सम्पादकीय

नवजोत सिद्धू :कटी पतंग

Subhi
8 Feb 2022 3:48 AM GMT
नवजोत सिद्धू :कटी पतंग
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आखिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लुधियाना की वर्चुअल रैली में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया।

आदित्य चोपड़ा: आखिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लुधियाना की वर्चुअल रैली में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया। चन्नी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाना कांग्रेस का बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है। इस कदम के जरिये कांग्रेस अपने परम्परागत वोट बैंक के साथ दलित समाज के वोट हासिल करने की कोशिश कर सकती है। यदि यह दाव सफल होता है तो फिर चुनाव काफी रोचक होगा।इस बार पंजाब की जनता के सामने आम आदमी पार्टी, कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और भाजपा गठबंधन और अकाली दल-बसपा गठबंधन का विकल्प भी सामने है। किसान नेताओं की संयुक्त समाज मोर्चा के उम्मीदवार भी सामने हैं। कुल मिलाकर चुनावी घमासान जटिल है लेकिन कांग्रेस ने चन्नी को चेहरा बनाकर अन्य दलों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह के शासन के समय से ही मुख्यमंत्री पद की लालसा पाले नवजोत सिंह सिद्धू को पूरे खेल में मिला तो केवल 'बाबा जी का ठुल्लू' ही। उन्होंने पिछले काफी अर्से से अपनी लच्छेदार भाषा से न केवल चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ तीखे तेवर अपनाए, रखे बल्कि कांग्रेस हाईकमान को अपनी शैली में ललकारा भी। अब तो वह न केवल पार्टी बल्कि अन्य दलों की नजर में मजाक के पात्र बन गए हैं। विपक्ष भाजपा कह रही है कि ... न घर के न घाट के ये तो अब बस यार रह गए इमरान खान के। अकाली दल कह रहा है 'जदो सिल्ली सिल्ली आंदी ऐ हवाएं किथे कोई रोंदा होवेगा'। कुल मिलाकर इतना तय है कि सिद्धू की पतंग कट गई है। देखना है कि इस पतंग को कौन दबोचता है। राहुल गांधी द्वारा चन्नी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बाद जिस तरह नवजोत सिंह सिद्धू ने नरम रुख अपनाते हुए हाईकमान के फैसले को स्वीकार किया उससे उनकी हताशा ही दिखाई दी। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी भी कुर्सी के लिए सियासत नहीं की, वह असहाय दिखे।न कोई उमंग है,संपादकीय :दल-बदल न करने की 'शपथ'जम्मू-कश्मीर में 'परिसीमन'...जरा आंख में भर लो पानीये मानवता के दुश्मनदिल से काम करें राज्य सरकारेंविद्यालयों में हिजाब पर विवादन कोई तरंग है।मेरी जिदंगी है क्या,इक कटी पतंग है।राजनीति संभावनाओं का खेल है। यह भी वास्तविकता है कि राजनीति में पदार्पण करने वालों की महत्वाकांक्षाओं को ​पालना चाहिए। बिना महत्वाकांक्षाओं के आज के दौर में राजनीति का कोई अ​र्थ ही नहीं है। नवजोत सिंह सिद्धू की भी अपनी इच्छाएं हैं, उन्हें पद पर जाने की इच्छा रखना कोई गुनाह नहीं है। राजनीति अपने ही लोगों को पीछे से धक्का देकर गिराकर आगे बढ़ने का खेल है लेकिन सिद्धू ने जो तरीका अपनाया वह सही नहीं रहा। अपने बड़बोलेपन से कई बार विवादों में फंस चुके सिद्धू के लिए बतौर परिपक्व राजनीतिज्ञ की छवि स्थापित करना मुश्किल हो चुका है। सियासत केवल लच्छेदार मुहावरों और धमकियों से नहीं चलती बल्कि उसमें गंभीरता भी होनी चाहिए। बतौर क्रिकेटर पाक के प्रधानमंत्री बने इमरान खान उनके दोस्त हो सकते हैं लेकिन उनकी ताजपोशी के दौरान भारत के जवानों का खून बहाने वालों के साथ 'गलबहियां' कहां तक उचित है। धार्मिक दृष्टि से गुरु नानकदेव जी के पवित्र स्थल के दर्शनों के लिए करतारपुर गलियारे का निर्माण उनकी उपलब्धि हो सकती है लेकिन इमरान खान की प्रशंसा में जमकर कसीदे पढ़ना इस देश को स्वीकार्य नहीं। वो खुद की ईमानदारी का ढिंढोरा पीटते रहे और दूसरे सभी को बेईमान करार देते रहे। दूसरी ओर चरणजीत सिंह चन्नी के रिश्तेदार पर चल रहे छापे के बहाने उनका दाव कमजोर करने की कोशिशे करते रहे। वे एक तरफ राहुल, प्रियंका से अपनी दोस्ती का दम भरते रहे तो दूसरी तरफ हाईकमान को ललकारते रहे। आखिर चरणजीत सिंह ​चन्नी नवजोत सिद्धू पर भारी पड़े। ऐसा इसलिए भी हुआ कि नवजोत सिंह सिद्धू बेलगाम घोड़ा साबित हुए। हाईकमान की पसंद ऐसा नेता ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार होता है जो उसकी सुने। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पंजाब में 32 फीसदी दलित वोट हैं और पंजाब हर जगह इस बात का डंका बजा रही है कि उसने पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बनाया है। ऐसे में कांग्रेस ने चन्नी पर दांव खेलना ही सही समझा। पंजाब की सियासत में 18 फीसदी जाट सिख मतदाता हैं और राज्य में अब तक जाट सिखों का वर्चस्व रहा है। सिद्धू के रवैये को नरम करने के लिए कांग्रेस हाईकमान को काफी मशक्कत करनी पड़ी है। दूसरी तरफ चन्नी शांत स्वभाव से दिन-रात एक किये हुए हैं और जनता के बीच जा रहे हैं, इसमें उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है। हालांकि चन्नी के सामने सभी विरोधियों के साथ लेकर चलने की चुनौती है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या सिद्धू की कटी पतंग किसी दूसरे दल में जा गिरेगी। फिलहाल इस बात की कोई संभावना नजर नहीं आ रही। क्योंकि सुखवीर ​बादल और विक्रम मजीठिया के चलते उन्होंने भाजपा छोड़ी थी, आप पार्टी से उनकी सौदेबाजी पटी नहीं। किसानों के मोर्चे से उन्हें कोई उम्मीद नहीं। विक्रम मजीठिया उनसे हिसाब चुकता करने के लिए उन्हें चुनौती दे रहे हैं। पंजाब में जनादेश कैसा होगा, इसका फैसला तो जनता ही करेगी। फिलहाल सिद्धू लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं उन्हें करते रहना चाहिए क्योंकि फिलहाल इन हालातों में उनके सामने कोई विकल्प नहीं है।

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