैं। देश में 'अमृत महोत्सव' के समारोह मनाए जा रहे हैं और संकल्प ग्रहण किए जा रहे हैं। वह पीढ़ी कितनी सौभाग्यशाली होगी, जो भारत की आज़ादी के 100वें साल का मंजर देखेगी! विश्व शक्ति के रूप में गौरव और गर्व का एहसास करेगी और आगामी सदी के लक्ष्य तय करेगी। यकीनन इन 75 सालों में देश ने एक लंबा और पगडंडीनुमा सफर तय किया है। गरीबी, भूख, अकाल के थपेड़ों से जूझ कर आत्मनिर्भरता की दहलीज़ तक हम पहुंचे हैं। युद्धों के दंश और विभीषिकाएं भी झेली हैं, लेकिन भारत हमेशा बंद मुट्ठी की तरह एकजुट रहा है। यह हमारी राजनीतिक, सामाजिक, वैचारिक, आर्थिक और अस्तित्वमयी आज़ादी का दिन है। भारत आज स्वावलंबी है। सैन्य हथियार भी बनाने लगा है। अंतरिक्ष के लिए असंख्य उपग्रह बनाए हैं और दूसरे देशों के उपग्रह भी अंतरिक्ष में भेजे हैं। जो देश सुई तक नहीं बना सकता था, आज वह विमान भी बना रहा है। यह सब कुछ तभी संभव हो रहा है, जब हम बुनियादी तौर पर लोकतांत्रिक हैं। हम विश्व के सबसे विराट लोकतंत्र हैं। भारत की सामूहिक चेतना और सोच में लोकतंत्र बसा है। लोकतंत्र ही चुनाव और देश की सत्ता-सियासत की आधार-भूमि है। लोकतंत्र से ही सरकारें चुनी जाती हैं और सत्ता का सहज हस्तांतरण भी होता रहा है। भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, लेकिन विविधता में एकता ने भी देश को एकसूत्र में बांधे रखा है।

कोई विभाजन नहीं और न ही तानाशाही के संस्कार हैं, लिहाजा आज़ादी के बाद भारत एक क्षण के लिए भी नहीं बिखरा है। विदेशी विद्वानों और गोरे हुक्मरानों के आकलन गलत साबित होते रहे हैं। भारत विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, मतों, जातियों और नस्लों का देश है, लेकिन वह राष्ट्रीय तौर पर धर्मनिरपेक्ष है और आस्थाओं का प्रहरी भी है। देश शहीद जांबाजों, क्रांतिकारियों की कुर्बानियां, गांधी के सत्याग्रह और समग्रता में भारतीय होने की विरासत को नहीं भूला है, लिहाजा संविधान, संसद से लेकर सरकारों तक हम धर्मनिरपेक्ष हैं। मौलिक अधिकार, खाद्य सुरक्षा अधिकार, अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार आदि सभी नागरिकों को बराबर से हासिल हैं। नफरत और सांप्रदायिकता की कुछ आवाज़ें जरूर गूंजने लगती हैं, लेकिन वे राष्ट्रीय एकता को खंडित नहीं कर पातीं, क्योंकि भारत समभाव और सह-अस्तित्व का देश है।
कुछ 'काली भेड़ें' जरूर होती हैं, लेकिन 'अमृत महोत्सव' में उनका भी कायापलट होना चाहिए। भारतीय राजनीतिक तौर पर परिपक्व है, उसमें साहचर्य, संवाद की लगातार गुंज़ाइश है, असहमति का भी सम्मान होता है, लिहाजा सामाजिक न्याय भी संभव हुआ है। हम अपवादों की गारंटी नहीं ले सकते, क्योंकि लोकतंत्र में वे भी संभव हैं। भारत में औसत नागरिक के लिए समान अवसर हैं, सामाजिक-मानसिक विषमताएं ढह चुकी हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है। अब सवर्ण, दलित, आदिवासी, अति पिछड़ा आदि सभी समुदाय एक सरकार, एक संसद, एक समाज, एक निजी कंपनी में साथ-साथ काम कर रहे हैं। वे अपनी योग्यता के आधार पर न्यायाधीश, डॉक्टर, इंजीनियर, सैनिक और शीर्ष नौकरशाह तक बन सकते हैं। आज़ादी के इन लंबे सालों के दौरान आरक्षण की व्यवस्था ने भी असमानताओं को समाप्त किया है। यकीनन 75वें साल तक भारत की तस्वीर बहुत कुछ बदली है, लेकिन 'अमृत महोत्सव' के बावजूद कुछ स्थितियां भीतर से कुरेदती रहती हैं। कई बार चीखने को मन किया है कि क्या इसी स्वतंत्र भारत का सपना हमारे क्रांतिवीरों और पुरखों ने देखा था? भारत में करीब 50 करोड़ आबादी या तो गरीबी-रेखा के नीचे जीने को विवश है अथवा वे गरीब हैं। करोड़ों हाथ काम के लिए खाली हैं। संतोष है कि खाद्यान्न की दृष्टि से भारत अब आत्मनिर्भर ही नहीं, विदेशों को निर्यात भी करता है, लेकिन करीब 86 फीसदी किसानों की आय 'गरीबी' के दायरे में ही आती है। बहुत अभाव हैं, बहुत विसंगतियां हैं, जिन्हें आज़ादी के 75वें साल में दूर किया जाना चाहिए।


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