सम्पादकीय

गले का पत्थर परिवारवाद

Subhi
13 March 2022 5:05 AM GMT
गले का पत्थर परिवारवाद
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आखिर आ गए चुनाव परिणाम पांच राज्यों से और अपने साथ लाए हैं दो अहम संदेश। एक कि नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है, जिसके बारे में कुछ ही वर्ष पहले कोई सोच भी नहीं सकता था।

तवलीन सिंह: आखिर आ गए चुनाव परिणाम पांच राज्यों से और अपने साथ लाए हैं दो अहम संदेश। एक कि नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है, जिसके बारे में कुछ ही वर्ष पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। याद कीजिए वह जमाना, जब कांग्रेस पार्टी के आला नेता मोदी का मजाक उड़ाते नहीं थकते थे।

याद कीजिए, किस तरह मणिशंकर आय्यर ने ताना कसते कहा था, 'मोदी कभी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, लेकिन अगर कांग्रेस के मुख्यालय में आकर चाय बनाने का काम करना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है।'

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गंभीरता से अपनी बात रखी। कहा कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बन भी जाते हैं तो देश की बर्बादी होगी। कई और बड़े राजनेता थे दिल्ली के ऊंचे पदों पर, जो यकीन के साथ कहा करते थे कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है।

आज हाल यह है कि कांग्रेस के महानायक राहुल गांधी और महानायिका प्रियंका गांधी किसी भी राज्य में कांग्रेस को जिता नहीं सकते हैं। उत्तर प्रदेश में प्रियंका ने योगी आदित्यनाथ के बाद सबसे ज्यादा आम सभाएं की थीं। अपने प्रचार का सबसे बड़ा मुद्दा महिलाओं को बनाया, लेकिन महिलाएं जब वोट डालने गईं, तो अपना वोट डाला मोदी के नाम पर।

फिलहाल कहना मुश्किल है कि वोट मोदी के नाम पर पड़ा या योगी के, लेकिन जो बात बिलकुल तय है, वह यह कि पहली बार उत्तर प्रदेश में किसी सरकार को पांच साल और मिले हैं। उत्तर प्रदेश का राजनीतिक इतिहास रहा है हर पांच साल बाद सरकार को बदलना, लेकिन इस बार नहीं हुआ है, तो सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ। कैसे भूल गए इतनी जल्दी उत्तर प्रदेश के मतदाता कि कोविड के दूसरे दौर में गंगाजी में लाशें बह रही थीं और श्मशानों में दिन-रात जल रही थीं चिताएं?

कैसे भूल गए हाथरस की उस दलित बेटी को, जिसका सामूहिक बलात्कार होने के बाद उसके बलात्कारियों ने उसे इतनी बेरहमी से पीटा कि उसकी तड़प-तड़प कर मौत हुई थी। कैसे भूल गए मतदाता कि किस तरह उत्तर प्रदेश की पुलिस ने उसकी लाश को आधी रात बिना रीति-रिवाज के कूड़े की तरह जलाया था? योगी सरकार की विफलताएं और भी गिनाई जा सकती हैं, लेकिन किस वास्ते, जब उत्तर प्रदेश के लोगों ने उनको एक मौका और दे दिया है।

चुनाव पांच राज्यों में हुए थे, लेकिन इन सबमें से उत्तर प्रदेश सबसे महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यही एक प्रदेश है, जिसके चुनाव परिणाम अक्सर दिखाते हैं कि देश का राजनीतिक मिजाज क्या है। सो, अब वही पंडित जो कल तक कह रहे थे कि इस बार अखिलेश यादव पक्का बनने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री, अब चुपके से स्वीकार कर रहे हैं कि इशारा मिल गया है उत्तर प्रदेश से कि 2024 में मोदी को हराने वाला कोई नहीं है।

कुछ इनमें से दबी जबान यह भी कह रहे हैं कि अगली बार अगर बन जाते हैं मोदी देश के प्रधानमंत्री, तो भारत का हिंदू राष्ट्र में परिवर्तित हो जाना तय है। शायद ऐसा हो भी सकता है। लेकिन जो सवाल हमको पूछना चाहिए वह यह कि मोदी के हाथ में कौन-सी जादू की छड़ी है, जो चाहे जितनी भी गलतियां उनकी सरकार करती है, उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आती है।

इस सवाल को मैंने जब अपने आप से किया तो याद आई अखिलेश यादव की वह बात, जो उन्होंने बलिया में एनडीटीवी से की थी। प्रणय राय और शेखर गुप्ता से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी अपने भाषणों में बार-बार परिवारवाद का मुद्दा उठाते हैं, लेकिन क्या जानते नहीं हैं कि उनके अपने दल में भी परिवारवाद है।

हां है। इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों में फर्क यह है कि यह दल किसी एक परिवार की सेवा में नहीं लगा हुआ है। अन्य राजनीतिक दलों में शायद एक भी नहीं है, जो पूरी तरह कायम है सिर्फ एक परिवार के नाम से। मोदी जानते हैं कि इस तरह की राजनीति से आम भारतीय तंग आ चुके हैं, इसलिए इस मुद्दे को उन्होंने अपने प्रचार का अहम मुद्दा बनाया था इस बार।

माना कि भारत के सामने समस्याएं अनेक हैं, जिनका समाधान मोदी अभी तक ढूंढ़ नहीं पाए हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या है बेरोजगारी। अभी तक दूर क्षितिज पर भी नहीं दिखते हैं कोई आसार मोदी के उस पुराने वादे के पूरा होने के, जिसके तहत हर साल दो करोड़ नई नौकरियां पैदा करने वाले थे मोदी।

देश के हर कस्बे, हर गांव में दिखते हैं बेरोजगार युवाओं के झुंड, जिनको देख कर ऐसा लगता है कि मोदी के दौर में इस सबसे बड़ी समस्या का कोई हल नहीं हुआ है। इन युवाओं से जब बातें होती हैं तो पता लगता है कि उनमें गहरी मायूसी जगह बना चुकी है, लेकिन इसके बावजूद किसी पर भरोसा अगर करते हैं ये बेरोजगार युवा तो मोदी पर करते हैं।

ऐसा शायद इसलिए कि जिन राजनीतिक दलों का पूरा अस्तित्व है परिवारवाद, उनसे उम्मीद रखना ही बेकार है। जिन राजनेताओं का सबसे बड़ा मकसद है अपने बच्चों के हवाले अपनी राजनीतिक विरासत करना उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती है?

इन परिणामों का विश्लेषण करते हुए राजनीतिक पंडित कई कारण बताते हैं मोदी की चुनावी सफलता के। मेरी नजर में मोदी की लोकप्रियता का राज है कि परिवरवाद का आरोप उन पर नहीं लग सकता है।


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