सम्पादकीय

मध्य प्रदेश में एक बार फिर नक्सली खतरे की आहट महसूस की जाने लगी

Triveni
8 July 2021 8:36 AM GMT
मध्य प्रदेश में एक बार फिर नक्सली खतरे की आहट महसूस की जाने लगी
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अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विविधता के लिए मशहूर मध्य प्रदेश में एक बार फिर नक्सली खतरे की आहट महसूस की जाने लगी है।

संजय पोखरियाल| अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विविधता के लिए मशहूर मध्य प्रदेश में एक बार फिर नक्सली खतरे की आहट महसूस की जाने लगी है। छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद माना जाने लगा था कि शेष मध्य प्रदेश में नक्सली गतिविधियां समाप्त हो गई हैं, लेकिन समय के साथ यह अनुमान गलत साबित हो रहा है। पिछले लगभग 20 साल के अंदर नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए योजनाएं तो अनेक चलाई गईं, लेकिन वे उतनी कारगर नहीं हो सकीं जितनी उम्मीद की गई थी। इन वर्षो में जहां कई राज्यों में नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगी है, वहीं मध्य प्रदेश में तीन ऐसे जिलों की पहचान की गई जहां इनकी गतिविधियां बढ़ रही हैं।

हाल ही में राज्य पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा डिंडौरी को नक्सल प्रभावित जिला घोषित किया गया है। बीते दो दशकों में यह प्रदेश का तीसरा जिला है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित हुआ है। इससे पहले बालाघाट और मंडला को इस श्रेणी के जिलों में रखा गया था। इन क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों को आधार मिलने का मूल कारण यहां के लोगों की गरीबी और अशिक्षा है। यह दलील पूरी तरह सच नहीं है कि सिर्फ विचारधारा से प्रभावित होकर स्थानीय लोग नक्सलियों को मान्यता देते हैं। सच यह है कि आदिवासी बहुल इन क्षेत्रों में गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा से त्रस्त लोगों को नक्सली सुनियोजित ढंग से अपना मोहरा बनाते हैं और उन्हें बरगलाने का प्रयास करते हैं। यद्यपि सरकार ने आदिवासी इलाकों पर काफी ध्यान दिया है, लेकिन रोजगार के साधन सीमित हैं। पुलिस के खुफिया तंत्र को इन क्षेत्रों से कई चौंकाने वाली जानकारी मिली है। अपना नेटवर्क बढ़ाने के लिए नक्सली इस क्षेत्र की गरीबी और अशिक्षा का लाभ उठा रहे हैं। गरीबी से त्रस्त लोगों को उकसाकर वे अपने लिए सुरक्षित ठिकाना बना रहे हैं। इन क्षेत्रों में नक्सलियों की आवाजाही बढ़ने के पीछे विदेशी संस्थाओं से चंदे के रूप में मिल रहा आíथक संबल बड़ा कारण है। इसके जरिये वे गरीबों के बीच विश्वास बढ़ाने का प्रयास करते हैं और सफल भी हो जाते हैं। हालांकि डिंडौरी में नक्सली समस्या नई नहीं है, लेकिन इसके विस्तार की सूचना चौंकाने वाली जरूर है। लंबे समय से यह क्षेत्र भी नक्सलियों के आने-जाने का प्रमुख मार्ग रहा है।
डिंडौरी का जंगल अमरकंटक से लगा हुआ है। वर्ष 2014 में कोबरा बटालियन को यहां से हटा लिया गया। इसके कुछ महीनों बाद ही फिर से सरकार ने हॉकफोर्स तैनात करने का निर्णय लिया। यह स्थापित तथ्य है कि पुलिस बल की कमी होने के कारण ही बालाघाट, मंडला, अनूपपुर और डिंडौरी में नक्सली बढ़े। कुछ वर्ष पूर्व नक्सलियों ने विस्तार दलम का गठन कर मध्य प्रदेश में भी अपने विस्तार का खाका खींचा था। वे बालाघाट, मंडला और डिंडौरी में सक्रिय होने लगे। पुलिस को जानकारी मिली कि वे क्षेत्र में पैठ बनाकर किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। राज्य की पुलिस ने इसे बड़ी चुनौती मानते हुए केंद्रीय गृह मंत्रलय को रिपोर्ट भेजकर डिंडौरी को नक्सल प्रभावित जिला घोषित करने का अनुरोध किया। कुछ दिनों पूर्व ही केंद्र सरकार ने इसे नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में शामिल कर लिया है। माना जा रहा है कि अब राज्य पुलिस एवं केंद्रीय सुरक्षा बल मिलकर नक्सली गतिविधियों को रोकने के लिए बेहतर ढंग से काम कर सकेंगे। केंद्र की ओर से आर्थिक और सुरक्षा संबंधी जरूरी मदद मिल जाएगी।
डिंडौरी जिले की पुलिस को भी नक्सलियों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। नक्सलियों का छत्तीसगढ़ के रास्ते मध्य प्रदेश आने का मार्ग बंद किया जा सकेगा। केंद्र की सूची में शामिल होने के बाद देशभर में होने वाले नक्सली हमलों के तरीकों को यहां की पुलिस से साझा करने में मदद मिलेगी। स्थानीय बल को आधुनिक हथियार मिल सकेंगे। केंद्र की योजनाओं के तहत वित्तीय संसाधन उपलब्ध हो सकेंगे। बालाघाट और मंडला के बाद नक्सलियों के ठिकानों पर व्यापक स्तर पर कार्रवाई की जा सकेगी। जंगलों में सुरक्षा बलों के निगरानी शिविर स्थापित किए जा सकेंगे। साथ ही जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का विश्वास जीतने की योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया जा सकेगा।
यह भी एक तथ्य है कि जिन रास्तों से नक्सलियों की आवाजाही रहती है, वे अधिकतर घने जंगलों वाले इलाकों में हैं। मंडला, बालाघाट, डिंडौरी और अमरकंटक के बीच नक्सलियों के सुरक्षित कॉरिडोर के बीच कई नदियां हैं। बारिश शुरू होते ही नक्सली इन जंगलों में डेरा डाल लेते थे और बरसात के दिनों में वहीं पर रहते हैं। वे समाजसेवा के नाम पर स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल करने का प्रयास करते हैं, जो पुलिस के लिए बड़ी चुनौती रहती है। अब डिंडौरी में भी पुलिस अपना सूचना तंत्र मजबूत कर रही है। केंद्र सरकार से आर्थिक और सुरक्षा संबंधी सुविधा मिलने से पुलिस लोगों के बीच पुलिस विश्वास पैदा कर सकेगी। इनके लिए विशेष योजनाएं लागू की जाएंगी।


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