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खुदकुशी करने वाली कुल महिलाओं में इनकी संख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी
हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष यानी 2020 में देश की 22 हजार 372 गृहिणियों ने आत्महत्या कर ली थी। एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन 61 महिलाएं आत्महत्या करती हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो हर 25 मिनट में एक महिला खुदकुशी कर रही है। भारत में 2020 में कुल एक लाख 53 हजार 52 मामले आत्महत्या के दर्ज किए गए। इनमें 14.6 प्रतिशत गृहिणियां थीं। खुदकुशी करने वाली कुल महिलाओं में इनकी संख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी।
एनसीआरबी ने जब से आत्महत्या के आंकड़े जुटाने शुरू किए हैं, तब से पता चला है कि देश में हर साल 20 हजार से ज्यादा गृहिणियां आत्महत्या कर रही हैं। 2009 में तो इनकी संख्या 25 हजार से भी अधिक थी। सवाल यह है कि गृहलक्ष्मी कही जाने वाली महिलाएं आखिर इतनी बड़ी संख्या में अपनी जान क्यों गंवा रही हैं? विभिन्न रिपोर्टों से पता चला है कि इन आत्महत्याओं के पीछे कई कारण हैं। इनमें उनकी पारिवारिक समस्याएं व शादी से जुड़े मामले हैं। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इन आत्महत्याओं के पीछे घरेलू हिंसा को एक बड़ा कारण मानते हैं।
कोरोना काल में अवसाद की स्थिति बढ़ने के साथ-साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं। वाराणसी की एक मनोवैज्ञानिक डॉ. ऊषा वर्मा श्रीवास्तव ने बताया कि ज्यादातर लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र होते ही कर दी जाती है। वह बेटी से बहू की भूमिका में आ जाती हैं। उनका समय खाना पकाने और परिवार की अन्य जिम्मेदारियां संभालने में बीतने लगता है। उन पर कई तरह की बंदिशें होती हैं। उनकी शिक्षा और सपनों का अब कोई महत्व नहीं रह जाता। उनकी महत्वाकांक्षाएं धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं और उनमें निराशा पैदा होने लगती है।
गृहिणियां अक्सर आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं और वे उत्पीड़न का शिकार होती रहती हैं। मनोचिकित्सक डॉक्टर सौमित्र का मानना है कि कई आत्महत्याएं आवेश में होती हैं। पुरुष घर आकर पत्नी को पीटता है, तो वह दुखी होकर खुदकुशी कर लेती है। कई शोधों में पाया गया है कि आत्महत्या करने वाली एक तिहाई महिलाएं पारिवारिक हिंसा का शिकार रही हैं। हालांकि सरकारी आंकड़े में इसे कारण के रूप में दर्ज नहीं किया जाता। दरअसल कई परिवारों में महिलाओं का शारीरिक और मानसिक शोषण होता है। कई घरों में बहू को प्रेम व सम्मान नहीं मिलता, बल्कि उसे केवल नौकरानी समझा जाता है।
उससे ये अपेक्षा की जाती है कि वह हर हाल में पति व ससुराल वालों का पूरा ख्याल रखे और उन्हें खुश रखने का प्रयास करे। शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित होने के बावजूद वह परिवार की बदनामी के डर से बाहर किसी से इसका जिक्र भी नहीं कर सकती। अन्यथा उसका जीवन और अधिक खतरे में पड़ जाता है। यदि वह अपने मायके में शिकायत करती भी है, तो मायके वाले भी उसे सब कुछ सहने और परिवार के साथ निर्वाह करने का दबाव बनाते हैं।
चूंकि घरेलू महिलाएं बाहर जॉब नहीं करतीं, तो वे आर्थिक रूप से भी कमजोर होती हैं और अपने खर्चों के लिए पति और ससुराल वालों पर ही आश्रित होती हैं। इसलिए उनके पास ऐसा कोई ठोस साधन नहीं होता, जिसके बल पर वे अपने नर्क बन चुके वैवाहिक जीवन से बाहर निकल सकें और सम्मान व सुरक्षा भरा जीवन बिता सकें। अब आवश्यकता है कि गृहिणियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाए। गृह कार्य के लिए गृहिणियों को कानूनन मासिक आय सुनिश्चित की जानी चाहिए।
ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारतीय महिलाओं के उन कामों का भुगतान किया जाए, जिनका कोई मूल्य नहीं आंका जाता, तो इसका सालाना मूल्य कम से कम 19 लाख करोड़ रुपये के बराबर होगा। महिलाओं को अपने भीतर की प्रतिभा को पहचानना चाहिए, और उसके दम पर उन्हें कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे वे समाज में अपना नाम, यश और धन कमा सकें और अपनी पहचान बना सकें। इससे उन्हें अपनी भीतरी कुंठा से भी छुटकारा मिलेगा और वे समाज के लिए भी उपयोगी साबित होंगी।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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