सम्पादकीय

आजादी का अमृत महोत्सव

Gulabi Jagat
15 Aug 2022 5:56 AM GMT
आजादी का अमृत महोत्सव
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सम्पादकीय न्यूज
By NI Editorial
लोकतंत्र के बिना किसी आजादी की कल्पना नहीं हो सकती। तो हमारी स्वतंत्रता किस तरह लोकतंत्र की भावना से परिपूर्ण हो- इस पर विचार करना ही आज के दिन की शायद सबसे महत्त्वपूर्ण सार्थकता होगी।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की विशेषता यही थी कि उसमें सिर्फ विदेशी शासन की समाप्ति को आजादी नहीं समझा गया। बल्कि 90 साल चले स्वतंत्रता संग्राम में क्रमिक रूप से स्वतंत्रता आंदोलन की एक विचारधारा विकसित हुई। इस विचारधारा का आधार यह समझ थी कि ब्रिटिश राज भारत के संसाधनों का दोहन कर रहा है, जिससे भारतवासी गरीब हो रहे हैं। दादा भाई नौरोजी का मशहूर ड्रेन ऑफ वेल्थ संबंधी शोध ने सबसे पहले इस हकीकत से भारतवासियों का परिचय कराया। जैसे-जैसे इस समझ का प्रसार हुआ, यह धारणा मजबूत होती चली गई कि ब्रिटिश राज से मुक्ति हर भारतवासी के हित में है। और इसके साथ ही इस सपने या कल्पना पर चर्चा शुरू हुई कि आजादी के बाद का भारत कैसा होगा। संघर्ष और समन्वय की लंबी प्रक्रिया के बीच सभी विचारों और संस्कृतियों के लिए खुलापन, लोकतंत्र, आधुनिक विकास नीति, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय इस सपने का हिस्सा बनते चले गए। इन सभी उसूलों को हमारे संविधान में जगह मिली। संविधान में व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों और आजादियों का विस्तार से वर्णन किया गया।
लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि प्रतिकूल आर्थिक और सामाजिक स्थितियों के कारण भारतीय आबादी की बहुसंख्या के लिए ये स्वतंत्रताएं सिर्फ किताबी बातें रही हैं। इस परिस्थिति के बीच यह आश्चर्यजनक नहीं है कि स्वतंत्रता संग्राम के मूल्य आज खतरे में पड़े दिखते हैं। भारत में प्राचीन ग्रीस के दार्शनिक प्लेटो की यह समझ साकार होती नजर आ रही है कि लोकतंत्र धीरे-धीरे एक कुलीनतंत्र में बदल जाता है, क्योंकि समाज के प्रभुत्वशाली तबके अपने धन-बल का इस्तेमाल कर व्यवस्था को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लेते हैं। अगर लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक ना रहें- अगर बहुसंख्यक लोग लोकतंत्र की रक्षा में अपना हित समझने में विफल रहते हों- तो यह परिणति अवश्य ही होती है। आज जबकि हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, इन प्रश्नों पर आत्म-मंथन जरूर किया जाना चाहिए। आखिर लोकतंत्र के बिना किसी आजादी की कल्पना नहीं हो सकती। तो हमारी स्वतंत्रता किस तरह लोकतंत्र की भावना से परिपूर्ण हो- इस पर विचार करना ही आज के दिन की शायद सबसे महत्त्वपूर्ण सार्थकता होगी।
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