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देश के मशहूर पूर्व क्रिकेटर, टीवी सेलेब्रेटी, पॉलिटिशियन
संयम श्रीवास्तव। देश के मशहूर पूर्व क्रिकेटर, टीवी सेलेब्रेटी, पॉलिटिशियन, शेरो शायरी और हिंदी मुहावरों के धनी पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के नवनियुक्त अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के लिए बुधवार का दिन एक तरह से विजय दिवस वाला था. अपने घर पर नाश्ते के बहाने उन्होंने पंजाब कांग्रेस के विधायकों का जो रेला लगाया उसका भरोसा शायद उन्हें भी न रहा हो. पंजाब विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के कुल 80 विधायकों में करीब 62 विधायक सिद्धू के घर चाय पार्टी पर पधारे और फिर उनके साथ जाकर स्वर्ण मंदिर में मत्था भी टेका.
हालांकि पंजाब में उनका मुकाबला एक ऐसे बूढ़े शेर से है जो कभी हार नहीं मानता. पर नवजोत सिंह सिद्धू के समर्थकों की भीड़ देखकर पंजाब के राजा सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह (CM Amarinder Singh) को चिंता जरूर हो गई होगी. कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब की राजनीति को अच्छी तरह से समझने वालों को कहना है कि अगर वे अपनी पर आ गए तो ये सिद्धू के लिए तो नहीं पर कांग्रेस के लिए आत्मघाती होना तय है. सिद्धू की ताजपोशी के बाद सीएम अमरिंदर की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है. भले ही उन्होंने अपने मीडिया सलाहकार के जरिए संदेश दे दिया हो लेकिन उनकी चुप्पी के पीछे किसी बड़ी योजना की भी बात कही जा रही है.
कैप्टन के राजनीतिक कौशल, पंजाब में उनकी पैठ पर किसी को संदेह नहीं है पर नवजोत सिंह सिद्धू को भी कम आंकना मौके की नजाकत न समझना ही कहा जाएगा. आप सिद्धू को एक मसखरी करने वाला जोकर, कभी राजनीति को लेकर गंभीर न रहने वाला कह सकते हैं पर इससे इनकार नहीं कर सकते हैं कि पंजाब में उनकी फैन फॉलोइंग है. आखिर उन्होंने आज यह बात साबित भी कर दी. कांग्रेस आलाकमान और 62 विधायकों का खुलकर समर्थन नवजोत सिंद्धू को यूं ही नहीं मिल रहा है.
1- अकालियों के खिलाफ नवजोत सिद्धू का आक्रामक होना
नवजोत सिंह सिद्धू ने अकालियों के खिलाफ शुरू से कड़े तेवर अख्तियार कर रखा है. इसके विपरीत अमरिंदर सिंह ने हमेशा नरम रुख अपनाया है. 10 साल के शासन में अकाली हमेशा कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर मुकदमे दर्ज करवाने में तेजी दिखाते थे. कांग्रेस सत्ता में आने के बाद उन मुकदमों को वापस नहीं ले सकी. बादल परिवार का केबल टीवी बिजनेस और प्राइवेट बसों पर पूरे राज्य में कब्जा है. सिद्धू चाहते थे कानून बनाकर बादल परिवार के इन व्यवसायों पर नकेल कसी जाए पर कैप्टन ने कभी ऐसे कानून में अपनी रुचि नहीं दिखाई. बेअदबी मामले में भी कैप्टन अमिरंदर ने सिद्धु के किसी डिमांड पर घास नही डाली. इन सब बातों को लेकर केवल कांग्रेसी नेता नहीं आम पब्लिक भी अमरिंदर से नाराज है. कांग्रेसियों को लगता है इन मुद्दों को उठाकर आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनावों में माइलेज ले सकती है.
2-जट सिख और हिंदुओं में लोकप्रिय
पंजाब की राजनीति में सिद्धू के लिए सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि वे जट सिख हैं. पंजाब की कुल आबादी में जट सिखों की संख्या करीब 25 प्रतिशत है. इस लिए यहां की पॉलिटिक्स में सफल होने के लिए अब जट सिख होना एक अनिवार्य तत्व बन जाता है. जट सिख के दबदबे को इस बात से भी समझा जा सकता है कि कैप्टन और बादल ही नहीं सिद्धू भी जट सिख हैं. युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता धर्म और जाति की दीवार तोड़कर है. उनकी हाजिर जवाबी और टीवी सेलेब्रेटी की छवि भी खूब लोकप्रिय है. 2019 में एक मीडिया हाउस ने पंजाब में मुख्यमंत्री पद के लिए वोटर सर्वे किया था. सिद्धू पहले तीन नामों में शुमार थे. कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं में वे दूसरे नंबर पर थे.
3- करतारपुर साहिब कॉरिडोर
क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने पर भारत में उनके समकालीन क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू बुलावे पर शपथग्रहण समारोह में गए थे. वहां पर सिद्धू ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल बाजवा को गले से लगाया था. उनके गले लगाते हुए फोटोज और विडियो भारत में खूब वायरल हुए. पर सिद्धू ने बात को मोड़कर करतारपुर कॉरीडोर की ओर घुमा दिया. उनका कहना था कि वे पाकिस्तान में करतार पुर कॉरिडोर के लिए सबको सहमत कर रहे थे. बाद में करतारपुर कॉरिडोर के क्रेडिट को लेकर भी बीजेपी-शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस में खूब आरोप-प्रत्यारोप हुए. पर करतारपुर कॉरीडोर को शुरू करवाने का असली क्रेडिट लेने में नवजोत सिंह सिद्धू कामयाब रहे. बाद में करतार कॉरिडोर के उद्घाटन के समय कैप्टन अमरिंदर ने उनकी पाकिस्तान यात्रा में टांग अड़ाकर अपने खिलाफ माहौल बनाने में कोई कसर नही छोड़ी. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान दौरे को निजी दौरा बताया था और पाक बुलावे पर हामी भरने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था.
4-कैप्टन अमरिंदर की उम्र
कैप्टन अमरिंदर की उम्र अब 79 के करीब हो चुकी है. इस उम्र में लोग राजनीति से संन्यास ले लेते हैं. पिछले चुनावों के समय ही उन्होंने अपनी अंतिम पारी की बात पर वोट मांगा था. अगर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है और वे पार्टी को चुनाव जितवाने में सफल भी होते हैं तो भी उन्हें नेतृत्व करने का मौका मिलेगा या नहीं यह कहा नहीं जा सकता है.
5-सिद्धू के लिए पंजाब में सहानुभूति
सिद्धू को पार्टी में शामिल करने से लेकर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने और फिर मंत्रिमंडल से बाहर करने तक जिस तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह उनसे व्यवहार करते रहे यह नवजोत सिद्धू की पंजाब में लोकप्रियता को ही दिखाता है. कैप्टन अमरिंदर जितने हमले करते सिद्धू पर उनमें उनका असुरक्षा भाव ही दिखता रहा है. इसके चलते पंजाब के वोटर्स में सिद्धू के लिए एक प्रकार की सहानुभूति भी पैदा होती है. करतारपुर साहब जाने के लिए केंद्र से परमिशन मिलने के बाद सिद्धू की यात्रा में अड़चने लगाने का मामला हो या जब रोडरेज मामले में एक कानून का जिससे सिद्धू के केस में कुछ मदद हो सकती थी, अमरिंदर ने हमेशा सिद्धू को परेशान ही किया. सिद्धू को अपने मंत्रिमंडल में जगह तो दिया पर उन्हें काम न करने देने का आरोप भी अमरिंदर पर लगा. बाद में कैप्टन ने अमरिंदर को नॉन परफार्मर कहकर मंत्रीमंडल से एक मंत्रालय वापस भी ले लिया. सिद्धू को इन सब बातों के लिए पंजाब की जनता से सहानुभूति मिलती रही है.
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